क्रमोन्नति और समयमान-वेतनमान देने का मामला.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्य प्रदेश सरकार के मातहत आने वाले शिक्षकों को क्रमोन्नति दी जाए या फिर समयमान वेतनमान। यह मसला सरकार व शासन मिलकर बीते पांच सालों से नहीं सुलझा पा रहा है। इसकी वजह से प्रदेश के करीब अस्सी हजार शिक्षक अधर में लटके हुए हैं। हद तो यह है कि इस मामले की नोटसीट वर्ष 2018 से मंत्रालय और लोक शिक्षण संचालनालय की बीच ही चक्कर काटती रहती है। अगर यही मामला अखिल भारतीय सेवा के अफसरों का होता तो अब तक न केवल कई बार सुलझ चुका होता, बल्कि उस पर कई बार अमल भी हो चुका होता। बेहद अहम बात यह है कि इस मामले में स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार से लेकर प्रमुख सचिव रश्मि अरुण शमी तक को इन शिक्षकों की कोई चिंता नजर नहीं आयी। अन्यथा उनके सामने नोटसीट आने पर कोई न कोई फैसला ले लिया गया होता।
यह हाल तब बने हुए हैं, जब प्रदेश में शिक्षक कई बार सडक़ पर उतर चुके हैं। इसके बाद भी इस मामले में सरकार से लेकर शासन तक गंभीरता नहीं दिखा सका है। इस मामले में निर्णय नहीं किए जाने की वजह से शिक्षकों को हर माह तीन से लेकर पांच हजार रुपये प्रतिमाह तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा बीते चुनावी साल में दो लाख 87 हजार शिक्षकों को वर्ष18 में नियमित किया था, जिसकी वजह से उनमें से 80 हजार शिक्षक ऐसे थे, जो तब तक 12 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके थे, जिसकी वजह से उन्हें क्रमोन्नति की पात्रता मिल गई थी, यही वजह है कि जनजाति कार्य विभाग ने अपने मातहत आने वाले शिक्षकों को तो तभी लाभ दे दिया, लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग इसे अटकाए हुए है। इसके बाद से ही शिक्षक लगातार इसका लाभ देने की मांग कर रहे हैं। पहले क्रमोन्नति देने की बात हुई, पर बाद में कहा गया कि समयमान वेतनमान दिया जाना चाहिए। इससे शिक्षकों को ग्रेड-पे का नुकसान होने के बाद भी वे समयमान वेतनमान के लिए तैयार हो गए, जिसके बाद नोट सीट तैयार की गई, जिसमें समय -समय पर अफसरों ने अपने हिसाब से सुधार किया, लेकिन फिर भी कोई फैसला नहीं किया गया। अब कहा जा रहा है कि सहायक, उच्च श्रेणी शिक्षक और व्याख्याता जैसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों को क्रमोन्नति और उच्च माध्यमिक शिक्षक को समयमान वेतनमान का लाभ दिया जा सकता है।