इसी माह संभावित है केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार , मंथन जारी.
मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह तय है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में इस माह संभावित विस्तार में मप्र से कई नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। इसके जरिए पार्टी आलाकमान की रणनीति क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को साधना है। दरअसल यह मंत्रिमंडल विस्तार इस साल के अंत में मप्र सहित तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर किया जा रहा है। तीनों ही राज्य भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। प्रदेश से जिन नामों को मंत्रिमंडल में लिए जाने की चर्चाएं हैं, उनमें आधा दर्जन नाम शामिल हैं। माना जा रहा है कि यह विस्तार अगले हफ्ते हो सकता है, जिसके लिए उच्च स्तर पर मंथन का दौर जारी है। इस विस्तार के दौरान कुछ चेहरों को मंत्रिमंडल से हटाकर संगठन में भी भेजे जाने की संभावनाएं हैं। इसकी वजह से माना जा रहा है कि सत्ता और संगठन के चेहरों में अदला-बदली हो सकती है। हाल ही में बीते सप्ताह मोदी सरकार के नौ साल 30 मई को पूरे हुए हैं। फिलहाल लोकसभा चुनाव में अभी एक साल का समय है। इसके बाद भी भाजपा अभी से लोकसभा चुनाव के लिए पूरी तरह से चुनावी मोड में नजर आना शुरु हो गई है।
दरअसल साल के अंत में विधानसभा के आम चुनाव होने हैं। यह चुनाव मप्र के अलावा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने हैं। यह तीनों हिंदी भाषी प्रदेश भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन तीनों ही प्रदेशों में इस बार भाजपा को कांग्रेस से अभी से बेहद कड़ी चुनौति मिल रही है। मप्र में भाजपा के लिए चुनाव में बेहद करीबी मुकाबला होने का अनुमान लगाया जा रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण साधने के प्रयास शुरु कर दिए गए हैं। इसी रणनीति के तहत प्रदेश के कुछ सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना लगभग तय है। इनमें सतना सांसद गणेश सिंह, जबलपुर से राकेश सिंह, मंदसौर से सुधीर गुप्ता एवं रतलाम के डीएस डामोर के नाम बेहद चर्चा में हैं। इनमें से गणेश सिंह और राकेश सिंह दोनों लगातार चार बार से सांसद बनते आ रहे हैें। गणेश सिंह ओबीसी वर्ग के साथ ही विंध्य अंचल से आते हैं। प्रदेश में इन दिनों ओबीसी आरक्षण बड़ा चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। कांग्रेस भी इस मामले में भाजपा पर आरोप प्रत्यारोप लगाती रहती है। गणेश सिंह क्षेत्रीय व जातिगत समीकरण दोनों में ही फिट बैठते हैं। इस वजह से उन्हें मौका दिया जा सकता है। इसके अलावा राकेश सिंह को संगठन का नेता माना जाता है। वे पूर्व में मप्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे महाकौशल से आते हैं। उनकी वरिष्ठता और क्षेत्रीय समीकरण के मद्देनजर उन्हें भी मौका दिया जा सकता है। दावेदारों में तीसरा नाम सुधीर गुप्ता का है। वे लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं। वे संगठन में केंद्रीय सहकोषाध्यक्ष भी हैं। इसके अलावा अनुसूचित जनजाति वर्ग से अगर किसी को मौका दिया गया तो राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी का नाम आता है। सोलंकी संघ पृष्ठभूमि के नेता हैं और उन्हें केंद्रीय स्तर पर पसंद भी किया जाता है। इनके अलावा पार्टी में दो अन्य नामों की भी चर्चा बनी हुई है।
पांच सांसद हैं अभी मंत्री
वर्तमान में प्रदेश से आधा दर्जन सांसद केंद्र सरकार में मंत्री हैं। इनमें नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, फग्गन सिंह कुलस्ते, वीरेंद्र खटीक और प्रहलाद पटेल के नाम शामिल है। केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में एल. मुरूगन भी प्रदेश से ही राज्यसभा सांसद हैं पर उनका सीधा नाता प्रदेश से नहीं है। इसी तरह से मप्र के कोटे से ही एक अन्य केन्द्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान हैं। वे मप्र से ही राज्यसभा सांसद हैं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र उड़ीसा में रहता है।
प्रदेश मंत्रिमंडल में भी विस्तार की अटकलें
मुख्यमंत्री की पिछले कुछ दिनों से संगठन नेताओं के साथ लगातार हो रही बैठकों के चलते इस बात के कयास लगाए जाने लगे हैं कि सीएम चुनाव के कुछ महीने पहले अपने कुनबे में विस्तार कर सकते है। इसके पीछे कारण यह भी है कि सीएम अपने पिछले कार्यकालों में ऐसा कर चुके है। भाजपा इस बार हर हाल में चुनाव जीतना चाहती है। संगठन इसके लिए पिछले एक साल में रणनीति तैयार कर उस पर काम कर रहा है। अब मंत्रिमंडल में विस्तार कर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन को साधने पर भी विचार हो रहा है। प्रदेश सरकार में अभी 31 मंत्री हैं। विधायकों की संख्या के मान से सीएम अभी तीन और विधायको को मंत्री बना सकते हैं। मंत्री पद के लिए विंध्य, मालवा और महाकौशल मिलाकर एक दर्जन विधायकों के नाम चर्चा में है। फिलहाल राजनीतिक कारणों से ग्वालियर-चंबल से अंचल से सर्वाधिक मंत्री सरकार में हैं। इसके साथ ही जून में शेष रह गए निगम मंडल और विकास प्राधिकरणों में भी सियासी नियुक्तियां की जा सकती हैं।
इन मंत्रियों को हटाया जा सकता है
मध्य प्रदेश के कोटे से शामिल मंत्रियों में से दो से तीन मंत्री हटाए जा सकते हैं। इनमें से कुछ को संगठन में बेहद अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। मंडला से सांसद और आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते की केंद्रीय मंत्री पद से छुट्टी होना तय मानी जा रही है। इसकी वजह है आदिवासियों के बीच डॉ हीरालाल अलावा का संगठन जयस लगातार अपनी पैठ बढ़ाता जा रहा है। मालवा के आदिवासी नेता को मंत्री बनाकर मोदी सरकार ना केवल आदिवासी वोटों को साधना चाहती है, बल्कि कुलस्ते की छुट्टी के बाद होने वाले असंतोष को भी थामा जा सकता है। उनकी जगह राज्य सभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी को मौका मिलना तय माना जा रहा है। बीच-बीच में उनका नाम मुख्यमंत्री पद के रूप में भी उछलता रहा है। इसके अलावा मोदी सरकार एक चौंकाने वाला नाम भी आगे कर सकती है। यह चौंकाने वाला नाम जबलपुर से आने वाली राज्यसभा सदस्य सुमित्रा वाल्मीकि का हो सकता है जो अनुसूचित जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। अगर सुमित्रा वाल्मीकि को मंत्रिमंडल लिया जाता है तो बुंदेलखंड के इसी वर्ष से आने वाले वीरेंद्र खटीक की छुट्टी होना तय है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ज्योतिराज सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद सिंह पटेल की कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। वहीं मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को भी संगठन में भेजे जाने की चर्चा है।