मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में 17 नवंबर को मतदान
होगा। इसलिए भाजपा ने अपना पूरा फोकस प्रचार और प्रसार पर लगा दिया है। प्रत्याशियों के नामांकन में दिग्गज नेता पहुंच कर रैलियां कर रहे हैं, या सभाएं कर रहे हैं। मप्र में होने वाले चुनाव के लिए भाजपा ने आक्रामक प्रचार अभियान की रणनीति तैयार की है। 40 स्टार प्रचारकों की सभाएं लगभग तय कर दी गई है। बताया जा रहा है कि प्रदेश में करीब 60 चुनावी सभाएं होंगी, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई केंद्रीय मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रोजाना दो-तीन सभाएं कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस अभी डैमेज कंट्रोल में ही लगी हुई है। इसका असर यह हो रहा है कि कांग्रेस चुनाव प्रचार में पिछड़ती जा रही है।
गौरतलब है कि तीन माह पहले तक भाजपा में आपसी सामंजस्य की कमी के कारण कन्फ्यूजन की स्थिति थी और कांग्रेस पार्टी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में एकजुट होकर कार्य कर रही थी। लेकिन अब स्थितियां पूरी तरह से बदल गई है। केंद्रीय नेतृत्व द्वारा कमान संभालने के बाद भाजपा अब डर से उबर कर एकजुटता के साथ चुनाव प्रचार में लग गई है। अष्टमी, नवमी व दशहरे के दिन भी जब लोग घर में त्यौहार मना रहे थे, तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के बीच त्यौहार मनाने के साथ ही पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे थे। यानी भाजपा का हर कार्यकर्ता पूरी तरह से मैदान में उतर गया है।
कांग्रेस पट्ठावाद में फंसी
टिकट वितरण के पहले तक कांग्रेस में एक अलग जोश नजर आ रहा था। पूरी कांग्रेस भाजपा के मुकाबले में खड़ी नजर आ रही थी। ऐसे में भाजपा ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव भी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चि_ी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ रणनीति में बदलाव की तरफ इशारा करता है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी टिकट वितरण को लेकर उठे बवंडर को थाम नहीं पा रही है। दावेदारों और कार्यकर्ताओं के पार्टी अब तक सात टिकट बदल चुकी है। आगे और भी कुछ बदल सकती है। आखिर ऐसी स्थिति क्यों बन रही है कि कांग्रेस पार्टी डैमेज कंट्रोल नहीं कर पा रही है। पार्टी ने हर जिले में संगठन पर नजर रखने के लिए एक महामंत्री नियुक्त किया था, लेकिन टिकट वितरण के साथ ही वे गायब हो गए, जबकि इस समय प्रभारियों को जिले में रहकर संगठन के नेताओं से चर्चा कर प्रचार- प्रसार की नीति बनाना था। इतना सब होने के बाद भी कांग्रेस पार्टी अभी पट्ठावाद से नहीं उबर पा रही है। जिन प्रभारियों को जिला संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी, वे चुनाव लड़ रहे अपने-अपने नेताओं के क्षेत्र में पहुंच गए हैं। ऐसे में जिलों के वरिष्ठ नेताओं की एक साथ बैठक भी नहीं हो पा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि टिकट बंटने के बाद संबंधित क्षेत्रों से टिकट मांग रहे नेता क्षेत्र से या तो गायब हो गए हैं, या जिसको टिकट मिला है, उसका विरोध कर रहे हैं। कुछ क्षेत्र में तो दावेदार मैदान में भी उतर आए हैं, जो नहीं उतरे हैं ,तो वे पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी का खुलेआम विरोध कर रहे हैं। ऐसे लोगों को इस बात का भी डर नहीं है कि अधिकृत प्रत्याशी का विरोध करने पर पार्टी से निलंबित कर दिया जाएगा।
दिग्गज सीन से गायब
उधर कांग्रेस के दो दिग्गज नेता सुरेश पचौरी व अरुण यादव प्रत्याशी घोषित होने के बाद से सीन से गायब हैं। बताया जाता है कि यादव व पचौरी ने विधानसभा चुनाव लडऩे से भी इंकार कर दिया था। इस समय हालात यह है कि अति आत्मविश्वास में डूबी कांग्रेस प्रचार प्रसार से गायब है। केवल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ फ्रंट पर नजर आ रहे हैं, जबकि दिग्विजय सिंह और रणदीप सुरजेवाला परदे के पीछे डैमेज कंट्रोल में लगे हैं। कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता मंच पर तभी एक साथ नजर आते हैं जब खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सभाएं होती हैं। देखना यह है कि प्रारंभिक चुनाव प्रचार में आगे निकल चुकी भाजपा को कांग्रेस किस तरह रोकती है। कांग्रेस को भाजपा संगठन से अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत अधिकृत प्रत्याशियों को यह मालूम है कि यदि पार्टी द्वारा उन्हें निष्कासित भी कर दिया जाएगा तो अपने आका के माध्यम से पार्टी में फिर वापस आ जाएंगे। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए, इससे पार्टी का अनुशासन समाप्त होता है और नेता तथा कार्यकर्ता मनमानी करते हैं। वही भाजपा में संगठन के डंडे से सब डरते हैं कि यदि एक बार संगठन की नजर टेढ़ी हो गई तो संबंधित व्यक्ति का राजनैतिक कैरियर ही समाप्त हो जाता है। कांग्रेस पार्टी को यदि वास्तव में बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत करना है तो भाजपा के संगठन से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।