गर्मी शुरू होते ही हांफने लगे थर्मल पावर प्लांट.
मप्र में बत्ती कभी भी गुल हो सकती है। इसकी वजह है बढ़ी गर्मी और कोयले की आपूर्ति में कमी, जिससे ताप विद्युत संयंत्रों की कई यूनिट बंद करने की नौबत आ गई है। वर्तमान में बढ़ती गर्मी का असर श्री सिंगाजी थर्मल प्लांट की इकाइयों पर पड़ा है। प्लांट की सभी इकाइयां पिछले कुछ दिनों से ठप है। वहीं कई पावर प्लांट में कुछ दिनों का कोयला ही बचा है, वो भी रबी सीजन में, जब किसानों की बिजली की जरूरत होती है। राज्य के कई पावर प्लांट ऐसे हैं जहां ब्लैक आउट हो सकता है। जानकारी के अनुसार श्री सिंगाजी थर्मल प्लांट खंडवा की 11 दिनों में सभी चारों इकाइयां बॉयलर ट्यूब लीकेज के कारण ठप हो गई हैं। सिंगाजी थर्मल पावर की चार यूनिट हैं, जो कि 28 मार्च से अभी तक ये सभी यूनिट बारी-बारी से बंद हो गई है। सभी के बंद होने की वजह एक थी ब्रायलर ट्यूब लीकेज होना। एक तरफ गर्मी प्रारंभ हुई है और बिजली की मांग बढ़ेगी, ऐसे में बिजली ताप ग्रहों की इकाइयां ब्रायलर ट्यूब लीकेज की वजह से बंद हो रही हैं। इससे प्रदेश में बिजली की किल्लत बन सकती है। श्री सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट की कुल क्षमता 2520 मेगावाट है। मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी का सर्वाधिक बिजली उत्पादन क्षमता की नवीनतम इकाई है। तकनीकी खराबी आना जेनको के प्रबंधन को लेकर सवाल कर रहा है।
बिजली की मांग बढ़ने पर हो सकती है समस्या
सिंगाजी थर्मल पावर की चार यूनिट हैं जो कि 28 मार्च से अभी तक ये सभी यूनिट बारी-बारी से बंद हो गई है। सभी के बंद होने की वजह एक थी ब्रायलर ट्यूब लीकेज होना। एक तरफ गर्मी प्रारंभ हुई है और बिजली की मांग बढ़ेगी ऐसे में बिजली ताप गृहों की इकाइयां ब्रायलर ट्यूब लीकेज की वजह से बंद हो रही हैं। इससे प्रदेश में बिजली की किल्लत बन सकती है। श्री सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट की कुल क्षमता 2520 मेगावाट है। यह मप्र पावर जनरेशन कंपनी का सर्वाधिक बिजली उत्पादन क्षमता की नवीनतम इकाई है। ऐसे में इस इकाइयों में तकनीकी खराबी आना ,जेनकों के प्रबंधन को लेकर सवाल खड़ा कर रहा है। गौरतलब है कि पिछले साल मार्च-अप्रैल में मप्र में कोयले की कमी के चलते बिजली संकट गहरा गया था। बिजली यह कंपनियों को प्रदेशभर में अघोषित बिजली कटौती करना पड़ी थी। अब एक बार फिर इकाईयों ठप होने से ऐसे आसार बन सकते हैं। पावर जनरेटिंग कंपनी के दावे अनुसार प्रदेश में करीब 23 हजार मेगावाट बिजली की उपलब्धता है। निजी बिजली कंपनियों से करार और सरकारी बिजली कंपनियों से उत्पादन के बाद इतनी बिजली उपलब्ध होना चाहिए। इधर, गर्मी के दिनों में 12 हजार मेगावाट की डिमांड आने पर ही ऐसे में इस इकाइयों में बिजली की किल्लत शुरू हो जाती है। इसकी भरपाई के लिए अघोषित बिजली कटौती की जाती है।
150 दिन सतत विद्युत उत्पादन का बनाया था रिकॉर्ड
श्री सिंगाजी थर्मल प्लांट की इकाइयां भले ही आज ठप पड़ी हैं लेकिन 660 मेगावाट क्षमता की इकाई क्रमांक-4 ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 150 दिनों तक लगातार विद्युत उत्पादन करने का रिकार्ड बनाया था। यह इकाई 18 अक्टूबर 2022 से सतत संचालित हो रही थी। इस अवधि में इकाई ने 1674 मिलियन यूनिट विद्युत उत्पादन 70.5 प्रतिशत प्लांट लोड फेक्टर (पीएलएफ) पर किया। इस दौरान इकाई का प्लांट अवेलेबिलिटी फैक्टर (पीएएफ) 72.91 प्रतिशत रहा। इकाई से वाणिज्यिक विद्युत उत्पादन 28 मार्च 2019 को प्रारंभ हुआ था।
चारों इकाइयों की बॉयलर ट्यूब लीकेज
श्री सिंगाजी थर्मल प्लांट खंडवा की 10 दिनों में सभी चारों इकाइयां बॉयलर ट्यूब लीकेज में ठप हो गई हैं। तीन नंबर को 660 मेगावाट हुई थी। 28 मार्च को बॉयलर ट्यूब लीकेज में ठप हो गई थी। एक नंबर 600 मेगावाट, पांच अप्रैल को बॉयलर ट्यूब लीकेज में ठप्प, दो नंबर को 600 मेगावाट, पांच अप्रैल को चार नंबर 660 मेगावाट व आठ अप्रैल को बॉयलर ट्यूब लीकेज में दोपहर 0215 बजे ठप हो गया है। मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी की चार ताप विद्युत यूनिट हैं जिसमें सतपुड़ा ताप विद्युत गृह की 250-250 मेगावाट क्षमता की यूनिट क्रमांक 10 व 11, श्री सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना डोंगलिया (खंडवा) की 600 मेगावाट क्षमता की यूनिट क्रमांक एक और संजय गांधी ताप विद्युत गृह बिरसिंगपुर की 210 मेगावाट क्षमता की यूनिट क्रमांक चार।
10 हजार 500 मेगावाट बिजली की मांग
प्रदेश में बिजली की मांग वर्तमान में लगभग 10500 मेगावाट के आसपास बनी हुई है। ऐसे में मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी की तरफ से बिजली का उत्पादन कुल क्षमता 5400 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट की है, जबकि 2800 मेगावाट के आसपास ही बिजली का उत्पादन हो पा रहा है। ज्ञात हो कि मप्र पावर जनरेशन कंपनी के टोंस हाइडल प्रोजेक्ट की 105 मेगावाट की यूनिट नंबर तीन एक हजार दिनों से ज्यादा समय से बंद पड़ी हुई है। इस इकाई के सुधार को लेकर करोड़ों रुपये अब तक खर्च हो चुके हैं, इसके बावजूद इकाई से बिजली का निरंतर उत्पादन नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ पावर प्लांटों में कोयले की अंधाधुंध खपत हो रही रही है जिसका असर बिजली उत्पादन महंगा हो रहा है।