चुनावी हालात बदलने के लिए… राहुल-कमलेश्वर हुए एक

दिग्विजय सिंह के प्रयास दिखाने लगे रंग.

मंगल भारत।मनीष द्विवेदी।बीते विधानसभा चुनाव में विंध्य अंचल का साथ नहीं मिलने से बहुमत से दूर रहने को मजबूर हुई कांग्रेस ने इस बार पूरी ताकत इस अंचल पर लगा रखी है। यही वजह है कि अब इस अंचल में कांग्रेस के रणनीतिकार अभी से दाम, साम, दंड और भेद सभी पर मिलकर काम कर रहे हैं। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूरी तरह से इस अंचल में सक्रिय बने हुए है, जिसके परिणाम आना शुरु हो गए हैं। खास बात यह है कि इस अंचल के दो प्रभावशाली नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और कमलेश्वर पटेल अब मत और मनभेद भुलाकर एक हो गए हैं। यह दोनों नेता इसके साथ ही एक ही मंच को साझा करते देखे जा सकते हैं। इसका फायदा कांग्रेस को मिलना तय है। अब इसे कांग्रेस के इतिहास दोहराने के लिए जद्दोजहद के रुप में देखा जा रहा है। अगर विंध्य अंचल की बात की जाए तो पिछली बार भाजपा ने यहां की 30 सीटों में से 24 पर कब्जा किया था, वहीं कांग्रेस को मात्र छह सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। वजह साफ है। विंध्य में एक समय पार्टी के दो दिग्गज नेता अर्जुनसिंह और श्रीनिवास तिवारी के कारण कांग्रेस का वर्चस्व था। लेकिन दोनों दिग्गजों के निधन के बाद वहां अजय सिंह-कमलेश्वर पटेल दो नए ध्रुव बन गए थे, जो विपरीत दिशाओं में चलते रहे, जिसका खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। मगर आज स्थिति बदली है। विंध्य के इन दोनों दिग्गजों के एक होने को विंध्य में कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है। अगर सबकुछ ठीक चला तो कांग्रेस विंध्य में फिर परचम लहरा सकती है।
दरअसल, विंध्य में बीते दो दशक से कांग्रेस पिछड़ती रही। पिछले विस चुनाव में उसे मात्र 6 सीटें ही मिल सकीं। विंध्य के हाथ से जाने से पार्टी के हाथ से सत्ता की चाबी भी फिसलती रही है। इसकी मुख्य वजह विंध्य के नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई को माना जाता है। विपरीत ध्रुव अब करीब आ रहे हैं। पूर्व सीएम स्व. अर्जुन सिंह के पुत्र पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और स्व. इंद्रजीत पटेल के पुत्र कमलेश्वर पटेल इस समय कांग्रेस के विंध्य के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं। अर्जुन सिंह और इंद्रजीत पटेल के निधन के बाद इन दोनों परिवारों के बीच ऐसा अबोलापन हुआ कि कांग्रेस को उससे कहीं न कहीं नुकसान हुआ। 2018 में कांग्रेस को यहां ऐसा झटका लगा कि केवल छह सीटें ही आईं और अजय सिंह भी चुनाव हार गए। वहीं कमलेश्वर पटेल चुनाव जीत गए तो कमलनाथ सरकार में विंध्य के प्रतिनिधित्व के रूप में उन्हें मंत्री बना दिया गया। इससे उनका कद बढ़ गया और इस पूरे कार्यकाल में पटेल को सरकार जाने के बाद संगठन में विशेष महत्व मिलता गया। मगर अजय सिंह हार के बाद पिछले चार साल से विंध्य क्षेत्र में सक्रिय रहे। उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झौंक दी।
तीन दर्जन सीटों पर पहुंच चुके हैं दिग्विजय
दिग्विजय ने अभी तक 19 जिलों की 35 सीटों के दौरे कर पार्टी में समन्वय बनाने की पहल की है। इनमें भोपाल, सीहोर, हरदा, सतना, रीवा, दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर, गुना, विदिशा सागर, दमोह, शाजापुर, उज्जैन, धार, मंदसौर जिले की सीटें शामिल हैं। दिग्विजय आज अनूपपुर में हैं और कल 14 मई को कटनी जिले की मुड़वारा सीट पर। 2 जून को उनका दूसरा दौरा छतरपुर के चंदला और बिजावर में पूरा होगा।
दिग्विजय की मौजूदगी बनी साक्षी
अजय और कमलेश्वर के रिश्तों में अब लचीलापन दिखना शुरु हो गया है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर संगठन की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कमजोर प्रदर्शन वाली विधानसभा सीटों व इलाकों की जिम्मेदारी दिए जाने के बाद अजय सिंह व कमलेश्वर पटेल के रिश्तों में बदलाव दिखना शुरु हो गया है। दिग्विजय सिंह सीधी जिले के धौहनी विधानसभा क्षेत्र में कार्यक्रम में पहुंचे थे तो ये दोनों नेता भी वहां पहुंचे , जहां पर वे एक-दूसरे को देख मुस्कुराते औश्र बातचीत करते नजर आए। बड़ी बात तब हुई जब मंच पर इन दोनों विपरीत ध्रुवों को एक-दूसरे के साथ गुपचुप बातचीत करते हुए देखा गया। इसका फोटो वायरल होने के बाद कार्यकर्ताओं के बीच भी यह चर्चा का विषय बन गया। अब कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि दो दशक बाद जीत का सूखा खत्म हो सकता है।