नेता पुत्रों की चिंता करनी होगी… अब भाजपा संगठन को

चंद माह बाद होने वाले विधानसभा के आम चुनावों में अब

भाजपा को नेता पुत्रों की ङ्क्षचता करनी होगी। इसकी वजह है चुनाव के ठीक पहले भाजपा नेताओं का सामने आने वाला अंसतोष। प्रदेश भाजपा में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, ऐसे में अब प्रदेश में भाजपा को उन नेताओं का भी ध्यान रखना होगा जिन्हें बीते चुनाव में उम्रदराज होने की वजह से टिकट से वंचित कर दिया गया था। ऐसे में पार्टी बुर्जुग नेताओं की जगह उनके उत्तराधिकारी यानी उनके दावेदार पुत्रों को कुछ हद तक महत्व देकर बढऩे वाले असंतोष का थाम सकती है। दरअसल प्रदेश भाजपा की कमान सम्हालने के बाद वीडी शर्मा द्वारा नेता पुत्रों को न तो युवा मोर्चा में कोई पद दिया गया है और न ही संगठन में कोई दायित्व, जबकि कई नेता पुत्रों की अपने इलाकों में तो ठीक आसपास के इलाकों में भी बेहद अच्छी पकड़ है और उन्हें संगठन में भी काम करने का मौका मिलता तो वे मौजूदा कई पदाधिकारियों से बेहतर काम में साबित होते। फिलहाल इस समय प्रदेश भाजपा संकट के दौर से गुजर रही है। अभी तक होता यह था कि कांग्रेस और दीगर दलों के नेता टूट कर भाजपा में जाते थे। संगठन के दम पर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का तमगा हासिल करने वाली भाजपा में अब उलटा होता दिखने लगा है। इसकी वजह भी है पार्टी के पुराने नेताओं को अपने सियासी अस्तित्व की चिंता सताने लगी है। लिहाजा वे मुखर हो रहे हैं। भाजपा के कई नेता तो अब पार्टी छोडक़र जाने लगे हैं। इसकी शुरुआत पूर्व मंत्री दीपक जोशी से हो चुकी है। उन्होंने कांग्रेस की राति-नीति को अपना लिया है। भाजपा जैसे अनुशासित दल से दोनों राज्यों में इतने पुराने नेताओं का जाना पार्टी को बड़ा झटका है। कई और नेता भी इस कतार में खड़े हो गए हैं।
यह सिलसिला आगे नहीं बढ़े, इसलिए भाजपा के नेता अब सतर्क हो गए हैं। दिल्ली से लेकर भोपाल तक के राजनेता अब पुराने नेताओं को मनाने में जुट गए हैं। वे नहीं चाहते हैं कि साथ और जोशी जैसा कदम दूसरे नेता उठाएं। भोपाल में मान-मनौव्वल की कमान खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संभाल रखी है। ऐसे में अब पार्टी से नाराज चल रहे नेताओं ने स्वयं की जगह अपने -अपने पुत्रों के लिए दबाब बनाने की तैयारी शुरु कर दी है। दरअसल उन्हें पता है कि अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति है। ऐसे में अपनी राजनैतिक विरासत बचाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे में कई नेता भी अपने पुत्रों को टिकट दिलाने की जुगत में हैं। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी हैं, लेकिन मौका किसे मिलता है यह तो देखने वाली बात होगी। राजनीति में वंशवाद पर अक्सर बहस होती है, क्योंकि यह मुद्दा चुनाव दर चुनाव बढ़ता ही जा रहा है। देश की राजनीति में ऐसे कई उदाहरण है, जहां एक ही परिवार की कई पीढिय़ां राजनीति में सक्रिय हैं और इससे मप्र भी अछूता नही है। इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के लिए कई नेताओं के पुत्र भी टिकट के दावेदार नजर आ रहे हैं। यह बात अलग है कि अब तक नेता पुत्रों ने खुलकर टिकट की दावेदारी नहीं की है, लेकिन वह जिस तरह से राजनीति में सक्रिय हैं, उसे उनकी दावेदारी से जोडक़र ही देखा जा रहा है। खास बात यह है कि बीजेपी द्वारा एक ही परिवार से दो टिकट न देने की बात पहले ही कही जा चुकी है , जिससे कुछ दिग्गज नेताओं की उम्मीदों को झटका लगा था, लेकिन बदले हुए हालातों में नेता पुत्रों की दावेदारी एक बार फिर दम पकड़ती नजर आ रही है।
लगाए जा रहे हैं कयास
पार्टी में असंतोष के बीच इस बात की चर्चा मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तेज है कि क्या बीजेपी अपने चुनाव लडऩे वाले क्राईट एरिया से समझौता करने वाली है। अगर ऐसा नहीं होता है तो कहीं न कहीं एक बार फिर अलग तरह का असंतुष्ट सक्रिय हो सकते हैं। प्रदेश में ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है, जिनके पुत्र टिकट के दावेदार है। 2013 व 2018 के विधानसभा चुनाव में भी इनमें से कई नोनिहालों ने टिकट मांगा था, लेकिन तब इन्हें टिकट नहीं मिला था, लेकिन कुछ नेताओं के पुत्रों को टिकट दिया गया था। अब इस बार जो नेता दावेदार बने हुए हैं उनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह राजनीति में पूरी तरह से एक्टिव हैं, वे बीते चुनाव के समय भी टिकट के दावेदार थे। वे पिता के संसदीय क्षेत्र मुरैना की राजनीति को भी उनकी गैर मौजूदगी में संभालते हैं। पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन टिकट की दावेदार हैं, बिसेन भी अपनी बेटी को विधानसभा चुनाव लड़वाने के लिए खुलकर पैरवी कर रहे हैं, कई कार्यक्रमों में गौरीशंकर बिसेन सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी मौसम मैदान में होंगी। 2018 के विस चुनाव में बिसेन ने अपनी बेटी के लिए टिकट की सिफारिश की थी, उस वक्त कार्यकर्ताओं का विरोध भी झेलना पड़ा था। लेकिन इस बार वह टिकट के दावेदार नजर आ रहे हैं।
