सत्ता के लिए भाजपा और कांग्रेस की रणनीति.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में मिशन 2023 को फतह करने के लिए भाजपा और कांग्रेस का सबसे अधिक फोकस उन सीटों पर है, जिन सीटों पर उनकी कम अंतर से जीत या हार हुई थी। दोनों पार्टियों ने इन सीटों को कमजोर की श्रेणी में शामिल कर, इनके लिए अलग से रणनीति बनाई है और उन पर फोकस किया है। दरअसल, 2018 में दोनों पार्टियां बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई थीं। इसकी सबसे बड़ी वजह कम अंतर से हार वाली सीटें रही हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो गया है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस ने कमजोर सीटों पर सबसे अधिक सक्रियता बढ़ा दी है। दोनों पार्टियों का मानना है की ये कुछ सीटें गेमचेंजर साबित हो सकती हैं। कमजोर सीटों में भी सबसे अधिक फोकस पिछली बार एक हजार वोट या उससे कम अंतर से जीत-हार वाली सीटों पर है। उल्लेखनीय है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत वोट व 114 सीटें मिली थी। भाजपा को 41 प्रतिशत वोट व 109 सीटें मिलीं। 1,55,95,153 वोट कांग्रेस व भाजपा को 1,56,42,980 वोट मिले थे। दोनों में 47,817 वोटों का ही अंतर था। कम जीत-हार वाली सीटों के समीकरणों को भी दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के सत्ता परिवर्तन ने बदल दिए हैं। ग्वालियर-चंबल की सभी सीटों पर सिंधिया का सीधा असर रहा। वहीं 28 सीटों पर उपचुनाव हुए, इनमें 19 सीट भाजपा और 9 सीट कांग्रेस जीती थी। इसमें सुवासरा जैसी सीट शामिल रही। उपचुनाव के बाद के परिणामों के आधार पर भी कम जीत-हार वाली सीटों पर दोनों पार्टियों का फोकस है।
यह हैं कम अंतर की जीत
बीते आम विधानसभा चुनाव के अलावा उपचुनाव में कई सीटों पर बेहद रोचक करीबी मुकाबला रहा है। इनमें ऐसी 10 सीटें रहीं जिन पर हार-जीत का अंतर 1,000 से भी कम रहा, इनमें भी 8 सीटों पर अंतर 800 से कम रहा है। इन 10 सीटों में से 7 कांग्रेस ने जीतीं और 3 भाजपा ने। इनमें 7 सीटें भाजपा ने 1,000 से भी कम अंतर से हारीं, अगर ये सीटें वह जीत लेती तो उसी समय बहुमत से सरकार बना लेती। इसी तरह 3 सीटें कांग्रेस ने हारीं। यही नहीं 5,000 से कम अंतर वाली 46 सीटें रहीं। इसी तरह से 16 सीटों पर अंतर 1,300 से कम रहा, इनमें 2,000 से कम अंतर वाली सीटें जोड़ दें ,तो संख्या 18 हो जाती हैं। वहीं, 3,000 से कम अंतर वाली सीटों को देखें तो देखें तो सीटों की संख्या 30 हो जाती है। कांग्रेस जिन तीन सीटों पर 1,000 या कहें कि 800 से कम मतों से हारी है, वे जौरा, बीना और कोलारस हैं। जौरा में उसे 511 मतों से हार मिली, बीना में 632 मतों से और कोलारस में 720 मतों से उसने चुनाव हारा। भाजपा जिन 7 सीटों पर 1,000 से भी कम मतों से हारीं उनमें ग्वालियर दक्षिण 121 मतों से, सुवासरा 350, जबलपुर उत्तर 578, राजनगर 732, दमोह 798, ब्यावरा 826 और राजपुर 932 मतों से भाजपा ने हारी। वहीं, इंदौर-5 1,133 मतों से, चांदला 1,177 मतों से और नागौद सीट 1,234 मतों से भाजपा जीती। भाजपा कुल 8 सीटें 2,000 से कम अंतर से जीती है। उसने कांग्रेस से (जौरा, बीना, कोलारस, इंदौर-5, चंदला और नागौद) और 2 बसपा से (देवतालाब 1080 मतों से एवं ग्वालियर ग्रामीण 1517 मतों से) जीती हैं। इसी तरह से भाजपा मंधाता 1236, नेपानगर 1264 मतों से हार गई। इस तरह कुल 9 सीटें 1300 से कम मतों से हारीं। गुन्नौर सीट भी वह 1984 मतों से हारी। वहीं, दो दिग्गज कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बाला बच्चन (932) और भाजपा के पूर्व मंत्री महेंद्र हार्डिया (1133) अपनी सीट बचाने में भी कामयाब रहे हैं। बाला बच्चन राजपुर से तो हर्डिया इंदौर-5 से जीतने में सफल रहे।
इन सीटों पर कम मार्जिन से हुई थी कांग्रेस की हार
बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में करीब 24 विधानसभा सीट ऐसी थीं, जिन पर जीत-हार तीन हजार से कम मतों से हुई थी। कांग्रेस इन सीटों पर इसलिए भी फोकस कर रही है, क्योंकि अगर इनमें से कांग्रेस 10 या पांच सीटें भी जीत जाती तो वह बहुमत के आंकड़े को पार कर जाती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिससे कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। जिन सीटों पर कांग्रेस को सबसे कम मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा था, उन सीटों में जौरा, बीना और कोलारस हैं। जौरा में 511 मतों से हार मिली, बीना में 632 मतों से और कोलारस में 720 मतों से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह इंदौर की 5 नंबर विधानसभा सीट पर 1,133 वोट, छतरपुर की चांदला सीट पर 1,177 वोट, सतना की नागौद सीट 1,234 वोट से कांग्रेस हार गई थी, इस तरह कुल 6 सीटें कांग्रेस 1300 से भी कम अंतर से हारी थी। यानि कांग्रेस इनमें से पांच सीटें भी जीत जाती तो 2018 में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल जाता। यही वजह है कि कांग्रेस इन सीटों पर अभी से पूरा फोकस करना चाहती है।
