परिवार कल्याण में साबित हुआ मध्यप्रदेश फिसड्डी

यूएनएफपीए की रिपोर्ट से हुआ खुलासा.

भोपाल/मंगल भारत। देश की आबादी कम या अधिक होने में राज्यों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहती है। अब देश आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ चुका है, जिसकी वजह से एक बार फिर राज्यों की इस मामले में भूमिका को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। अगर मप्र की इस मामले में बात की जाए तो वह परिवार कल्याण के मामले में फिसड्डी बना हुआ है। जनसंख्या रोकने के उपायों के मामलों में सरकार का हमेशा ढुलमुल रवैया बना रहता है। अगर जनसंख्या नियंत्रण कानून का सख्ती से पालन किया जाता तो यह स्थिति नहीं बनती। अगर मध्य प्रदेश ही परिवार कल्याण के लक्ष्य को हासिल कर लेता तो कम से कम भारत दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश नहीं बनता। यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की ताजा सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार मप्र की आबादी करीब 8.77 करोड़ हो चुकी है। यानी की देश की आबादी का 6.13 प्रतिशत हिस्सा मप्र में रहता है। दो दशक पहले वर्ष 2002-03 में प्रदेश की सकल प्रजनन दर 3.9 प्रतिशत थी। उस दौरान सरकार ने लक्ष्य तय किया था कि इसे 2011 तक 2.1 प्रतिशत तक लाना है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार यह लक्ष्य नौ साल बाद यानी की 2019- 20 में पाया जा सका है। अभी यह दर दो प्रतिशत है।
दशकीय जनसंख्या वृद्धि भी ज्यादा
मध्य प्रदेश की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर भी हमेशा देश के औसत से बहुत ज्यादा रही है। 2001-11 के दशक में जब देश की औसत दर 21.34 प्रतिशत थी, तो मध्य प्रदेश की 24.34 प्रतिशत थी। इसी प्रकार 2011-21 के दशक में देश की औसत दर 17.6 तो प्रदेश की 20.3 प्रतिशत थी। यह दर किसी दशक विशेष में जनसंख्या वृद्धि को बताती है।