रेलवे को नहीं यात्रियों के स्वास्थ्य की चिंता

खाद्य पदार्थों की जांच में गंभीर लापरवाही

भोपाल/मंगल भारत। लगता है रेलवे को सिर्फ आय की ही चिंता रहती है, जिसकी वजह से वह यात्रियों के स्वास्थ्य तक में गंभीर लापरवाही बरतता है। यही नहीं अगर स्वास्थ्य की बात की जाए तो भोपाल रेल मंडल से निकलने वाली दो सैकड़ा से अधिक ट्रेनों में हर दिन दो से ढाई लाख यात्री यात्रा करते हैं। जो रेलवे स्टेशन से लेकर चलती ट्रेन में बिकने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। इसके बाद भी रेलवे प्रशासन ने खाद्य पदार्थों की जांच के नाम पर महज एक फूड सेफ्टी सुपरवाइजर के ही जिम्मे यह काम छोड़ रखा है। इसकी वजह से यात्रियों को न केवल घटिया खाद्य पदार्थ मिलता है, बल्कि उसे महंगे दामों पर भी खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
यात्रियों की जेब काटने के लिए रेलवे स्टेशन के बेंडरों ने नया तरीका खोज लिया है। उनके द्वारा कंपनियों से बाजार में मिलने वाले पैक्ड खाद्य सामग्री से लेकर अन्य सामानों पर दोगुना मूल्य अंकित करवाया जाने का खेल खुलकर खेला जा रहा है। ऐसे बेंडरों पर कार्रवाई के नाम पर शून्य है। इसी तरह से ट्रेनों से लेकर स्टेशनों तक पर अवैध बेंडरों की भरमार बनी हुई है। इनकी रेलवे के अलावा जीआरपी व आरपीएफ से मिलीभगत रहती है, जिसकी वजह से वे भी इनकी खुलकर अनदेखी करते रहते हैं। इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतान पड़ता है। बावजूद इसके पूरे मंडल में बिकने वाले सैकड़ों तरह के खाद्य पदार्थों की जांच में लापरवाही बरती जाती है। अब सवाल यह है कि एक फूड सेफ्टी सुपरवाइजर इतनी ट्रेनों में बिकने वाले भोजन की जांच कैसे कर सकता है। खास बात यह है कि फूड सैंपल की जांच के बाद रिपोर्ट में गड़बड़ी सामने आने पर भी वेंडर के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है। पमरे जोन और भोपाल रेल मंडल के स्टेशनों से गुजरने वाली ट्रेनों में शुद्ध खाना इसलिए ही नहीं मिल पा रहा है। गौरतलब है कि समर सीजन में इन दिनों स्टेशन सहित ट्रेनों में अवैध वेंडरों की संख्या बढ़ गई है। जिससे यात्रियों द्वारा लगातार खाने-पीने के सामान की गुणवत्ता को लेकर शिकायतें की जा रही है। विगत दिनों दक्षिण एक्सप्रेस में खराब खाने को लेकर यात्रियों द्वारा शिकायत की गई थी। इस दौरान मौके पर पहुंच अधिकारियों ने खाने की जांच कर मामले को वहीं दबा दिया। इस तरह की शिकायतें रोजाना सामने आ रही हैं, लेकिन अधिकारी ठीक से जांच नहीं कर रहे हैं।
महज हर माह लिए जाते हैं चार सैंपल
रेलवे सूत्रों के अनुसार फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट के तहत पूरे मंडल में हर माह महज चार सैंपल लिए जाते हैं। यह भी सिर्फ खाना पूर्ति के लिए ही सैंपल लिए जाते हैं। दरअसल, 2012 में एफएसएसए लागू होने के पहले तक हर स्टेशन पर रेलवे ने सीनियर हेल्थ इंस्पेक्टर्स को फूड सैंपलिंग का काम भी सौंपा था। तब अकेले भोपाल स्टेशन से हर महीने औसतन 10 नमूनों की जांच हो रही थी, लेकिन अब इस समय अब सिर्फ औसतन चार नमूने लिए जा रहे है, जबकि ट्रेनों व यात्रियों की संख्या दस सालों में दो गुना तक बढ़ गई, लेकिन फूड सेफ्टी सुपरवाइजर की संख्या नहीं बढ़ाई जा रही है। भोपाल रेल मंडल सहित पमरे जोन में ट्रेन व स्टेशन पर मिलने वाले खाद्य और पेय सामग्रियों के नमूनों की जांच के लिए यहां कोई लैब तक नहीं है।