28 सीटों पर नई भाजपा और पुरानी भाजपा के अलग-अलग दावेदार.
प्रदेश में 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव का बिगुल बजेगा। ऐसे में भाजपा ने टिकट का घमासान तेज होने लगा है। खासकर उन 28 सीटों पर सबसे अधिक घमासान है, जहां के कांग्रेसी विधायक श्रीमंत यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए। इन 28 सीटों पर नई भाजपा और पुरानी भाजपा के अलग-अलग दावेदार हैं। ऐसे में भाजपा में टिकटों के लिए सिंधिया समर्थक और पुराने भाजपाइयों के बीच घमासान मचेगा। गौरतलब है कि प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने 6 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए टिकट चयन पर काम शुरू कर दिया है। पार्टी ने यह काम आकांक्षी विधानसभा (कांग्रेस के कब्जे वाली)सीटों से शुरू किया है। इनमें वे सीट भी शामिल हैं, जहां उपचुनावों में तो भाजपा जीती, लेकिन 2018 में हारी थी। पार्टी ने तय किया है कि आम चुनाव में किसी नेता का समर्थक होने मात्र से किसी को टिकट नहीं मिलेगा। प्रत्याशी तो भाजपा की टिकट चयन की परंपरागत प्रक्रिया से ही तय होंगे। ऐसे में 2020 में कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आने वाले 28 विधायकों में से आधे से ज्यादा नेताओं को फिर से टिकट मिलने पर संशय की स्थिति बन गई है।
दरअसल, राजनीति में नए-पुराने सभी नेता मायने रखते हैं। नवंबर-दिसंबर में मप्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा के पुराने नेता फिर से आवाज बुलंद करने लगे हैं। ये बदली हुई परिस्थितियां अपनों से ही मुसीबत के संकेत दे रही हैं। जो चेहरे पार्टी में कभी कद्दावर माने जाते थे, कैबिनेट का हिस्सा थे, अब वही जीत के रास्ते पर कांटे बिछा सकते हैं। इन परिस्थितियों की जड़ में श्रीमंत का अपने समर्थकों सहित भाजपा ज्वाइन करना है। 2020 में सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में आने के बाद जिन सीटों पर उपचुनाव हुए, वहां पार्टी के पुराने चेहरों को मौका न मिलना पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
निगम-मंडल वालों को टिकट की संभावना बेहद कम
कांग्रेस से आए उपचुनाव हारने वाले 8 नेता एदल सिंह कंषाना, रघुराज कंषाना, गिर्राज दंडोतिया, रणवीर जाटव, मुन्नालाल गोयल, इमरती देवी, जसमंत जाटव और राहुल लोधी को निगम-मंडलों में मंत्री का दर्जा दिया है। इनमें ज्यादातर को टिकट मिलने की संभावना नहीं है। हालांकि ये सभी नेता अपनी-अपनी सीटों पर दावेदार रहेंगे। टिकट चयन की प्रक्रिया में इनके नामों पर विचार होगा, लेकिन मिलेगा यह तय नहीं है। इसी तरह अंबाह विधायक कमलेश जाटव, मेहगांव से ओपीएस भदौरिया (मंत्री), ग्वालियर पूर्व मुन्नालाल गोयल, पोहरी सुरेश धाकड़ (मंत्री), अशोकनगर जसपाल जज्जी, अनूपपुर से बिसाहू लाल सिंह (मंत्री), हाटपीपल्या मनोज चौधरी, मांधाता नारायण पटेल, बदनावर राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (मंत्री)के टिकट पर कैंची चल सकती है। जसपाल की विधायकी जाति मामले में कोर्ट स्टे पर है। धाकड़ सिर्फ जातिगत समीकरणों से रिपीट हो सकते हैं। सिंधिया समर्थकों के लिए इस बार सिर्फ महाराज के दरबार में जी हुकुम बजाना काफी नहीं होगा। उपचुनाव से लेकर अब तक उनका परफॉर्मेंस तय करेगा कि वो एक बार फिर टिकट के हकदार होंगे या नहीं। अगर वो बीजेपी के लिटमस टेस्ट में ही फेल हो गए तो टिकट मिलना तकरीबन नामुमकिन है। फाइनल फैसले में अभी वक्त है, लेकिन कुछ नाम तय हो चुके हैं। जिन्हें टिकट मिलना तय है और कुछ सिंधिया समर्थक ऐसे हैं जिनका पत्ता भी तय माना जा रहा है। भाजपा के इंटरनल सर्वे के आगे महाराज की सिफारिश या कोई और जैक उनके सियासी भविष्य को संवार नहीं सकेगा। अब पार्टी एक बार फिर उन पुराने नेताओं को याद कर रही है जिसकी वजह से जमीनी स्तर पर उसकी पूछ-परख बरकरार है।
