मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ मप्र,
राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में होने हैं। आम चुनाव से पहले होने वालेे इन चुनावों को भाजपा का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। ऐसे में भाजपा आलाकमान का सबसे अधिक फोकस मप्र पर है। भाजपा का मानना है कि केंद्र में सरकार बरकरार रखने के लिए मप्र में पांचवीं बार सरकार बनना जरूरी है। लेकिन प्रदेश में पिछले कुछ दिनों के दौरान जिस तरह की स्थिति और परिस्थिति देखने को मिली है, उससे आलाकमान कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है। इसलिए प्रदेश में पांचवीं बार भाजपा सत्ता में कैसे आएगी, इसकी जिम्मेदारी दिल्ली ने खुद ले ली है। यानी अब मप्र में चुनावी रणनीति केंद्रीय संगठन के नेताओं के हाथ में होगी। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव गंवाने के बाद भाजपा की नजरें मप्र को बचाने और राजस्थान और छत्तीसगढ़ को हथियाने की ओर हैं, हालांकि, ये राह आसान नहीं है। साल 2003 से मप्र पर शासन कर रही भाजपा को केवल एक ही झटका 2018 में लगा है, लेकिन इस बार भी राह आसान नजर नहीं आ रही। सत्ता विरोधी लहर, असंतोष जैसे कई मुद्दे भाजपा को परेशान कर सकते हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा 5वीं बार सत्ता पर कैसे आए, इसकी जिम्मेदारी शीर्ष नेतृत्व ने ले ली है। सूबे में पार्टी के अंदर समन्वय और चुनाव की रणनीति दिल्ली के हिसाब से तैयार की जा रही है। यहीं वजह है कि हाईकमान के इशारे पर पार्टी के दिग्गज नेता लगातार मध्यप्रदेश के दौरे कर रहे है। उनके द्वारा प्रदेश की संगठन टीम से लेकर सरकार के साथ बैठकर रायशुमारी की जा रही है।
वरिष्ठ नेताओं को किया सक्रिय
मप्र में पिछले एक पखवाड़े से जिस तरह से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सक्रिय है, उसके पीछे वजह बताई जा रही है कि पार्टी हाईकमान ने सुनिश्चित कर दिया है कि विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति और समन्वय बनाने का काम दिल्ली से होगा। एंटी इनकम्बेंसी जैसे फैक्टर दूर करने संघ से लेकर वरिष्ठ नेताओं को लगाया गया है, तो सरकार की योजनाओं का भी इस तरह से प्रचार प्रसार किया जा रहा है, जो सीधे जनता के दिल-दिमाग में बैठे। हालांकि सत्ता विरोधी लहर से घिरे सीएम चौहान लाड़ली बहना योजना, दीनदयाल अंत्योदय रसोई, हजारों अवैध कॉलोनियों को वैध करने का ऐलान कर चुके हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता या कार्यकर्ता मतदाता को यह बताने का प्रयास कर रहा है कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में जिस तरह से विकास या हितग्राहीमूलक कार्य हो रहे है, वैसे कांग्रेस के शासन ने कभी नहीं हुए। विशेष कर नव मतदाताओं को कांग्रेस के कार्यकाल के भ्रष्टाचार और कुशासन के बारे में बताया जा रहा है। सरकार के कार्यक्रमों में भी योजनाओं के बारे में सरल ढंग से जानकारी दी जा रही है, जिससे उनके मस्तक में यह बात पूरी तरह से आ जाए कि भाजपा से ही उनका और प्रदेश का हित है।
नई तिकड़ी को बड़ी जिम्मेदारी
भाजपा सूत्रों का कहना है कि जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं पार्टी का एक वर्ग अपने आप का उपेक्षित महसूस कर रहा है। खबर है कि सिंधिया ने सभी समर्थकों को टिकट मिलने की शर्त में भाजपा का दामन थामा था। अब भाजपा के पास इस शर्त की मुश्किलें जानते हुए भी मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। सियासी गलियारों में चर्चाएं हैं कि सिंधिया खेमे के विधायकों के बढ़ते प्रभाव के चलते भी पुराने भाजपा नेताओं में असंतोष बढ़ा है। ऐसे में आलाकमान ने नेताओं के बीच समन्वय बनाने और असंतोष दूर करने के लिए नई तिकड़ी यानी पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को समन्वय बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है, जबकि चुनावी रणनीति का काम केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिया गया है। इन नेताओं से कहा गया है कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के साथ तालमेल बनाकर मध्यप्रदेश के लिए काम करें। राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल का भी मार्गदर्शन लिया जाएगा। कैलाश विजयवर्गीय पिछले कुछ दिनों में तीन से चार बार भोपाल का दौरा कर चुके हैं, उनकी देर रात की बैठकें ऐसे नेताओं के साथ हो रही है, जो पार्टी फोरम से बाहर जाकर बयानबाजी कर रहे थे। एक नेता की माने तो जिस तरह से सागर का राजनैतिक घटनाक्रम सामने आया था, उसे विजयवर्गीय के हस्तक्षेप के बाद शांत कराया गया, वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा भी पार्टी को एक बार फिर से सत्ता पर लाने अपने स्तर पर सक्रिय हो गए हैं।
असंतुष्टों को साधेगी दिल्ली
राज्य में भाजपा नेताओं के दल बदल ने वरिष्ठ नेताओं को भी चिंता में डाल दिया है। विजयवर्गीय समेत कई बड़े नाम इस समस्या पर खुलकर बोल चुके हैं। विजयवर्गीय ने कहा, कांग्रेस के पास भाजपा को हराने की ताकत नहीं है। भाजपा ही है, जो भाजपा को हरा सकती है। अगर पार्टी संगठन और सरकार की तरफ से की गई गलतियां समय रहते नहीं सुधारी गईं, तो भाजपा ही भाजपा को हरा देगी। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक ने कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में असंतुष्टों को साधने का काम अब दिल्ली दरबार करेगा। जानकारों में माने तो चुनाव लडऩे का दावा कर रहे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बारे में दिल्ली ही निर्णय करेगा। इसके लिए समन्वय और रणनीति का काम देख रहे नेताओं से फीडबैक लिया जाएगा, साथ ही संघ और भाजपा की अंदरुनी सर्वे रिपोर्ट भी तय करेगी कि इन नेताओं को टिकट देने से पार्टी का हित होगा या नहीं। शीर्ष नेतृत्व की कोशिशें है कि सभी संतुष्ट हो रहे, जिससे भितरघात जैसी स्थिति निर्मित नहीं हो, इसलिए इसके लिए अभी से प्रयास शुरू कर दिए गए है। सूत्रों की माने तो ऐसे नेताओं की जल्द ही दिल्ली या भोपाल में वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक हो सकती है, जिसके नतीजे से पार्टी हाईकमान को अवगत कराया जाए।