कहीं भारी न पड़ जाए भर्ती परीक्षाओं का मामला

मंगल भारत। चुनावी साल में युवाओं को लग रहा था, कि


उन्हें सरकारी नौकरी करने का मौका मिलेगा, लेकिन राज्य का प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड उनकी आकांक्षाओं पर पानी फेर रहा है। इसकी वजह से पढ़े लिखे बेरोजगार तो परेशान हंै ही अब तो इस बोर्ड की कार्यशैली की वजह से सरकार भी हलकान है। यही वजह है बीते दिनों पटवारी भर्ती परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद न केवल भर्ती पर रोक लगा दी गई, बल्कि हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश से भी इस मामले की जांच कराने की घोषणा सरकार को करनी पड़ी है। दरअसल प्रदेश में बीते कई सालों से ऐसी कोई परीक्षा नहीं हुई है जिसमें गड़बड़ी के आरोप न लगे हों। यही नहीं पूर्व में भी हुई परीक्षाओं को लेकर भी तमाम तरह के विवाद उठते रहे हैं। अब पटवारी भर्ती परीक्षा में धांधली के आरोपों से युवा खुद को असहाय महसूस करने लगे हैं। अगर सरकार ने उनका गुस्सा जल्द ही शांत नहीं कराया, तो विधानसभा चुनाव में यह युवा सरकार के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार कर सकते हैं। इस भर्ती परीक्षा में करीब 12 लाख युवाओं ने भाग लिया था। गौरतलब है कि प्रदेश में युवाओं की संख्या अच्छी खासी तादाद में हैं। यही नहीं इस बार के चुनाव में बीते चुनाव की तुलना में करीब 15 लाख अधिक युवा मतदान में भाग लेंगे। वैसे भी युवाओं के लिए बेरोजगारी और नौकरी हमेशा से ही सबसे अहम मुद्दा होता है।
तो ज्वॉइनिंग हो जाएगी मुश्किल
प्रदेश में ऐसे सैकड़ों युवा हैं, जिनका चयन होने के बाद विवादों के चलते उनकी ज्वाइनिंग पर संकट दिख रहा है। इनमें से कई तो इस साल ओवरएज हो जाएंगे। अब सरकार इस भर्ती पर रोक लगा चुकी है। पटवारी भर्ती परीक्षा पर सवाल उठने की वजह से उनका भविष्य खतरे में नजर आने लगा है, जिनके द्वारा मेहनत करके परीक्षा पास की गई है। इसी तरह से रीवा निवासी निधि सिंह का पटवारी भर्ती परीक्षा में चयन हो चुका है लेकिन, परीक्षा में धांधली के आरोपों के बाद अब निधि ज्वॉइनिंग को लेकर परेशान हैं। उनका कहना है कि पटवारी पद पर चयन हुआ तो लगा अब सब ठीक हो जाएगा लेकिन, ज्वॉइनिंग पर संकट आ गया है।
बेहद खराब है भर्ती परीक्षाओं का इतिहास
मध्यप्रदेश में भर्ती परीक्षाओं का इतिहास हमेशा से ही विवादों में रहा है। पटवारी भर्ती परीक्षा से पहले कृषि विस्तार अधिकारी परीक्षा भी उस समय विवादों में आ गई थी, जब कई सारे छात्रों को 190 से ज्यादा या उसके आसपास अंक मिले थे। टॉप 10 में आए सभी छात्र ग्वालियर-चंबल संभाग से थे। इसके बार कृषि विकास अधिकारी और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी परीक्षा को रद्द कर दिया गया था। इसके अलावा नर्स के पदों पर भर्ती के लिए आयोजित परीक्षा को भी पेपर लीक होने के बाद रद्द कर दिया गया था।
तीन करोड़ के करीब हैं युवा मतदाता
अगर प्रदेश में युवा मतदाताओं की संख्या देखी जाए तो स्पष्ट हो जाएगा की सत्तारूढ़ दल के लिए भर्ती परीक्षाओं में धांधली और बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं का गुस्सा बहुत भारी पड़ सकता है। राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक इस बार चुनाव में जहां करीब 15 लाख नए युवा मतदाता मतदान करेंगे। वहीं 18 से 40 साल तक के युवाओं की बात करें तो उनकी संख्या करीब 2 करोड़ 80 लाख हैं। इनमें से लाखों युवा बेरोजगार हैं, जो नौकरी की तलाश कर रहे हैं। इनमें से कई युवा बीते सालों से सरकारी भर्ती का इंतजार रहे हैं। लिहाजा भर्ती परीक्षाओं में धांधली और बेरोजगारी इनके लिए इस साल विधानसभा चुनाव में बेहद अहम मुद्दा रहने वाला है। दरअसल तमाम भर्ती परिक्षाओं में लगने वाले धांधली के आरोपों में अब तक सरकार कोई प्रभावी कार्रवाई करती नजर नहीं आयी है। भर्ती विवादों के बाद भी सरकार कोई ऐसा सिस्टम भी तैयार नहीं कर सकी है, जिससे की इस तरह के आरोपों की कोई गुंजाइश ही नहीं रहे।
तीन बार बदला जा चुका है नाम
भर्ती परीक्षाओं में अक्सर विवादों में रहने वाले भर्ती वोर्ड का बीते तीन दशकों में तीन बार नाम बदल चुका है। संस्थान के नाम बदलने के बाद भी इसका चरित्र नहीं बदला है। एक दशक पहले मेडिकल भर्ती परीक्षा में बड़े घोटाले की वजह से चर्चा में आया यह संस्थान अब पटवारी भर्ती में घोटाले को लेकर बेहद सुर्खियों में है। इस वजह से अब सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर है। हद तो यह है कि हर बार की ही तरह इस बार भी घोटाले के तार सत्तारूढ़ दल से ही जुड़े हैं। इस वोर्ड का गठन 1970 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल ने उस समय मेडिकल कॉलेजों में भर्ती के लिए किया था। उस समय इसका नाम प्री मेडिकल टेस्ट बोर्ड रखा गया था। इसके करीब 12 साल बाद 1981 में इसी तरह का एक बोर्ड इंजीनियरिंग परीक्षा के लिए बनाया गया। उस समय अर्जुन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। इसके एक साल बाद दोनों बोर्ड का आपस में विलय करके एक नया बोर्ड बनाया गया। उसका नाम रखा गया व्यावसायिक परीक्षा मंडल। जो बाद में व्यापमं नाम से जाना जाता रहा। इसके बाद इसका नाम पीईबी यानि की प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड कर दिया गया।