भाजपा को आई पुराने नेताओं की याद
कांग्रेसियों के आने से भाजपा के दिग्गज नेताओं को अपना चुनाव क्षेत्र छोड़ना पड़ा और हांसिए पर चले गए। इनमें से कुछ नेताओं को सरकार में मंत्री पद का दर्जा मिल चुका है। जबकि कुछ घर बैठे हैं कुछ पार्टी छोड़ गए है। अब पार्टी चुनाव से पहले इन नेताओं के घर पहुंचेगी और उनकी पूछपरख बढ़ेगी। इनमें रुस्तम सिंह मुरैना, शिवमंडल सिंह तोमर दिमनी, राकेश शुक्ला मेहगांव, लाल सिंह आर्य गोहद, जयभान सिंह पवैया ग्वालियर, लड्डूराम कोरी अशोकनगर, ललिता यादव मलेहरा, रामलाल रौतेले अनूपपुर, दीपक जोशी हाटपिपल्या, नरेन्द्र सिंह तोमर मांधाता, भंवर सिंह शेखावत बदनावर और जयंत मलैया दमोह शामिल हैं। इनमें से ललिता यादव (सीट बदलेगी), रामलाल और लाल सिंह को टिकट मिल सकता है। जोशी को भी मौका मिल सकता है। दमोह का टिकट जयंत मलैया की सहमति से तय होगा। निगम मंडल में नियुक्ति के बाद भी नेपानगर से मंजू दादू, करैरा से रमेश खटीक को फिर टिकट मिल सकता है। 2018 में प्रत्याशी रहे सांची से मुदित शेजवार, सावन सोनकर सांवेर, सुधीर यादव सुरखी, राजकुमार खटीक करैरा, केपी सिंह मुंगावली, राधेश्याम पाटीदार सुवासरा टिकट की दौड़ से बाहर रहेंगे। केपी यादव गुना सांसद हो चुके हैं। उपचुनाव के दौरान शेजवार का विरोध सामने आ चुका है। कांग्रेस से आकर मंत्री पद से नवाजे गए प्रद्युम्न सिंह तोमर, रक्षा संतराम, महेन्द्र सिंह सिसोदिया, बृजेन्द्र यादव, गोविंद राजपूत, सुरखी, प्रभुराम चौधरी, तुलसीराम सिलावट और हरदीप सिंह डंग को कोई खतरा नहीं है। कांग्रेस नेताओं के आने से भाजपा के दिग्गज नेताओं को अपना चुनाव क्षेत्र छोडऩा पड़ा है। इनकी पूछ-परख बढ़ेगी।
सिंधिया के गढ़ में सबसे अधिक घमासान
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर चंबल में नई भाजपा और पुरानी भाजपा के अलग-अलग दावेदार हैं। भाजपा में टिकटों के लिए सिंधिया समर्थक और पुराने भाजपाइयों के बीच घमासान मचेगा। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए लोग टिकट के लिए तगड़े दावेदार हैं, तो वहीं पुराने भाजपाई भी टिकट की दौड़ में लगे हैं। ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट पर कांग्रेस के सतीश सिकरवार एमएलए हैं। इस सीट पर भाजपा के सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल सबसे बड़े दावेदार हैं। इसी सीट पर पुराने भाजपाई जय सिंह कुशवाहा, माया सिंह, अनूप मिश्रा की दावेदारी भी सामने आ रही है। ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रवीण पाठक एमएलए हैं। इस सीट से पुराने भाजपाई पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा, जयभान सिंह पवैया, अनूप मिश्रा, प्रियांशु शेजवलकर, अभय चौधरी बड़े दावेदार हैं। वहीं, नई भाजपा यानी सिंधिया समर्थक मदन कुशवाहा टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। इसके साथ ही पूर्व मेयर समीक्षा गुप्ता और पूर्व जिला अध्यक्ष कमल माखीजानी भी सिंधिया के सहारे टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। ग्वालियर विधानसभा सीट पर भाजपा के प्रद्युम्न सिंह सिंह तोमर एमएलए हैं। इस सीट पर तोमर टिकट के सबसे बड़े दावेदार हैं। इसी सीट पर पुराने भाजपाई जयभान सिंह पवैया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर की अंदरूनी दावेदारी चल रही है।