ज्यों- ज्यों दवा दी, मर्ज बढ़ता ही गया भाजपा में कलह के कैक्टस

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। चुनावी साल में भाजपा के


लिए पार्टी के नेताओं के बीच तेजी से उग रहे कलह के कैक्टस भारी मुसीबत बनते जा रहे हैं। हालत उस मरीज के समान हो गए हैं, जिसे ज्यों- ज्यों दवा दी, मर्ज बढ़ता ही गया। इसमें भी सत्ता व संगठन के लिए पार्टी के अपने ही विधायक व मंत्री ही बड़ी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। प्रदेश का शायद ही ऐसा कोई अंचल हो, जहां पर विधायकों व मंत्रियों की आपस में और संगठन से पटरी बैठ रही हो। यही वजह है कि अब खुद मुख्यमंत्री ने ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए जिला कोर कमेटियों के सदस्यों की बैठक करना शुरु कर दिया है। इन बैठकों में जिस तरह से आरोप प्रत्यारोप अब तक सामने आए हैं , उससे मुख्यमंत्री के साथ ही संगठन भी हतप्रभ है।
यह सब ऐसे समय चल रहा है, जबकि प्रदेश में चंद माह बाद ही विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है। मौजूदा माहौल के हिसाब से माना जा रहा है कि बीते चुनाव की ही तरह इस बार भी भाजपा को चुनाव में कांग्रेस से बेहद कड़ी चुनौती मिलना तय है। अभी जिस तरह से सत्ता व संगठन अपने नेताओं के आपसी द्वंद्व को समाप्त कराने में उलझी हुई , उससे पार्टी की चुनावी तैयारियां भी प्रभावित होना तय है। इसके उलट कांग्रेस अब पूरी तरह से चुनावी मोड में आकर जामीनी स्तर पर तेजी से काम कर रही है। सागर जिले का मामला अभी पूरी तरह से सुलझा भी नही है कि अब नया मामला उज्जैन का मुसीबत बढ़ा रहा है। इस बीच अफसरशाही भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ाने में जुट गई है। इसका ताजा मामला इंदौर में बजरंग दल कार्यकर्ताओं पर किया गया लाठीचार्ज और दमोह के गंगा जमना स्कूल में धर्मांतरण के प्रयासों का विरोध करने वालों पर की जाने वाली कार्रवाई है।
भाजपा में नेताओं के बीच आपस में अघोषित रुप से जारी जंग को समाप्त कराने के लिए ही सत्ता व संगठन ने मिलकर जिलों की कोर कमेटी के सभी सदस्यों को भोपाल बुलाकर बैठक करना शुरु किया है। इन बैठकों में जिस तरह से बड़े नेता आपस में आरोप प्रत्यारोप कर भिडऩे पर आमादा हो रहे हैं, उससे सत्ता व संगठन दोनों की ही ङ्क्षचताएं बढ़ती जा रही हैं। ताजा मामला उज्जैन जिले का है। इस जिले की कोर कमेटी की बैठक दो दिन पहले सीएम निवास में बुलाई गई थी। बैठक में उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के खिलाफ पूर्व मंत्री पारस जैन और पूर्व सांसद डॉ. चिंतामणि मालवीय समेत तमाम नेता खुलकर खड़े हो गए। इस दौरान मुख्यमंत्री के सामने ही यादव और डॉ. मालवीय के बीच तीखी बहस हो गई। दरअसल विवाद की वजह रही वह जमीन जिसे हाल ही में तैयार किए गए मास्टर प्लान में शामिल कर लिया गया है। यह जमीन सिंहस्थ की है , लेकिन अब उसे आवासीय किया जा रहा है। पारस जैन और मालवीय ने कहा कि इससे गलत संदेश जा रहा है। विवाद के बीच सीएम ने समझाया कि मैं ट्वीट करके बता चुका हूं कि अभी मास्टर प्लान लागू नहीं हुआ है। तो जमीन कैसे बाहर होगी। इस पर मालवीय ने कहा- भाई साहब इससे कुछ नहीं होगा।
कैबिनेट में ले जाकर स्थिति साफ करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह पब्लिसिटी का मामला नही है, बल्कि जनता को भी उत्तर देना है। मुख्यमंत्री व संगठन महामंत्री हितानंद के सामने इस तरह का विवाद होने से समझा जा सकता है कि प्रदेश में क्या हालात बने हुए हैं। इसके पहले भी सागर, शिवपुरी सहित कई अन्य जिलों की बैठक में भी इसी तरह के कुछ हालात सामने आ चुके हैं। दरअसल मंत्री विधायकों व कार्यकर्ताओं को तबज्जो नहीं देते हैं, तो विधायक भी संगठन व कार्यकर्ताओं को। इन मामलों को लेकर सियासी समीक्षकों का कहना है कि चुनाव में भाजपा को हिट विकेट से बचना है , तो अंदरुनी अदावद पर पूरी तरह से शिकंजा कसना होगा। गौरतलब है कि भाजपा में अंदरूनी तौर पर जारी अदावद को लेकर पहले ही भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कह चुके हैं कि भाजपा को भाजपा ही हरा सकती है। उनका इशारा भाजपा में नेताओं के बीच आपसी मतभेदों की ओर था। दरअसल पार्टी में इस तरह की स्थिति बनने की कई वजहें मानी जा रही है, जिसमें प्रमुख रूप से श्रीमंत का अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल होना, संगठन में बड़े पैमाने पर पीढ़ी परिवर्तन किया जाना और क्षेत्रीय संतुलन की अनदेखी की जाना।
इसके अलावा जिस तरह से भाजपा व कांग्रेस ने प्रदेश में उप्र की तरह मध्य प्रदेश में जातीय सियासत शुरु की है, उसे भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। कई जिलों में मंत्रियों के बीच विवाद सार्वजनिक हो चुके हैं। इस आपसी खींचतान और विवादों के कारण स्थिति किस हद तक बिगड़ी चुकी है इससें ही पता चलता है कि कांग्रेस ऐसे मामलों को न केवल तूल देने में लग गई है , बल्कि कांग्रेस नेता अब मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप खुलकर लगाने लगे हैं। इस तरह के मामलों में फिलहाल संगठन चुप्पी साधे हुए है। हालांकि अब कयास लगाए जा रहे हैं कि अंदरूनी तौर पर डैमेज कंट्रोल करने के लिए संगठन कुछ कड़े कदम उठा सकता है।
विंध्य भी बड़ा रहा है मुश्किल….
