डॉक्टरों से लेकर अन्य कर्मचारियों की कमी से हो रहे दो चार.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। एक तरफ सरकार साल दर साल नए अस्पताल खोलती जा रही है तो वहीं उनके लिए चिकित्सकों से लेकर अन्य स्टॉफ की व्यवस्था नहीं कर पा रही है, जिसकी वजह से लोगों को करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से खर्च होने के बाद भी इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में ही अकेले चार हजार से अधिक चिकित्सकों की दरकार बनी हुई है। इसकी वजह है चिकित्सकों का सरकारी नौकरी से मोह भंग होना। दरअसल प्रदेश में हर साल चिकित्सा की पढ़ाई पूरी करने वाले युवकों की सरकारी अस्पतालों में काम करने की जगह निजी अस्पतालों में काम करने में रुचि अधिक होती है। यही नहीं अगर वे सरकारी अस्पतालों में काम करना भी चाहते हैं, तो उनकी रुचि गुजरात-महाराष्ट्र जैसे राज्यों और केंद्रीय सेवाओं में अधिक रहती है। इसकी वजह से सरकार को चिकित्सक मिल ही नहीं पाते हैं। इसके अलावा दांतोंं व आंखों के चिकित्सक के रिक्त पदों को भरने में सरकार की रुचि नहीं होती है, जिसकी वजह से इनके स्वीकृत पद भी रिक्त पड़े रहते हैं। लगभग यही हालात अस्पतालों में अन्य स्टॉफ को लेकर भी बनी हुई है। दरअसल प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में सेवाएं न देने की बड़ी वजह है यहां की प्रमोशन पॉलिसी और पे-स्केल। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में चिकित्सा विशेषज्ञों के 3618 पद में से 2404 पद खाली हैं। चिकित्सा अधिकारियों के 5097 पदों में से 1719 पद रिक्त हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा कमी मेडिसिन विशेषज्ञों की है। इनके 647 पदों में से 535 खाली हैं। एनेस्थीसिया विशेषज्ञ के 385 पदों में से 280 खाली हैं। इसकी वजह से ऑपरेशन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। जिला अस्पतालों में मॉड्युलर और सामान्य सहित तीन से चार ऑपरेशन थिएटर हैं, पर बेहोशी का इंजेक्शन देने के लिए एनेस्थीसिया विशेषज्ञ एक या दो ही हैं। विशेषज्ञों की कमी से सिर्फ 120 अस्पतालों में सीजेरियन प्रसव हो पा रहे हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पहले इंडियन मेडिकल ऑफिसर्स सेवा बनाने की बात कहकर वेतन डिप्टी कलेक्टर के समान कर दिया था। डीएसपी-डिप्टी कलेक्टर और इस रैंक के अफसरों को ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टिंग के दौरान आवास व अन्य सुविधा मिलती हैं, पर डॉक्टर्स के साथ ऐसा नहीं होता। मेडिकल ऑफिसर से भर्ती हुआ डॉक्टर इसी पद से रिटायर हो जाता है, क्योंकि प्रदेश में प्रमोशन को लेकर पॉलिसी ही नहीं बन पाई। वहीं, स्पेशलिस्ट को भी 15 से 17 साल बाद प्रमोशन मिल पाता है। इसके उलट अन्य सेवाओं में इस दौरान दो से तीन प्रमोशन मिल जाते हैं।
ग्रामीण इलाकों में हालात बदतर
ग्रामीण इलाकों में तो हालात अत्याधिक खराब बने हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, तहसील और ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पताल डॉक्टर की कमी से जूझ रहे हैं। 44 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 446 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर ही नहीं हैं। कांग्रेस सरकार ने सीधी भर्ती के जरिए डॉक्टरों की कमी दूर करने का प्रयास किया था , लेकिन मामला कोर्ट में चला गया था। इसकी वजह थी डॉक्टर चाहते थे कि सरकार पहले अस्पतालों में काम कर रहे पोस्ट ग्रेजुएट (पीजीएमओ) मेडिकल ऑफिसरों की भर्ती करे। प्रदेश में वर्ष 2021 में लोक सेवा आयोग ने 495 चिकित्सकों की चयन सूची जारी की थी , लेकिन उनमें से 401 ने ज्वाइन ही नहीं किया।