हार’ को जीत में बदलने की जिम्मेदारी संभाली राजा ने

हारने वाली सीटों पर जल्द होगी उम्मीदवारों की घोषणा…

भोपाल/मनीष द्विवेदी। मप्र में कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए इस बार 2018 से भी बेहतर प्रदर्शन करने की रणनीति पर काम कर रही है। इस रणनीति के तहत पिछले चुनाव में हारी सीटों की सूची बनाई गई है। इन सीटों पर पार्टी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी राजा यानी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सौंपी गई है। पार्टी को उम्मीद है कि 150 सीटों को जो टारगेट सेट किया गया है इस बार कांग्रेस उसे पा लेगी। गौरतलब है कि 2018 में कांग्रेस भले ही बड़ी पार्टी बनकर सत्ता में आई थी, लेकिन उसको बुंदेलखंड और विंध्य में अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इसलिए इस बार इन दोनों क्षेत्रों पर सबसे अधिक फोकस किया जा रहा है। सिंह 10 वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। उनका अच्छा नेटवर्क है और वे उन सीटों का दौरा कर रहे जहां कांग्रेस लगातार हार रही है। ऐसी सीटों की वे रिपोर्ट भी तैयार कर रहे है।
बुंदेलखंड पर विशेष ध्यान
कांग्रेस सबसे अधिक उन क्षेत्रों पर ध्यान दे रही है, जहां पिछले चुनाव में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इसमें बुंदेलखंड क्षेत्र का सागर जिला भी आता है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तीन दिन डेरा डालकर पार्टी की संभावनाओं को तलाशेंगे। सागर में कांग्रेस के लिए कई चुनौतियां हैं। नगरीय निकाय चुनाव में यहां पार्टी को प्रत्याशी तक नहीं मिले थे। राज्य के तीन मंत्री (गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत) इसी जिले से हैं और तीनों ही यहां काफी प्रभाव भी रखते हैं। इस अंचल के सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी और छतरपुर जिलों मेें 26 विधानसभा सीटें आती हैं। 2018 के चुनाव में यहां भाजपा को 14, कांग्रेस ने दस और बसपा व सपा ने एक-एक सीट जीती थी। इसमें सागर जिले की रहली सीट भाजपा का गढ़ बन चुकी है। यहां से भार्गव लगातार आठ बार से जीत रहे हैं। इसी तरह खुरई को नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने काफी मजबूत कर लिया है। सुरखी से गोविंद सिंह राजपूत विधायक हैं, जो 2020 तक कांग्रेस में थे। श्रीमंत के साथ वे भाजपा में शामिल हो गए थे, और उसके बाद भाजपा के टिकट पर उपचुनाव में विजयी रहे।
बीना और नरयावली भी भाजपा की मजबूत सीट हैं। यहां भी पिछले तीन चुनाव से भाजपा प्रत्याशी ही जीत रहे हैं। इसे देखते हुए कांग्रेस ने बुंदेलखंड क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है। सिंह इसके पहले भी क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं और खुरई में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भाजपा नेताओं के इशारे पर प्रताड़ित किए जाने की शिकायत की पड़ताल करने वकीलों के दल के साथ पहुंचे थे। उन्होंने यहां तक कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो वे खुरई से विधानसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं। पिछले दिनों उनके पुत्र जयवर्धन सिंह भी खुरई पहुंचे थे। दमोह जिले की पथरिया और हटा में सीट भी कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण है। सिंह दस अप्रैल को विदिशा, इसके बाद सागर और फिर दमोह जिलों का दौरा करेंगे। गौरतलब है कि दमोह से कांग्रेस के राहुल सिंह ने भाजपा के बड़े नेता जयंत मलैया को 2018 के विस चुनाव में हराया था। सत्ता परिवर्तन के बाद उन्होंने विस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ा। इसमें कांग्रेस के अजय टंडन ने उन्हें पराजित किया।
जल्दी होगी उम्मीदवारों की घोषणा
जिन सीटों पर कांग्रेस को लगातार हारना पड़ रहा है , उन जगहों पर कई मजबूत दावेदारों को चुनावी तैयारी करने के संकेत भी दिए जा चुके है। कांग्रेस ऐसी सीटों पर सबसे पहले उम्मीदवार घोषित करेगी, ताकि उम्मीदवार को चुनावी तैयारियों का ज्यादा मौका मिल सके। वैसे पिछले चुनाव में कांग्रेस को मालवा निमाड़ से ही सफलता मिली थी। यहां 32 से ज्यादा सीटें कांग्रेस ने जीती थी, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ सीटें ऐसी है, जहां कांग्रेस जीत नहीं पाती।
जहां कमजोर वहां ज्यादा जोर
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अब कांग्रेस चुनावी मोड में नजर आने लगी है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच पटरी नहीं बैठने जैसी बातें भी अक्सर उठती है, लेकिन हकीकत यह है कि दोनो नेता तालमेल के साथ संगठन का काम कर रहे है। कमल नाथ ने चुनावी रणनीति का खुलासा भी हालही में इंदौर यात्रा के दौरान किया। उन्होंने बताया कि लगभग रोज दिग्विजय सिंह और उनके बीच चर्चा होती है। दिग्विजय सिंह उन सीटों पर ज्यादा जोर दे रहे है, जहां कांग्रेस ज्यादा कमजोर है और लगातार तीन-चार मर्तबा चुनाव हार चुकी है। ऐसी सीटों के दौरे सिंह कर रहे है और वहां संगठन के पदाधिकारियों से मुलाकात कर हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है। इसके अलावा कांग्रेस के अलग-अलग गुटों को एक साथ बैठा कर इस बार चुनाव में एकजुट होकर काम करने को कहा जा रहा है।