सीएम हेल्पलाइन में 10 जिलों से पहुंची जल संकट की शिकायतें.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। एक तरफ समृद्ध प्राकृतिक संसाधन, अथाह जैवविविधता, सोना उगलते खेत और उद्योगों की बड़ी फेहरिस्त से मध्य प्रदेश विकसित राज्यों की दौड़ में खड़ा नजर आता है, लेकिन दूसरी तरफ इससे ठीक उलट प्रदेश में हर साल गर्मियों की दस्तक के साथ ही लोग बाल्टी-बाल्टी पानी को मोहताज होने लगते हैं। इस बार भी गर्मी की दस्तक के साथ ही प्रदेश में जलसंकट शुरू हो गया है। प्रदेश के करीब 4000 गांव ऐसे हैं, जहां मई की शुरुआत से पेयजल की दिक्कत होने लगेगी।
जल संकट को लेकर सीएम हेल्पलाइन में 10 जिलों से सबसे ज्यादा शिकायतें आई हैं। इसे देख लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने एक्शन प्लान तैयार कर लिया है। शुरुआती दौर में 100 करोड़ खर्च किए जाएंगे। गांवों से एक से दो किमी के दायरे में बोरिंग, कुएं या अन्य जलस्रोतों का अधिग्रहण करने 25 क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है। प्रदेश के सुदूर इलाकों में गर्मी ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है, जिसका नतीजा सूख रहे तालाब-बावडिय़ों के रूप में देखने को मिल रहा है। जलसंकट को बढ़ता देख लोगों ने अभी से सीएम हेल्पलाइन में शिकायतें करनी शुरू कर दी हैं। टीकमगढ़, रीवा सतना, भिण्ड, सीधी, मुरैना, सिंगरौली, अशोकनगर, विदिशा, श्योपुर और सिवनी जिले के गांवों से सीएम हेल्पलाइन में लगातार शिकायतें आ रही हैं। भोपाल के आसपास 40 गांव ऐसे हैं, जहां गर्मी में पेयजल संकट हो सकता है। राजगढ़ में 70 तो विदिशा में 60 गांव और ग्वालियर-मुरैना के 93 गांवों को चिह्नित किया है। अफसरों का कहना है, झाबुआ, आलीराजपुर सहित बुंदेलखंड के जिलों में जलस्तर पहले ही काफी नीचे है। मई-जून में यह 300 से 550 फीट तक चला जाता है। वहीं पीएचई के प्रमुख अभियंता संजय के कुमार अंधवान का दावा है, पेयजल संकट को लेकर फरवरी से तैयारी शुरू कर दी थी। अभी प्रदेश में 5.64 लाख हैंडपंप हैं। 5 हजार हैंडपंप और लगाए जाएंगे। जलस्तर पहले ही काफी नीचे है। मई-जून में यह 300 से 550 फीट तक चला जाता है।
नई वाटर पॉलिसी तैयार
पानी के संरक्षण और इस्तेमाल पानी को दोबारा उपयोग के लायक बनाने यानी री यूज ओफ वाटर, री साइकिलिंग आफ वाटर जैसे विजन पर फोकस करने हुए प्रदेश की वाटर पॉलिसी तैयार हो गई है। 20 साल बाद बनी इस वाटर पॉलिसी को वाटर विजन 2047 तक की जरूरतों को ध्यान में तैयार किया गया है। इसका ड्राफ्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया है। जल्द ही इसे कैबिनेट की बैठक में लाया जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा। इससे पहले अंतिम वाटर पॉलिसी वर्ष 2003 में बनाई गई थी।
हर जिले में 75 अमृत सरोवर…
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर जल संरक्षण को लेकर राज्यों के मंत्रियों का पहला अखिल भारतीय वार्षिक सम्मेलन गत 5 जनवरी को भोपाल में आयोजित किया गया था। प्रधानमंत्री ने सम्मेलन को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा था कि आज भारत जल सुरक्षा में अभूतपूर्ण काम कर रहा है और अभूतपूर्ण निवेश भी कर रहा है। जियो मैपिंग और जियो सेंसिंग जैसी तकनीक जल संरक्षण के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। जल संरक्षण के लिए जन भागीदारी की सोच को जनता के मन में जगाना है। हम इस दिशा में जितना ज्यादा प्रयास करेंगे उतना ही अधिक प्रभाव पैदा होगा। देश हर जिले में 75 अमृत सरोवर बना रहा है।
इन निकायों में एक दिन छोड़ कर मिल रहा पानी
गर्मी होने के साथ पेयजल की आपूर्ति करने में बाधा उत्पन्न होने लगी है। हालात यह है कि प्रदेश के 116 निकायों में एक दिन छोडक़र पेयजल की सप्लाई की जा रही है। इसमें सबसे ज्यादा इंदौर संभाग के 27 निकाय, उज्जैन संभाग के 31 निकाय, शहडोल संभाग के 22 निकाय, भोपाल संभाग के 14 निकाय, ग्वालियर के 13 निकाय और सागर संभाग के 6 निकाय में एक दिन छोडक़र पानी की सप्लाई की जा रही है। उधर, नगरीय प्रशासन विकास विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले दो माह में 6 हजार से ज्यादा पानी की समस्या को लेकर शिकायत दर्ज कराई जा चुकी है।