छह दर्जन सीटों की जीत के गुणा-भाग में उलझी कांग्रेस व भाजपा

कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के नेताओं को जिम्मेदारी देकर लगाया चुनावी काम में.

वैसे तो प्रदेश में ओबीसी मतदाताओं की संख्या पचास प्रतिशत के करीब मानी जाती है, लेकिन उनका बड़ा प्रभाव प्रदेश की एक चौथाई यानि की करीब छह दर्जन सीटों पर है। यह वे सीटें हैं जहां पर इनका साथ मिले बगैर कोई भी प्रत्याशी जीत ही नहीं सकता है। यही वजह है कि इन सीटों पर पार्टी प्रत्याशी की जीत तय करने के लिए भाजपा व कांग्रेस का पूरा फोकस इस वर्ग पर बना हुआ है। इस वर्ग में शामिल तमाम जातियों के मतदाता अलग अलग-अलग सीटों पर अपना बड़ा प्रभाव रखते हैं। इनमें खासतौर पर कुशवाहा, कुर्मी, लोधी, यादव, किरार आदि शामिल हैं। इस वर्ग की महत्वता को समझते हुए ही 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ओबीसी को मिलने वाले 14 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। यह बात अलग है कि यह मामला कोर्ट में पहुंचने से अब तक अटका हुआ है। अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में महज दो माह का समय रह गया है ऐसे में एक बार फिर कांग्रेस ने इस वर्ग का साथ पाने के लिए पार्टी के इस वर्ग के नेताओं को आगे करना शुरु कर दिया है। इसी रणनीति के तहत ही पार्टी ने पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को चुनाव अभियान समिति का सह अध्यक्ष बनाया है तो दूसरे पूर्व मंत्री व विधायक कमलेश्वर पटेल को राष्ट्रीय कार्यसमिति के साथ विधानसभा चुनाव से जुड़ी सभी समितियों में शामिल कर ओबीसी वर्ग के बड़ वोट बैंक को साधने का प्रयास किया गया है। बात यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि कमलनाथ व दिग्विजय सिंह के विरोधी माने जाने वाले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को भी चुनाव से संबंधित सभी समितियों में लेकर भी जता दिया गया है कि कांग्रेस ही ओबीसी का पूरा ख्याल रखती है। रणनीति के तहत ही कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इन पिछड़े वर्ग के चेहरों के बहाने अंचलों में जातिगत समीकरण साधने का भी प्रयास किया है। यही वजह है कि इस वर्ग के नेताओं को उनकी जातियों के हिसाब से ही अंचलों का भी प्रभार दिया गया है। इसके पहले कमलनाथ द्वारा पार्टी के युवा विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को मप्र पिछड़ा वर्ग विभाग की कमान देकर कुशवाहा समाज को भी बड़ा संदेश देने का काम किया जा चुका है। कुशवाहा समाज का प्रभाव विंध्य के अलावा बुंदेलखंड में भी प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग से आने वाली पूर्व महापौर विभा पटेल को महिला कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया जा चुका है। यानी की पार्टी ने अधिकांश पदों पर इस वर्ग के नेताओं को नियुक्त कर पिछड़ा वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
किया जा रहा हैै जातीय जनगणना का वादा
इस बार कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का पूरा साथ पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसी वजह से पिछड़ा वर्ग के नेताओं को आगे करने के बाद अब पार्टी द्वारा पूरी तरह से जातीय जनगणना पर जोर दिया जा रहा है। इसको लेकर कांग्रेस अपना प्रमुख चुनावी वादा बाता रही है। प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ सागर की जनसभा में कांग्रेस की सरकार बनने पर जातीय जनगणना कराने का वादा खुलकर कर चुके हैं। इसी तरह से महिला आरक्षण में भी ओबीसी का कोटा तय करने का वादा किया जा चुका है। उधर, कांग्रेस जल्द ही भोपाल में पिछड़ा वर्ग का बड़ा सम्मेलन करने की तैयारी में है। इसका जिम्मा अरुण यादव और कमलेश्वर पटेल को दिया गया है।
पूर्व में भी जोर पकड़ चुका है ओबीसी आरक्षण का मुद्दा
बीते साल प्रदेश में निकाय व पंचायत के चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के बीच जमकर राजनीति हो चुकी है। यह दोनों ही दल आरक्षण को लेकर श्रेय लेने में लगे रहे हैं। तब भाजपा और कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिए जाने को लेकर एक-दूसरे पर जमकर आरोप- प्रत्यारोप लगाए थे।
भाजपा भी नहीं है पीछे
भाजपा का दावा है कि वह ही असली ओबीसी की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है। इसी पार्टी ने प्रदेश में लगातार इसी वर्ग के तीन-तीन मुख्यमंत्री दिए हैं। इनमें उमा भारती, बाबूलाल गौर व शिवराज सिंह चौहान शामिल हैं। पार्टी का कहना है कि कांग्रेस की वजह से ही नगरीय निकाय चुनाव में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का मामला कोर्ट में उलझा। भाजपा ने इस वर्ग को साधने का काम पिछड़ा वर्ग मोर्चा को सौंपा है। यही नहीं शिव सरकार ने पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया है। इसी तरह से भाजपा सरकार ने इस वर्ग के तहत आने वाली तमाम जातियों के लिए अलग से भी आयोगों का गठन किया है। फिलहाल यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि इस वर्ग को साथ किसे कितना मिला है।