रिकॉर्ड जीत के लिए भाजपा का रोडमैप तैयार…
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी और दलित वर्ग के मुंह मोड़ने के बाद सत्ता से दूर हुई भाजपा ने इस बार इन दोनों वर्गों को साधने की कवायद तेज कर दी है। इसके लिए बाकायदा रोडमैप तैयार किया गया है। 2020 में सत्ता में वापसी के साथ ही भाजपा ने आदिवासी वर्ग को साधने के सारे जतन शुरू कर दिए थे। अब पार्टी का फोकस दलित वर्ग पर है। गौरतलब है की प्रदेश में एससी और एसटी का बड़ा वोट बैंक है। प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए और 35 सीटें दलितों के लिए सुरक्षित हैं। कहा जाता है कि ये 82 सीटें ही सत्ता की राह तय करती हैं। वैसे प्रदेश में आदिवासी और दलित मतदाता करीब 125 सीटों पर निर्णायक प्रभाव डालते हैं। इसलिए प्रदेश की राजनीति में हर पार्टी की कोशिश है की इन दोनों वर्ग के बीच पैठ बढ़ाई जाए।
प्रदेश में रिकॉर्ड जीत के लिए भाजपा ने जो रोड मैप तैयार किया है उसके अनुसार आदिवासियों के साथ ही दलितों को रिझाने के लिए सत्ता और संगठन ने समूची ताकत झोंक दी है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव,अश्विनी वैष्णव, नरेंद्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव और सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश लगातार प्रदेश में बने हुए हैं। भाजपा इस समय अपना सारा जोर ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय को रिझाने में लगा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट लागू कर जबरदस्त मास्टर स्ट्रोक खेला है। इसी तरह दलितों के लिए भी जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगाई गई है। भाजपा को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पिछड़ा वर्ग से होने का और महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और राज्यपाल मंगू भाई पटेल के आदिवासी होने का भी लाभ मिल रहा है।
आज 5 स्थानों से निकली समरसता यात्रा
विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा दलित और आदिवासियों में अपनी पहुंच बढ़ा रही है। इस बार भाजपा ने दलित-आदिवासी वोट बैंक पर ज्यादा फोकस किया है। आरएसएस भी दलित आदिवासियों को रिझाने के लिए भरपूर कोशिश कर रहा है। इस कड़ी में भाजपा आज से प्रदेश के 5 स्थानों से संत शिरोमणि रविदास की स्मृति में समरसता यात्रा निकाल रही है। इन समरसता यात्राओं का शुभारंभ प्रदेश के विभिन्न अंचलों से सभी शीर्ष नेता करने वाले हैं। यह यात्राएं सिंगरौली, बालाघाट, शयोपुर, धार और नीमच से निकलेंगी। वहीं सागर में संत रविदास की स्मृति में 100 करोड रुपए की लागत से स्मारक बनाया गया है, जिसका शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अगस्त को करेंगे। उनकी यात्रा बुंदेलखंड अंचल के दलितों की दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित होने वाली है। इस समय पूरी प्रदेश भाजपा में जबरदस्त हलचल है और सभी शीर्ष नेता लगातार मैदान में बने हुए हैं। पार्टी चुनाव तैयारियों में कोई कोर कसर नहीं रखना चाहती। इसी के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं कि 2018 की गलतियों को दोहराया ना जाए।
कल लगेगी शाह की क्लास
मप्र में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, भाजपा उतनी ही तेजी के साथ अपनी तैयारियां मजबूत करने में लगी हुई है। इसी सिलसिले में केंद्रीय मंत्री अमित शाह 26 जुलाई को शाम 6 बजे दिल्ली से भोपाल के लिए रवाना होंगे। भाजपा प्रदेश कार्यालय में अमित शाह की देर रात तक क्लास चलेगी। इस बैठक में अमित शाह हारी सीटों को लेकर विशेष रणनीति बनाएंगे। वे 11 जुलाई की अपनी बैठक में लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन और चुनाव तैयारियों की विस्तृत समीक्षा करेंगे। भाजपा उनकी मौजूदगी में विभिन्न चुनाव समितियों के गठन का ऐलान कर सकती है।
इसके लिए प्रदेश संगठन लगातार कवायद कर रहा है। अमित शाह भोपाल दौरे पर भाजपा के साथ चुनाव के सिलसिले में बड़ी बैठक करने वाले हैं। चुनाव का फाइनल खाका तैयार किया जाएगा। अमित शाह 26 जुलाई को शाम 6 बजे नई दिल्ली से रवाना होंगे। वे शाम पौने आठ बजे भोपाल आ जाएंगें। अमित शाह एयरपोर्ट पर उतरने के बाद सीधे प्रदेश कार्यालय पहुंचेगें। अमित शाह रात 8 बजे सें करीब साढ़े ग्यारह बजे तक भाजपा प्रदेश कार्यालय में बैठक लेंगे। इसके बाद अमित शाह 11 बजकर 45 मिनट पर भोपाल के ही एक होटल में ही रात्रि विश्राम के लिए रवाना हो जाएंगे। 27 जुलाई को सुबह 10 बजकर 30 मिनट पर अमित शाह प्रस्थान करेंगे। वे सुबह 10 बजकर 45 मिनट पर भोपाल एयरपोर्ट से दिल्ली के लिए
रवाना होंगे।
सवा तीन करोड़ आबादी पर फोकस
मध्यप्रदेश में दो करोड़ आदिवासी और सवा करोड़ दलित सत्ता की चाबी माने जाते हैं। यही वजह की सभी राजनीतिक दलों की कोशिश दलित और आदिवासी समुदाय को रिझाने की रहती है। प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए और 35 सीटें दलितों के लिए सुरक्षित हैं। लेकिन आदिवासी और दलित मतदाता करीब 125 सीटों पर निर्णायक प्रभाव डालते हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 35 में से 18 दलित और 47 में से 30 आदिवासी सीटें जीती थी। जबकि 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा ने आरक्षित सीटों में से दो तिहाई पर कब्जा जमाया था। 2018 में दलितों और आदिवासियों का समर्थन नहीं मिलने के कारण भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी। हालांकि पार्टी ने 2020 के बाद इन दोनों समुदायों में वापसी की। इसी वजह से 2020 के बाद होने वाले 31 विधानसभा और एक लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव में भी भाजपा ने आरक्षित वर्ग से अधिक से अधिक सीटें जीती।
दोनों वर्गों में संघ की गहरी पैठ
भाजपा के लिए सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि संघ की दलित और आदिवासियों के बीच गहरी पैठ है। संघ परिवार के देशभर में एक लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। इन सेवा प्रकल्पों के कारण दलितों और आदिवासियों में भाजपा का प्रभाव जबरदस्त रूप से बढ़ा है। संघ के अनुषांगिक संगठन लगातार इनके बीच सक्रिय रहते हैं। अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य क्षेत्र की महत्वपूर्ण बैठक इंदौर के केशव विद्यापीठ में संपन्न हुई। इसमें संघ के चारों प्रांतों के शीर्ष पदाधिकारियों के अलावा भाजपा के शीर्ष नेताओं ने हिस्सा लिया। संघ ने जनजातीय सुरक्षा मंच के माध्यम से धर्मांतरित ईसाइयों को आरक्षण देने के खिलाफ डिलिस्टिंग आंदोलन चला भी रखा है। दलित और आदिवासियों के बीच सबसे ठोस काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठन कर रहे हैं। संघ परिवार के देशभर में एक लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। इन सेवा प्रकल्पों के कारण दलितों और आदिवासियों में भाजपा का प्रभाव जबरदस्त रूप से बढ़ा है।