भोपाल.मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। यूपी-बिहार की तरह मप्र
में चुनाव भले ही पूरी तरह जाति आधारित नहीं होते हैं, लेकिन यहां जातियों और समाजों का चुनाव में बड़ा रोल होता है। इसको देखते हुए भाजपा ने चुनाव की घोषणा से पहले ही सभी जातियों और सभी समाजों को साध कर अपना वोट बैंक मजबूत कर लिया है। जहां कांग्रेस सबको साधने की रणनीति बनाती रही, वहीं भाजपा ने सबको साधकर बाजी मार ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी विश्वकर्मा योजना का उद्देश्य भी अति पिछड़ों को लुभाना ही है। देश के राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ओबीसी कार्ड खेलने में कांग्रेस ने काफी देर कर दी। कांग्रेस ने अपने स्वर्ण काल में हमेशा ओबीसी की अपेक्षा की। कांग्रेस का ध्यान ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित समीकरणों की तरफ अधिक था। नतीजे में हिंदी प्रदेशों का ओबीसी वर्ग समाजवादी और भाजपा के खेमे में चला गया। समाजवादी विचारधारा के दल परिवारवाद और भ्रष्टाचार में डूबते गए। नतीजे में उन में कमजोरी आ गई, जिसका फायदा भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग करके उठाया।
दरअसल, इस बार भाजपा मिशन 2023 के साथ ही मिशन 2024 के लिए भी संयुक्त रूप से काम कर रही है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा प्रदेश में सभी वर्गों को साधने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसके तहत पार्टी ने रणनीति बनाकर जहां धर्म का परचम लहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, वहीं जातियों को साधने में भी सफलता पाई है। इसका परिणाम यह है कि सवर्णों के साथ ही पार्टी ने ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में भी अपनी पैठ जमाई है। गौरतलब है की धर्म की राजनीति के तहत अयोध्या में राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, महाकाल लोक जैसे प्रकल्प भाजपा की प्रतिबद्धता साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और परिवारी संगठनों के रहते भाजपा को धर्म की चिंता नहीं है जबकि नरेंद्र मोदी के कारण उसे अब जातियों को साधने की भी चिंता नहीं रही है।
ओबीसी वोट बैंक भाजपा के साथ
मप्र में ओबीसी सबसे बड़ा वोट बैंक है। भाजपा के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे ओबीसी नेता हैं। लेकिन मप्र में कांग्रेस का नेतृत्व कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। इसलिए ओबीसी वोट बैंक मप्र में कांग्रेस के पास जाएगा इसकी संभावना कम है। इसलिए भाजपा का पूरा फोकस अति पिछड़ी जातियों को साधने पर है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीन से दिए अपने संबोधन में जो विश्वकर्मा और लखपति दीदी योजनाओं की घोषणा की उसका उद्देश्य अति पिछड़ों को टारगेट करना ही है। देश में औसतन 42 फीसदी ओबीसी आबादी है। इनमें 65 फीसदी अति पिछड़े हैं। पिछड़ों के नाम पर राजनीति में यादव, कुर्मी, जाट, गुर्जर, बिश्नोई समुदाय के लोग ही मुख्यमंत्री, मंत्री, केंद्रीय मंत्री, विधायक और सांसद बन रहे हैं। जबकि अति पिछड़े अपेक्षित हैं। भाजपा इन्हीं को गोल बंद कर रही है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की स्मृति में अलीगढ़ में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने इन्हीं समुदायों के संदर्भ में चर्चा की थी। पिछले 9 वर्षों में पद्म पुरस्कारों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा ओबीसी वर्गों को रिझाने के लिए कितने जतन कर रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में ओबीसी वर्ग का हिस्सा इस समय सबसे अधिक है। राज्यपालों और अन्य राजनीतिक नियुक्तियों में भी भाजपा लगातार सोशल इंजीनियरिंग कर रही है।
किसी एक नहीं सबको साधने की नीति
मिशन 2023 और 2024 की तैयारी में जुटी भाजपा किसी एक वर्ग को साधने की बजाय सबको साधने की नीति पर काम कर रही है। भाजपा न केवल मंदिर निर्माण और उनके पुनरुद्धार की रणनीति पर चल रही है, बल्कि पिछड़ों और अति पिछड़ों को रिझाने के लिए तमाम प्रयास भी कर रही है। भाजपा इस समय ओबीसी ही नहीं बल्कि अति पिछड़ा कार्ड खेल रही है। ओबीसी के नाम पर हिंदी प्रदेशों में यादव, गुर्जर, कुर्मी, बिश्नोई और जाट समुदाय ने ज्यादातर लाभ उठाया है जो पहले से ही साधन संपन्न ताकतवर जातियां हैं। इन शक्तिशाली पिछड़ी जातियों के कारण अति पिछड़ों के साथ अन्याय हुआ। भाजपा इन्हीं अति पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर रही है। उत्तर प्रदेश में वह ऐसा कर चुकी है। पार्टी ने अति पिछड़ों के कारण ही उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनावों में सफलता प्राप्त की है। भाजपा इसी फार्मूले को छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में आजमाने जा रही है। महाराष्ट्र में भी भाजपा अति पिछड़ी जातियों को गोल बंद करने की सोशल इंजीनियरिंग कर रही है।
योजनाओं से साधा अति पिछड़ों को
अगर देखा जाए तो मप्र में भाजपा पिछले दो दशक से और केंद्र में पिछले 9 वर्षों से अति पिछड़ों को लुभाने की कवायद कर रही है। राज्य और केंद्र की सरकारें योजनाओं के सहारे अति पिछड़ी जातियों का साधने में सफलता पाई है। इसी के तहत 2017 में रोहिणी आयोग और इस वर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने विश्वकर्मा योजना पर फोकस किया। विश्वकर्मा योजना के तहत लाभार्थी कामगारों को 5 फीसदी ब्याज दर पर 2 लाख रुपये तक का लोन दिया जा रहा है और साथ ही उन्हें 500 रुपये का भत्ता भी हर महीने ट्रेनिंग के साथ दिया जायेगा। इस योजना का फायदा विश्वकर्मा समुदाय से संबंध रखने वाली जातियां जैसे कि बधेल, बड़ीगर, बग्गा, विधानी, भारद्वाज, लोहार, बढ़ई, पंचाल इत्यादि को प्राप्त होगा।योजना के अंतर्गत कारीगरों को उनके काम की ट्रेनिंग भी दी जाएगी और जो लोग खुद का रोजगार चालू करना चाहते हैं उन्हें सरकार आर्थिक सहायता भी देगी। विश्वकर्मा योजना लागू करने के अलावा भाजपा के पास रोहिणी आयोग का पता भी है। इस आयोग का मकसद अति पिछड़ों की जातियों को छांटना और उन्हें ओबीसी आरक्षण में उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण सुनिश्चित करना है। रोहिणी आयोग के रूप में केंद्र सरकार के पास ऐसा कार्ड है जिसके चलते ही विपक्ष की रणनीति छिन्न-भिन्न हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की सभी वर्गों को साधने की रणनीति ने आज प्रदेश में भाजपा को इतना मजबूत बना दिया है की कांग्रेस का हर दांव अब फेल हो रहा है।