प्रदेश में एक साल बाद भी नहीं लागू हुई मिशन वात्सल्य योजना.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनाथ बच्चों को सहारा प्रदान करने के लिए मिशन वात्सल्य योजना शुरू की थी। लेकिन मप्र में अफसरों की भर्राशाही और लापरवाही के कारण अनाथ बच्चों का वात्सल्य नहीं मिल पाया। यानी प्रदेश में यह योजना एक साल बाद भी लागू नहीं हो पाई है। इस योजना के तहत अनाथ बच्चों को प्रतिमाह चार हजार रुपए प्रदान किए जाने है। इसके अलावा नई योजना में छह हजार रुपए हर महीने रहन-सहन के लिए भी बच्चों को प्रदान किए जाने हैं। अब संचालनालय महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों ने मिशन वात्सल्य को एक साल बाद यानी 1 अप्रैल 2023 से लागू करने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भेजा है। जिसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। जानकारी के अनुसार पूर्व में संचालित एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) को नए प्रावधान के साथ भारत सरकार ने एक अप्रैल 2022 से देश भर में लागू कर दिया था। साथ ही केंद्र ने बजट भी जारी कर दिया था, लेकिन मप्र महिला बाल विकास के अफसर इसे एक साल बाद भी लागू नहीं कर पाए है। खास बात यह है कि मिशन वात्सल्य को लागू करने में महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी गुमराह कर दिया है। महिला बाल विकास के अधिकारियों की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल भर से आईसीपीएस योजना के तहत कार्यरत 600 कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिला है। प्रदेश में किशोर न्याय बोर्ड, सीडब्ल्यूसी के सदस्यों को 7 महीने से मानदेय नहीं दिया गया है। बाल देखरेख संस्थाओं में निवासरत 5000 से अधिक अनाथ, बेसहारा बच्चों के भोजन, कपड़े एवं अन्य सुविधाओं के लिए भी केंद्र सरकार ने बजट प्रतिमास दो हजार से बढक़र 3 हजार किया है, लेकिन मप्र में यह लाभ भी बच्चों को नही दिया गया है।
सालभर चुप बैठा रहा विभाग
मिशन वात्सल्य के कर्मचारियों के वेतन एवं सम्पूर्ण योजना के घटक जैसे बाल देखरेख संस्थान, सीडब्ल्यूसी, जेजेबी, दत्तक ग्रहण, फोस्टर केयर के मद में केंद्र से बढ़े मानदेय/बजट देने की फाइल को वित्त विभाग ने इस टीप के साथ विभाग को पिछले महीने लौटा दिया है कि भूत लक्षी प्रभाव से यानी 1 अप्रैल 2022 से इसे दिया जाना संभव नहीं है। सवाल यह कि जब केंद्र ने साल भर पहले इसे लागू कर दिया तो महिला बाल विकास साल भर तक चुप क्यों बैठा रहा।
10 हजार बच्चों के हक पर ताला
समाज के बेसहारा, अनाथ, बच्चों के संरक्षण और पुर्नवास के लिए मिशन वात्सल्य अन्य राज्यों में लाभकारी साबित हो रहा है। लेकिन मप्र में नौकरशाहों ने इस योजना पर ब्रेक लगा दिया है। वित्त विभाग के अधिकारियों ने भी बगैर तथ्यों को जांचे, परखे इस संवेदनशील मामले में मप्र के करीब 10 हजार अनाथ, बेसहारा बच्चों के हक पर ताला लगा दिया। दूसरी तरफ गैर भाजपा शासित राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड, दिल्ली, राजस्थान पिछले साल ही इसे लागू कर चुके हैं। मिशन वात्सल्य के तहत जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्ड, बाल देखरेख संस्थाओं, दत्तक ग्रहण एजेंसियों के लिए नए नाम्र्स एवं वित्तीय प्रावधान लागू किये गए है। केंद्र सरकार ने तो बच्चों के कल्याण के लिए अपनी तरफ से राशि मप्र सरकार को उपलब्ध करा दी, लेकिन एक वित्तीय वर्ष की यह बढ़ी हुई राशि आखिर अब किस मद में खर्च की जाएगी, क्योंकि वित्त मंत्री ने प्रस्ताव 1 अप्रैल 2022 के स्थान पर 1 अप्रैल 2023 से लागू करने के आदेश दे दिए है।
60-40 वित्तीय भागीदारी पर आधारित योजना
मिशन वात्सल्य केंद्र और राज्य की 60-40 वित्तीय भागीदारी पर आधारित योजना है। यानी इसका 60 फीसदी अनुदान मप्र को केंद्र ने अप्रैल 2022 से जारी कर दिया, लेकिन मप्र में महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसर बीते वित्तीय साल में राज्य के हिस्से का 40 फीसदी अनुदान नहीं दे पाए थे। अब संचालनालय महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों ने मिशन वात्सल्य को एक साल बाद यानी 1 अप्रैल 2023 से लागू करने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भेजा है। जिसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। ऐसे में पिछले साल अप्रैल 2022 मेें केंद्र से मिली 60 प्रतिशत की राशि अनाथ, बेसहारा बच्चों के नाम पर खर्च करने के वजाए कहां खर्च की गई। इस पर भी सवाल उठते हैं। मुख्यमंत्री एक तरफ हर संभव कोशिश करते है कि प्रदेश में बच्चों के कल्याण में कोई कसर नहीं रहे।