इन सीटों ने बिगाड़ा था गणित
विगत चुनाव में इन सीटों ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ओर गणित बिगाड़ दिए। भाजपा के लिए सात ऐसी सीटें रहीं, जो एक हजार से कम वोट से हार वाली थी, जबकि भाजपा को सत्ता के लिए भी महज सात सीटें ही चाहिए थी। दूसरी तरफ सत्ता के लिए महज दो सीट की आवश्यकता वाली कांग्रेस ने तीन सीटें एक हजार से कम वोट से गंवा दी थी। इसलिए सारे समीकरण कम जीत-हार के खेल ने बिगाड़ दिए। इस बार इसी कारण भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां कम जीत-हार वाले अंतर की सीटों पर खास ध्यान दे रहीं हैं। ऐसी सीटों के लिए अलग से रणनीति बनाई गई है। दोनों ओर ऐसी सीटों पर मुख्यालय से भी मॉनिटरिंग करना तय किया गया है। 2018 के चुनाव में करीब सात सीटों पर कम वोट के अंतर से हार भाजपा को भारी पड़ गई थी। ग्वालियर दक्षिण, सुवासरा, जबलपुर उत्तर, राजनगर, दमोह, ब्यावरा, राजपुर सीट पर भाजपा 1000 से कम वोट से हार गई थी। बाद में सत्ता परिवर्तन के बाद जरूर समीकरण बदले। हालांकि भाजपा 2018 के चुनाव के परिणामों को लेकर भी अलर्ट है। मसलन, सुवासरा सीट पर उपचुनाव में भाजपा से हरदीप सिंह डंग भारी वोटों से जीते, लेकिन पहले ये सीट चंद वोटों से भाजपा ने खो दी थी। अब हर कम अंतर वाली सीट भाजपा के फोकस में है। वहीं 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने सरकार तो बना ली थी, लेकिन कम जीत-हार के अंतर वाली सीटों के कारण ही सीटों की जमकर खींचतान हुई। कांग्रेस ने 114 सीट जीतीं, जबकि सत्ता के लिए 116 सीटें चाहिए थीं। कांग्रेस को महज दो सीट चाहिए थी, जबकि कांग्रेस तीन सीट एक हजार से कम वोट से हार गई थी। इसमें जावरा, बीना और कोलारस सीट थी। यदि ये सीटे कांग्रेस के पास होतीं तो 2018 में सत्ता के लिए उस समय बसपा, सपा व निर्दलीयों की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं 5 हजार से कम जीत-हार की करीब दो दर्जन सीटें कांग्रेस के पास थी। इसलिए ऐसी सीटों पर ज्यादा फोकस है।
124 सीटें थीं आकांक्षी की कैटेगरी में
भाजपा संगठन के एक पदाधिकारी ने बताया कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद आए परिणामों की समीक्षा में 124 सीटें ऐसी थीं, जिन्हें आकांक्षी की श्रेणी में चिन्हित किया गया था। लेकिन 2018 से अब तक हुए 34 सीटों के उपचुनाव ने बाजी पलट दी। भाजपा को इन 34 उपचुनावों में से 21 सीटों को जीतने में कामयाबी मिली। इन उपचुनाव में कुछ सीटें ऐसी थीं, जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी तीसरे और चौथे नंबर पर पहुंच गए थे। इस तरह पार्टी ने 103 ऐसी सीटों को चिन्हित किया है जिन्हें पार्टी हर हाल में जीतने का प्रयास करेगी। इनमें श्योपुर, सबलगढ़, सुमावली, मुरैना, दिमनी, भिंड, लहार, गोहद, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा, सेंवड़ा, करेरा, पिछोर, चाचौड़ा, राघोगढ़, चंदेरी, देवरी, बंडा, महाराजपुर, राजनगर, छतरपुर, बिजावर, पथरिया, दमोह, गुनौर, चित्रकूट, रैगांव, सतना, सिंहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बड़वारा, बरगी, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर पश्चिम, शहपुरा, डिंडोरी, बिछिया, निवास, बैहर, लांजी, वारासिवनी, कटंगी, बरघाट, लखनादौन, गोटेगांव, तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौसर, छिंदवाड़ा, परासिया, पांढुर्णा, मुलताई, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, उदयपुरा, विदिशा, भोपाल उत्तर, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल मध्य, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सुसनेर, आगर, शाजापुर, कालापीपल, सोनकच्छ, बुरहानपुर, भीकनगांव, बड़वाह, महेश्वर, कसरावद, खरगोन, भगवानपुरा, सेंधवा, राजपुर, पानसेमल, अलीराजपुर, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धर्मपुरी, देपालपुर, इंदौर -1, राऊ, नागदा, तराना, घट्टिया, बडनग़र, सैलाना, आलोट।