मिसाल बने साहब

मिसाल बने साहब.

पुलिस का नाम सामने आते ही लोगों को कठोर और खड़ूस व्यक्ति की तस्वीर सामने आ जाती है। लेकिन ऐसा नहीं है। पुलिस संवेदनशील होने के साथ ही जनहितैषी भी होती है। इसका नजारा इन दिनों ग्वालियर जैसे बड़े जिले में देखा जा सकता है। जिले में जबसे 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी राजेश सिंह चंदेल एसपी बनकर आए हैं, तबसे यहां नवाचार हो रहे हैं। वर्तमान में साहब की अगुवाई में पर्यावरण संरक्षण के लिए अनूठी पहल की गई है। इस बार बारिश के मौसम में हर थाने में पौधारोपण किया जा रहा है। इतना ही नहीं पौधों को जीवित रखने की जिम्मेदारी भी पुलिस ही संभालेगी। इसके लिए बाकायदा हर पौधे का गार्जियन एक पुलिसकर्मी को बनाया जा रहा है। इस तरह का प्रयास पुलिस द्वारा पहली बार किया जा रहा है, जिसमें पौधों को जीवित रखने के लिए भी पुलिसकर्मी प्रयास करेंगे।

दर्द की असली दवा
प्रदेश में हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य मुहैया कराने के लिए सरकार ने सर्वसुविधायुक्त अस्पताल बनवा रखे हैं। लेकिन जब बीमार इन अस्पतालों में पहुंचते हैं, तो वहां डॉक्टर नदारद रहते हैं। ऐसी ही शिकायत राजधानी में भी लगातार मिलती रहती है। लेकिन जब से 2010 बैच के आईएएस अधिकारी आशीष सिंह ने कलेक्टर की जिम्मेदारी संभाली है, उन्होंने व्यवस्था परिवर्तन के लिए अभियान चला रखा है। इसी के तहत गत दिनों उन्होंने शहर के सर्वसुविधायुक्त एक सरकारी अस्पताल पर धावा बोला। कलेक्टर के कदम रखते ही अस्पताल की पोल खुल गई। अस्पताल के 20 डॉक्टर गायब थे। फिर क्या था, साहब ने तत्काल निर्णय लेते हुए एक संविदा डॉक्टर की सेवाएं समाप्त कर दीं। दूसरे नियमित डॉक्टर को सस्पेंड कर दिया जबकि, शेष 18 डॉक्टरों की वेतन वृद्धि रोकी गई। इससे मरीज खुश हुए और यह कहते सुने गए कि हमारे दर्द की असली दवा यही है।

सरकार बदलने की आस
बुंदेलखंड के एक जिले के कलेक्टर इन दिनों अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन साहब को उम्मीद है कि कुछ माह बाद उनके दिन फिरने वाले हैं। दरअसल, 2013 बैच के यह आईएएस अधिकारी एक संवेदनशील मामले में इस कदर फंस गए हैं कि, उनको हर कोई शक की नजर से देख रहा है। ऐसे में साहब को उम्मीद है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी और उन पर लगा दाग धुल जाएगा। दरअसल, साहब पर जल्दबाजी में बिना जांच के एक मामले में क्लीन चिट देने के आरोप लगे हैं, जिसके बाद साहब सरकार और कई संगठनों के निशाने पर आ गए हैं। इस मामले को लेकर साहब की जमकर किरकिरी भी हो रही है। रोज कोई न कोई साहब को कटघरे में खड़ा कर रहा है।

अब मिल जाएगी कप्तानी
प्रदेश में राज्य पुलिस सेवा के कई अधिकारी वर्षों से एसपी बनने की आस लगाए बैठे हैं। लेकिन राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा के लिए समय पर डीपीसी नहीं होने के कारण कई अफसरों के अरमानों पर पानी फिर गया है। लेकिन कुछ अफसर ऐसे हैं, जिनकी लॉटरी हाल ही में लग गई है। भारत सरकार ने मप्र राज्य पुलिस सेवा के 14 अधिकारियों को भारतीय पुलिस सेवा अवॉर्ड किया है। इनमें से आठ अधिकारियों को वर्ष 2021 और छह अधिकारियों को वर्ष 2022 की चयन सूची में रखा गया है। अभी तक ये अधिकारी विभिन्न पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे, लेकिन अब इनको जिलों में जल्द ही कप्तानी मिलेगी। दरअसल, प्रदेश में आईपीएस अफसरों की कमी के कारण प्रशासनिक ढांचा गड़बड़ा रहा था।

न इधर के, न उधर के
अपनी नौकरी के दौरान पाक साफ रहे एक आईएफएस अफसर इन दिनों रिटायरमेंट के बाद आजीविका मिशन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। मुख्य कार्यपालन अधिकारी का कार्यभार संभाल रहे साहब स्कूली बच्चों को बांटे जाने वाली ड्रेस को लेकर विपक्ष के साथ अपनों के भी निशाने पर हैं। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि खुद सरकार की ओर से फेक्ट चेक कर इस पर सफाई देनी पड़ी। उसके बाद केवल विपक्ष के निशाने पर रहने वाले साहब को लेकर सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक ने उच्च स्तरीय जांच कके लिए पत्र लिख दिया है। साहब की मिशन संचालक की नियुक्ति पहले भी सवालों के घेरे में रही है। ऐसे में विपक्ष उन पर टेढ़ी नजर बनाए हुए है। आरोप है कि विद्यार्थियों को गणवेश तक नहीं मिल रहे हैं। समूहों के नाम पर ठेकेदार काम कर रहे हैं। विपक्ष ने महिला स्व-सहायता समूहों के नाम पर हुई गड़बडिय़ों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की। उधर, सत्तापक्ष के कुछ नेता भी अब साहब से खार खाने लगे हैं। ऐसे में साहब की स्थिति न घर के, न घाट के वाली बन गई है।