भाजपा में पट्ठावाद नहीं चलेगा, कटेंगे… श्रीमंत समर्थकों के टिकट

प्रदेश में सभी राजनैतिक दल चुनावी मोड में आ चुके हैं,


ऐसे में सभी की निगाहें दोनों प्रमुख दल कांग्रेस व भाजपा की रणनीति पर लगी हुई हैं। प्रदेश में अब तक यही दोनों दल हैं, जिनके बीच चुनावी मुकाबला होता रहा है। सात माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की ही तरह टिकटों को लेकर अभी से भाजपा में मंथन का दौर शुरु हो गया है। भाजपा द्वारा सबसे पहले उन सीटों पर टिकट चयन का काम शुरु किया गया है, जिन्हें पार्टी ने आंकाक्षी की श्रेणी में रखा है। यह वे सीटें हैं, जिन पर अभी कांग्रेस के विधायक हैं। इन में उन सीटों को भी शामिल किया गया है, जहां उपचुनावों में तो भाजपा को जीत मिली है, लेकिन 2018 में हुए आम चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पूरी करने के पहले संगठन ने हारी हुईं यानि की आकांक्षी सीटों पर एक महीने तक गांव- गांव घूमकर जमीनी नब्ज टटोली है। ऐसे में यह तो तय है कि इस बार टिकट देने में भाजपा पूरी तरह से प_ावाद से दूर रहेगी और कमजोर स्थिति वाले श्रीमंत समर्थकों के टिकट काटने से भी गुरेज नहीं करेगी। इसकी वजह से श्रीमंत समर्थक कई विधायकों के टिकटों को लेकर अभी से संशय की स्थिति बनती दिखने लगी है। बीते चुनाव तक भाजपा में कांग्रेस की ही तरह किसी बड़े समर्थक नेता के करीबी होने पर टिकट मिलना आसान हो जाता था , लेकिन इस बार ऐसा किसी भी सूरत में नहीं होगा। यह बात अलग है कि इस बार भी भाजपा में प्रत्याशी का चयन उसकी अपनी परंपरागत प्रक्रिया से ही किया जाएगा। इसकी वजह से दलबदलू नेताओं में से कुछ के नामों पर कैंची चलना तय मानी जा रही है। शर्त के मुताबिक भाजपा ने कांग्रेस से आने वाले सभी नेताओं को उपचुनाव लड़ाया और जो हार गए उन्हें वादे के मुताबिक निगम-मंडलों में मंत्री पद से भी नवाजा है। यही वजह है कि इस बार माना जा रहा है कि पार्टी पुराने और कमजोर पकड़ वाले नेताओं को टिकट से दूर रखने का मन बना चुकी है ,जिसकी वजह से कई नए चेहरों को मौका तो मिलेगा ही साथ ही कई दिग्गजों के टिकट भी कटना अभी से तय माना जाने लगा है।
इनका प्रत्याशी बनना तय
कांग्रेस से आने वालों में प्रद्युम्न सिंह तोमर (मंत्री) ग्वालियर, गोविंद राजपूत (मंत्री) सुरखी, प्रभुराम चौधरी (मंत्री) सांची, तुलसीराम सिलावट (मंत्री) सांवेर और हरदीप सिंह डंग (मंत्री) सुवासरा के टिकट पर कोई अप्रत्याशित स्थिति बनने तक कोई खतरा नहीं है। ये सभी टिकट के प्रवल दावेदार माने जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश की अपने इलाके में मजबूत पकड़ भी मानी जा रही है।
इन नेताओं की पूछ-परख बढ़ना तय