विंध्य अंचल में भी पार्टी की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। इस अंचल में सत्ता में भागीदारी को लेकर तो पहले से ही असंतोष है, ऐसे में पार्टी के ही विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार पार्टी के सामने संकट खड़ा कर रहे हैं। इस अंचल में बीते कुछ दिनों से विधायक त्रिपाठी और गणेश सिंह के बीच जिस तरह के खुलकर आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं, उससे भी पार्टी की साख पर बट्टा लग रहा है। इसी तरह से बालाघाट में मंत्री दर्जा प्राप्त दो नेता खुलेआम लड़ रहे हैं। पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन और मप्र खनिज निगम के अध्यक्ष प्रदीप जायसवाल के बीच विवाद प्रदेश संगठन तक आ गया है।
यह भी हैं मामले
पार्टी के अंदर जारी गुटबाजी और अंतर्कलह का फायदा अब विपक्ष भी उठाने में पीछे नहीं रह रहा है। इसका उदाहरण हाल ही में कांग्रेस के पूर्व मंत्रीे जयवर्धन सिंह द्वारा पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया पर मनरेगा में कमीशन लेने का आरोप लगाना। उधर, जबलपुर के धीरज पटैरिया की पार्टी में वापसी पर पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री मेघराज जैन विरोध कर रहे हैं। इसी तरह से इस अंदरुनी कलह का फायदा पुलिस से लेकर प्रशासन तक उठाने में पीछे नही है। इंदौर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर हुए लाठीचार्ज की वजह भी एक कद्दावर नेता द्वारा एक ड्रग तस्कर को दिया गया संरक्षण बताया जा रहा है तो वहीं, दमोह में गंगा जमुना स्कूल के मामले में भी प्रशासन पूरी तरह से स्कूल संचालकों के पक्ष में खड़ा हुआ नजर आ रहा है।
समन्वय का अभाव
प्रदेश का ग्वालियर-चंबल संभाग ऐसा है , जहां पर बीते ढाई साल से पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस अंचल में मूल भाजपाई व श्रीमंत समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच अनवोला तक की स्थिति बनी हुई है। पार्टी इन हालातों को ठीक करने के लिए अपने कई नेताओं तक को लगा चुकी है , लेकिन मामला जस का तस ही बना हुआ है। इसकी वजह है इस अंचल में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय का न बन पाना। यही वजह है कि अब प्रदेश संगठन ने इस अंचल की जिम्मेदारी विजय दुबे को दी है। उन्हें चंबल संभाग का प्रभारी बनाया गया है। संघ पृष्ठभूमि से आने वाले दुबे पहले भी चंबल में संगठन मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं और लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के चुनाव में बतौर संचालक की भूमिका भी निभा चुके हैं।
सागर में बन चुके हैं दो गुट
बीते दिनों जब सागर जिले की कोर कमेटी की बैठक हुई थी, तब उसमें शामिल होने मंत्री भूपेन्द्र सिंह नहीं पहुंचे थे। इसके पहले उनके खिलाफ सागर जिले के दोनों मंत्री गोपाल भार्गव व गोविंद सिंह जिले के अन्य विधायकों व जिला अध्यक्ष के साथ सीएम व संगठन से भी खुलकर शिकायत कर चुके हैं। इस बीच भूपेंद्र सिंह के विरुद्ध लोकायुक्त में शिकायत दर्ज होने के मामले के बाद इन नेताओं के बीच मनभेद और बढ़ गया है। शिकायत के मामले में पर्दे के पीछे सागर के ही राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत का नाम चर्चा में बना हुआ है।