इसी तरह से कद्दावर मंत्री और बीजेपी के सबसे सीनियर विधायक गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव भी लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं। वे लगातार दो लोकसभा चुनाव में दावेदारी जता चुके हैं, अब वे विधानसभा चुनाव में भी टिकट के दावेदार माने जा रहे हैं। वे पिता के विधानसभा क्षेत्र का पूरा काम संभालते हैं और वह युवा मोर्चा में प्रदेश उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसी तरह से मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा भी अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र में एक्टिव रहते हैं, ऐसे में वे भी दावेदार बने हुए हैं। सुकर्ण बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति में सदस्य हैं। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद प्रभात झा के पुत्र तुष्मुल झा भी ग्वालियर से बीते चुनाव से दावेदार बने हुए हैं। इनके अलावा पूर्व मंत्री माया सिंह के पुत्र पीताम्बर सिंह, जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ, मालिनी गौड़ के बेटे एकलव्य, सुमित्रा महाजन के पुत्र मंदार, गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित, कमल पटेल के बेटे सुदीप, और नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन की भी दावेदारी बनी हुई है। उधर, कहा जा रहा है कि इस बार भाजपा से दो नेता पुत्रों का टिकट अभी से तय है।
इनमें कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश का और जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ का नाम शामिल है।
जटिया भी टिकट के पक्ष में
कुछ समय पहले बीजेपी की केंद्रीय संसदीय बोर्ड में शामिल वरिष्ठ नेता सत्यनारायण जटिया भी नेता पुत्रों को टिकट देने के पक्ष में अपना मत जता चुके हैं। उनका कहना था कि नेता का पुत्र होना कोई दोष नहीं है, योग्य नेता पुत्रों को टिकट मिलना चाहिए, पार्टी में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है, जो योग्य है उसे टिकिट मिलना चाहिए चाहे वो नेता पुत्र क्यों हो या न हो। जटिया के इस बयान से बीजेपी के उन नेताओं की उम्मीदों को बल मिला है, जिनके पुत्र टिकट के दावेदार हैं।
महाआर्यमन व कार्तिकेय के नाम भी चर्चा में …
सिंधिया परिवार की चौथी पीढ़ी भी राजनीति में सक्रिय हो चुकी है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुत्र महाआर्यमन सिंधिया भी राजनीति में सक्रियता दिखा रहे हैं। खास बात यह है कि महाआर्यमन सिंधिया कुछ समय पहले ही ग्वालियर क्रिकेट बोर्ड के उपाध्यक्ष बने हैं, जिन्हें उनकी राजनीतिक एंट्री के तौर पर ही देखा जा रहा है। इसी तरह से शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय सिंह भी राजनीति में पूरी तरह से एक्टिव हो चुके हैं। वह पिता के विधानसभा क्षेत्र बुधनी में पूरा काम संभालते हैं, कार्तिकेय ने अब तक खुलकर टिकट भले ही नहीं मांगा हो लेकिन वह राजनीति में अपने पिता की विरासत संभालने के लिए पूरी तरह से तैयार नजर आ रहे है।
यह नेता हैं सक्रिय राजनीति में
सीएम सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा पूर्व मंत्री और वर्तमान में विधायक हैं, पूर्व सांसद कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग शिवराज सरकार में मंत्री हैं। मंत्री पूर्व विधायक सत्येंद्र पाठक के पुत्र संजय पाठक फिलहाल विधायक है, पूर्व सीएम वीरेंद्र कुमार सखलेचा के बेटे ओमप्रकाश सखलेचा मंत्री है। पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर ,पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय विधायक तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष भैरू पाटीदार की बेटी कविता पाटीदार राज्यसभा सांसद हैं। इसी तरह से पूर्व मंत्री हर्ष सिंह के बेटे विक्रम सिंह वर्तमान में विधायक तो पूर्व विधायक प्रेम सिंह दत्तीगांव के बेटे राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव मंत्री हैं।