मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में विधानसभा चुनाव की
तैयारियां तेज करते हुए भाजपा ने चुनाव प्रभारियों के रूप में सेनापति तैनात कर दिए हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को मप्र का प्रदेश प्रभारी तो रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को मप्र के सह चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई है। चुनावी साल में भाजपा हाईकमान ने अपने दो सेनापतियों को मप्र भेजकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को और मजबूत बना दिया है। अब यह चौकड़ी मिलकर प्रदेश में चुनावी रणनीति बनाएगी और जीत का इतिहास रचेगी। भाजपा मप्र के विधानसभा चुनावों में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के विश्वस्त और कई चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने वाले केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को सह-प्रभारी नियुक्त किया गया है, जो निश्चित तौर पर इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीब हैं। यह दोनों ही नेता चुनावों की दृष्टि से मप्र के नेताओं और केंद्रीय नेताओं के बीच तालमेल बिठाने का काम करेंगे और साथ ही राज्य में जरूरत के मुताबिक संसाधन मुहैया कराएंगे। गौरतलब है कि शिव-वीडी के समन्वय से सत्ता और संगठन मजबूती से काम कर रहे हैं, अब भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव जैसे रणनीतिकारों का साथ उनको मिलेगा।
रणनीति और आईटी का दम
भूपेंद्र यादव जहां चुनावी रणनीति में माहिर माने जाते हैं, वहीं अश्विनी आईटी एक्सपर्ट हैं। वे रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं। ये दोनों ही नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वसनीय हैं। इन दोनों नेताओं के प्रभारी बनने से साफ है कि बीजेपी की केंद्रीय टीम मप्र के चुनाव पर सीधे नजर रखेगी। यादव जहां मप्र की परिस्थितियों को लेकर जमीनी जानकारी जुटाएंगे, तो वैष्णव आईटी सेक्टर के अनुभव के आधार पर चुनावी रणनीति बनाएंगे। भाजपा यादव की मदद से ओबीसी वोटर्स को साधेगी। मप्र में ओबीसी वर्ग के 48 फीसदी वोटर्स हैं। 230 में से 60 विधायक ओबीसी वर्ग के हैं। इनमें से 32 सीटों पर भाजपा और 28 सीटों पर कांग्रेस के ओबीसी विधायक काबिज हैं। भूपेन्द्र यादव के चुनाव प्रभारी बनने से ओबीसी वर्ग के वोटर्स खासकर यादव मतदाताओं पर भी असर पड़ेगा। एमपी में करीब 18 से 20 सीटें ऐसी हैं, जहां यादव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। अश्विनी वैष्णव पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। वे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में रह चुके हैं और तभी से मोदी से जुड़े हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में दोनों की जोड़ी मोदी और शाह के प्रतिनिधि के तौर पर मप्र में रहकर काम करेगी।
चुनावी प्रबंधन पर जोर
भाजपा आम तौर पर विधानसभा चुनावों की घोषणा होने से एक-दो महीने पहले प्रदेश में चुनाव प्रभारी नियुक्त करती है। इस बार चुनावों से चार महीने पहले नियुक्ति कर विपक्षी पार्टियों को चौंका दिया है। यह नियुक्तियां इस लिहाज से महत्वपूर्ण हैं कि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनावी प्रबंधन का लंबा-चौड़ा अनुभव है। 2013 से वह यह काम कर रहे हैं। 2013 में उन्होंने राजस्थान के विधानसभा चुनावों में सह-प्रभारी की भूमिका निभाई और उसके बाद तकरीबन हर बड़े राज्य में प्रभावी तरीके से पार्टी को बड़ी सफलता दिलाई है। 2014 में झारखंड में सह-प्रभारी और उसके बाद गुजरात विधानसभा चुनावों में प्रभारी रहे। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी प्रभारी थे और शिवसेना के साथ तालमेल बिठाकर गठबंधन को स्पष्ट बहुमत के पार ले गए थे। फिर बिहार में 2020 में भी भाजपा ने नीतीश के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और गठबंधन ने जीत हासिल की थी। उस समय भी जीत का सेहरा चुनाव प्रभारी के नाते भूपेंद्र यादव के सिर बंधा था। अब मप्र की बारी है।
सत्ता और संगठन का समन्वय मजबूत होगा
मप्र में विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की टीम बन गई है। चुनाव का संचालन करने वाली प्रदेश स्तरीय कमेटियों की घोषणा भी जल्द होगी। इस निर्णय से मप्र का दिल्ली के साथ समन्वय मजबूत होगा। दखलंदाजी और कन्फ्यूजन की स्थिति नहीं रहेगी। प्रदेश से फीडबैक सीधे आलाकमान तक पहुंचेगा। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के अलावा प्रदेश के बाकी बड़े नेताओं के बीच तालमेल भी बनेगा। वैसे तो चुनाव प्रभारी संगठन के कामकाज में बहुत ज्यादा दखल तो नहीं देते, लेकिन यह केंद्रीय नेतृत्व की आंख, कान और नाक का काम करते हैं। भाजपा में राज्य के संगठन स्तर पर प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही संगठन महामंत्री की भूमिका अहम होती है। इन प्रमुख लोगों को केंद्रीय नेतृत्व से अवगत कराना और आवश्यकता के अनुसार उन तक केंद्र का मार्गदर्शन पहुंचाना चुनाव प्रभारी के जिम्मे होता है। मुख्य रूप से राज्य में चुनावी कामकाज के लिए वित्तीय जरूरतों को पूरा करने की बात हो या जमीनी परिस्थितियों के अनुसार किसी बड़े नेता की सभा करने की जरूरत, यह तय करना चुनाव प्रभारी के जिम्मे होता है। इसके अलावा स्थानीय स्तर की गुटबाजी को दूर करने के प्रयास, टिकट वितरण से उपजा असंतोष दूर करने के लिए किए जाने वाले उपाय, केंद्र की गाइडलाइन को अमल में लाने के लिए किए जा रहे प्रयास, सब कुछ चुनाव प्रभारी की देखरेख में होता है।