बड़े नेताओं के बीच बैठक में बनी रणनीति.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं भाजपा के अंदरखाने में असंतोष के स्वर लगातार बुलंद हो रहे हैं। अब यह स्वर सार्वजनिक रूप से सुनाई और दिखाई भी पडऩे लगे हैं। इस असंतोष को थामने के लिए जहां पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी है, वहीं असंतुष्टों को सत्ता में भागीदारी का फॉर्मूला भी बनाया है। यानी असंतुष्ट नेताओं को सहकारिता, प्राधिकरणों आदि में बैठाया जाएगा। दरअसल, भाजपा के लिए चुनावी सर्वे अनुकूल नहीं आ रहे हैं। पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। पार्टी में श्रीमंत की एंट्री और पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर हुए बदलाव से यह स्थिति निर्मित हुई है। अब आलम यह है कि पार्टी में एक बड़ा वर्ग उपेक्षित महसूस कर रहा है। इनमें श्रीमंत गुट के नेताओं के कारण उपेक्षित युवा नेता हैं तो पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर साइडलाइन किए गए थे, इनमें दिग्गज नेता भी शामिल हैं। अब इन असंतुष्ट नेताओं को सत्ता में भागीदार बनाकर असंतोष को थामने का प्लान बनाया गया है।
बैठक कर बनाई गई रणनीति
भाजपा में बढ़ते असंतोष को साधनेे के लिए गतदिनों संघ और संगठन की एक बैठक हुई। इस बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, आरएसएस के मप्र छग प्रमुख दीपक विस्पुते के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश महामंत्री हितानंद शामिल हुए थे। इस बैठक में असंतोष को साधने की रणनीति पर विचार विमर्श किया गया। इस अवसर पर निर्णय लिया गया कि अपेक्स बैंक में अध्यक्ष के साथ ही को-ऑपरेटिव सोसायटी व प्राधिकरणों में नियुक्तियां जल्द होंगी। चुनावी कामकाज की जिम्मेदारी भी वरिष्ठ नेताओं को दी जाएगी। इसकी रूपरेखा तकरीबन तैयार हो गई है। गौरतलब है की प्रदेश में मार्च 2020 में भाजपा जब से सत्ता में वापस आई है उसके बाद से ही मंत्रिमंडल विस्तार और पार्टी संगठन के विस्तार के साथ ही निगम-मंडलों की नियुक्ति की तमाम नेता आस लगाए हुए हैं। पिछले 2 साल से मंत्रिमंडल के विस्तार की खबरें आ रही हैं, लेकिन अभी तक विस्तार नहीं हो पाया है। शिवराज सरकार के चौथे मंत्रिमंडल विस्तार में जगह न मिलने से कई नेता नाराज और असंतुष्ट हैं। इसे खुले तौर पर अजय विश्नोई ने जाहिर भी किया है। विश्नोई ने तो विंध्य और महाकौशल की उपेक्षा का भी सीधे तौर पर आरोप लगा डाला।
अब धड़ाधड़ होंगी नियुक्तियां
सत्ता, संगठन और संघ की बैठक में निर्णय लिया गया कि असंतोष को दूर करने के लिए अब धड़ाधड़ नियुक्तियां की जाए। जानकारी के अनुसार को-ऑपरेटिव सेक्टर में नियुक्तियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राय को अहमियत दी जाएगी। प्राधिकरणों में उन लोगों को बिठाया जाएगा, जो विधानसभा चुनाव के लिए दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन सर्वे उनके अनुकूल नहीं है। प्राधिकरणों के अलावा जो बचेंगे, उन्हें संगठन के साथ चुनाव संचालन की अलग-अलग समितियों में जगह दी जाएगी। ऐसे सीनियर नेताओं की सूची तैयार है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पहले सरकार में राजनीतिक नियुक्तियां होंगी, उसके बाद चुनाव से जुड़ी जवाबदारी तय होंगी। शिवप्रकाश और विस्पुते के साथ बैठक को इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह कोर कमेटी और संघ की इंदौर में बैठक के बाद हुई है। चर्चा में बड़े नेताओं के बीच समन्वय बैठाने पर भी बात हुई है। इस मामले में संघ के साथ शिवप्रकाश खुद बात करेंगे। जरूरत पड़ी तो राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की भी मदद ली जाएगी। मंत्रियों के साथ कार्यकर्ताओं-जिलाध्यक्षों का तालमेल भी दुरुस्त होगा।
असंतुष्टों के साधने की जिम्मेदारी वरिष्ठों को
भाजपा ने पहले ही असंतुष्टों को साधने का काम शुरू कर दिया है। चुनावी रणनीति के तहत पार्टी संगठन की संभागवार बैठकों में असंतुष्टों के साधने की जिम्मेदारी कैलाश विजयवर्गीय, सत्यनारायण जटिया, राकेश सिंह, प्रभात झा, लाल सिंह आर्य, कृष्ण मुरारी मोघे, माखन सिंह, जयभान सिंह पवैया, राजेंद्र शुक्ला और माया सिंह को दी गई है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीति में जो लोग हैं वे, सत्ता में हिस्सेदारी के साथ संगठन में भागीदारी चाहते हैं। भाजपा सत्ता में है इसलिए अधिकांश नेताओं की कोशिश यही है कि उनकी सत्ता में हिस्सेदारी हो, इसमें देरी हो रही है इससे ऐसे लोगों का असंतुष्ट होना या यूं कहें असंतोष स्वाभाविक है। सत्ता और संगठन के सामने यह चुनौती भी है। इसलिए असंतोष को थामने की कवायद शुरू हो गई है।
फीडबैक सर्वे पर होगा काम
प्रदेश में असंतोष दूर करने और जीत की बुनियाद मजबूत करने के लिए संघ और भाजपा समन्वय के साथ फीडबैक सर्वे के अनुसार काम करेंगे। दरअसल, गुजरात में पन्ना कमेटी और पन्ना प्रमुखों की डिजिटल सेना ने पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, 20 साल या अधिक समय तक विधायक रहे नेताओं को टिकट न देने का नुकसान हिमाचल में उठाना पड़ा। वहां, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने बगावत की और इसका लाभ कांग्रेस को मिला। इस वजह से भाजपा की कोशिश है कि मप्र में ऐसे नेताओं पर नजर रखना, जो टिकट कटने पर परेशानी का सबब बन सकते हैं। वहीं भाजपा 2018 के चुनाव से भी सबक ले रही है। भाजपा 2018 में अति-आत्मविश्वास में थी। इसका खामिजाया उसे भुगतना पड़ा था। इस वजह से पार्टी एंटी-इनकम्बेंसी को नकारकर बंपर जीत चाहती है, जैसी गुजरात में उसे मिली है। इसके लिए जरूरी बदलाव फीडबैक सर्वे के आधार पर किए जाएंगे। असंतुष्टों को जिम्मेदारी देने से लेकर टिकट वितरण तक इन फीडबैक सर्वेक्षणों का महत्व रहने वाला है। इस वजह से पार्टी नेतृत्व का फोकस बना हुआ है।