कांग्रेस नेताओं के दलबदल की वजह से कई भाजपा के दिग्गज नेताओं को टिकट से वंचित होना पड़ा है। इसकी वजह से कुछ को तो सरकार में हिस्सेदारी देने के लिए मंत्री पद का दर्जा देकर उपकृत किया गया है, जबकि कुछ ने उपेक्षा की वजह से पार्टी तक को अलविदा कह दिया है तो कुछ घर बैठ गए हैं। इस वजह से ही अब पार्टी के बड़े नेताओंं ने ऐसे नेताओं के घर पर दस्तक देना शुरु कर दिया है , जिससे की उन्हें एक बार फिर से सक्रिय किया जा सके। इसकी वजह से यह तो तय है कि चुनाव से पहले एक बार फिर से पार्टी में उनकी पूछपरख बढऩे वाली है। ऐसे नेताओं में मुरैना से रुस्तम सिंह, दिमनी से शिवमंडल सिंह तोमर, मेहगांव से राकेश शुक्ला, गोहद से लाल सिंह आर्य, ग्वालियर से जयभान सिंह पवैया, अशोकनगर से लड्डूराम कोरी, मलेहरा ललिता यादव, अनूपपुर से रामलाल रौतेल, हाटपिपल्या से दीपक जोशी, मांधाता से नरेन्द्र सिंह तोमर, बदनावर से भंवर सिंह शेखावत और दमोह से जयंत मलैया शामिल हैं। पार्टी जयभान सिंह पवैया के भी कद को देखते हुए उनकी नई भूमिका पर विचार कर रही है। जबकि ललिता यादव की सीट बदलना तय है, तो वहीं लालसिंह आर्य वर्तमान में राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। इसकी वजह से उनके टिकट पर भी खतरा बताया जा रहा है। उधर पार्टी दीपक जोशी को भी मौका दे सकती है। दमोह का टिकट जयंत मलैया की सहमति से तय होना माना जा रहा है तो निगम मंडल में नियुक्ति के बाद भी नेपानगर से मंजू दादू, करैरा से रमेश खटीक को फिर टिकट मिल सकता है। 2018 में प्रत्याशी रहे सांची से मुदित शेजवार, सावन सोनकर सांवेर, सुधीर यादव सुरखी, राजकुमार खटीक करैरा, केपी सिंह मुंगावली, राधेश्याम पाटीदार सुवासरा टिकट की दौड़ से बाहर रह सकते हैं। केपी यादव गुना सांसद बन चुके हैं।
कई हार चुके नेताओं पर भी लग सकता है दांव
2020 में उपचुनाव हारने वाले सात श्रीमंत समर्थक और एक नेता ऐसे हैं , जिन्हें सत्ता में भागीदारी देने के लिए निगम मंडलों की कमान दी गई है। इनमें एदल सिंह कंषाना, रघुराज कंषाना, गिर्राज दंडोतिया, रणवीर जाटव, मुन्नालाल गोयल, इमरती देवी, जसमंत जाटव और राहुल लोधी शामिल हैं। इन्हें सरकार ने मंत्री पद का दर्जा भी दे रखा है। इनमें से अधिकांश का टिकट खतरे में बताया जा रहा है। यह बात अलग है कि यह सभी नेता टिकट के मजबूत दावेदार बने हुए हैं। इस वजह से प्रत्याशी के तैयार होने वाले पैनल में जरूर इनका नाम होगा और उनके नामों को लेकर चर्चा भी की जाएगी। इसी तरह से श्रीमंत समर्थक अंबाह विधायक कमलेश जाटव, मेहगांव से ओपीएस भदौरिया (मंत्री), ग्वालियर पूर्व मुन्नालाल गोयल, रक्षा संतराम भांडरे, पोहरी सुरेश धाकड़ (मंत्री), महेन्द्र सिंह सिसोदिया (मंत्री) बमौरी, अशोकनगर जसपाल जज्जी, बृजेन्द्र यादव (मंत्री), अनुपपुर से बिसाहूलाल सिंह (मंत्री), हाटपिपल्या मनोज चौधरी, मांधाता नारायण पटेल, बदनावर राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (मंत्री) को प्रत्याशी बनाने से पहले गहन विचार विमर्श किया जाना तय है। इसकी वजह भी है। जसपाल की विधायकी जाति मामले में कोर्ट स्टे की वजह से बची हुई है। वहीं धाकड़ सिर्फ स्थानीय समीकरणों के चलते फिर से प्रत्याशी बनाए जा सकते हैं। इसी तरह से दत्तीगांव पिछले दिनों अलग-अलग वजह से चर्चाओं में रह चुके है। टिकट चयन के दौरान भाजपा संगठन में इस तरह के मुद्दों पर खासतौर पर ध्यान रखा जाता है।