ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड में हर सीट पर जातियों का दबदबा.
मप्र में तीन दिन बाद मतदान होना है। इस चुनाव को जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है। चुनावी मैदान में मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिए जा रहे हैं। लेकिन पार्टियां भलिभांति जानती हैं, कि जिसको जाति का साथ मिलेगा, उसकी ही सरकार बनेगी। भाजपा-कांग्रेस हो या सपा-बसपा, उम्मीदवार उतारने से पहले जातीय गणित को समझते हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश की 230 सीटों में से 190 से ज्यादा सीटों पर जाति सबसे बढ़ा चुनावी फैक्टर होता है। मप्र में भले ही जाति के आधार पर चुनाव नहीं लड़ा जाता है, लेकिन उसके बाद भी यहां जातिगत फैक्टर अहम है। प्रदेश में 65 प्रतिशत मतदाता उम्मीदवारों की जाति देखकर वोट करते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दल भी जाति देखकर उम्मीदवार उतारते हैं। खासकर ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड में जातियों का गणित हर चुनाव में हार-जीत का समीकरण तय करता है। जातियों के अपने समाज हैं और उनके अपने नेता। कहीं गुर्जर मतदाता प्रभावी है तो कहीं तोमर का बोलबाला है। किसी सीट पर पटेल-कुशवाह हार-जीत तय करते हैं तो किसी पर जाटव का जलवा है। इसके अलावा प्रदेश में राजपूत, ब्राह्मण, यादव समाज के असर वाली सीटें भी हैं।
103 सीट पर सवर्ण निर्णायक
प्रदेश में सवर्ण जाति का भी अच्छा खासा प्रभाव है। ग्वालियर-चंबल में गुर्जर मतदाता भी एकजुट माना जाता है। इनके लिए चुनाव में जाति की अहमियत होती है। ऐसे में राजनीतिक दल भी इनका ख्याल रखते हैं। हाल ही में अंचल के एक बड़े गुर्जर आंदोलन के बाद पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई इनकी नाराजगी की वजह बन गई। सम्राट मिहिर भोज को लेकर विवाद हुआ था। अब ग्वालियर जिले की ग्रामीण सीट गठन की घोषणा के साथ इन्हें साधने का प्रयास किया गया है। गोपाल भार्गव को प्रचार में भावी सीएम बताकर लोगों को लुभाया जा रहा है। राजपूत क्षत्रिय समाज भी ग्वालियर-चंबल बुंदेलखंड में चुनाव की धुरी होता है। नरेंद्र सिंह तोमर को दिमनी से टिकट देकर वोटर को साधने का प्रयास किया गया। इस समाज के सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, ग्वालियर, भिण्ड मुरैना जिले प्रभाव वाले हैं। ब्राह्मण मतदाता प्रदेश की 60 सीटों को प्रभावित करते हैं, वहीं राजपूत मतदाता 45 सीटों पर असर डालते हैं। गुर्जर की नाराजगी का क्या असर और मुरैना विधानसभा में इस समाज के प्रत्याशी हैं। प्रदेश में 35 लाख लोगों के साथ गुर्जर समाज चुनाव में प्रभावशाली माना जाता है। कोई दल इनकी नाराजगी नहीं लेता। प्रदेश में जाति के बाद जो फैक्टर सबसे बड़ा है वो है हिंदुत्व। यहां हिंदुत्व की जड़ें काफी गहरी हैं। यही वजह है कि कांग्रेस को भी यहां सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे चलना पड़ता है। उसके नेता हिंदू धर्म से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और उनमें शामिल भी होते हैं। यहां हिंदुत्व मुद्दा आज से नहीं, बल्कि काफी पुराना है। इसे पूरे भारत में हिंदुत्व की सबसे पुरानी प्रयोगशाला भी कहते हैं। इसके पीछे खास वजह है। दरअसल, नागपुर से निकटता की वजह से मध्य प्रदेश में आरएसएस की पैठ आजादी से पहले से ही थी। आरएसएस व अन्य हिंदू संगठनों का प्रभाव पहले मालवा और फिर धीरे-धीरे भिंड, चंबल और प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी गया। तभी से इसे लेकर कहा जाने लगा कि मध्य प्रदेश हिंदुत्व की सबसे पुरानी प्रयोगशाला है। यहां पर हिंदू महासभा, रामराज्य परिषद और भारतीय जनसंघ जैसे तीन हिंदुत्ववादी राजनीतिक’ संगठन सक्रिय थे। मौजूदा समय की बात करें तो अभी मप्र में मुस्लिम आबादी करीब 7 प्रतिशत है। इसके अलावा अन्य दूसरे धर्म के वोटरों को भी मिला दें तो भी हिंदू आबादी करीब 88 प्रतिशत होने का अनुमान है। ऐसे में यहां हिंदुत्व फैक्टर भी काम करता है।
रेवड़ी बिकेंगी या चलेगा जाति कार्ड
प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों का प्रचार जोरों पर है। भाजपा जहां सत्ता बचाने की जुगत में लगी है तो वहीं , कांग्रेस फिर से 2018 वाला प्रदर्शन करते हुए बहुमत के करीब पहुंचना चाह रही है। वोट बैंक के लिए कोई नेता लुभावनी योजनाएं व फ्री की रेवड़ी बांट रहा है, तो कोई जाति कार्ड व महिला कार्ड खेल रहा है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि, आखिर मप्र में रेवड़ी बिकेगी या जाति का कार्ड चलेगा। देश के दूसरे राज्यों की तरह ही मप्र में भी जाति फैक्टर अहम है। प्रदेश के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां किरार-धाकड़ समाज का प्रभाव है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किरार-धाकड़ समाज से हैं। शिवराज सिंह चौहान चुनाव में हैं, स्टार प्रचारक हैं, लेकिन सीएम चेहरे की उलझन में इस समाज की बेरुखी साफ झलक रही है। पोहरी में धाकड़ समाज से सिंधिया समर्थक उम्मीदवार हैं। यहां एक अन्य धाकड़ नेता चुनाव मैदान में हैं। यह समाज प्रदेश की 19 सीटों पर अपना असर मानता है। यहां किरार धाकड़ समाज के उम्मीदवार उतारने की मांग भी की जाती रही है। यादव मतदाताओं का बुंदेलखंड में प्रभाव रहता है। शिवपुरी की कोलारस सीट पर कांग्रेस-भाजपा प्रत्याशी यादव हैं। दोनों रिश्तेदार होते हुए भी आमने-सामने हैं। भितरवार में लाखन सिंह कांग्रेस उम्मीदवार हैं, उज्जैन में मोहन यादव भाजपा प्रत्याशी हैं। बुंदेलखंड में निवाड़ी और पृथ्वीपुर सीटों पर यादव समाज का प्रभाव है। सपा भी इस वोट बैंक के आधार पर उतरी है। कांग्रेस ने बिजावर से चरण सिंह यादव को टिकट दिया है। कांग्रेस ने सागर के देवरी में हर्ष यादव पर दांव लगाया है। 80 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले यादव समाज में वोटर करीब 14 प्रतिशत हैं। इनका प्रभाव ग्वालियर, बुदेलखंड अंचल की सीटों पर है। कुशवाह का दबदबा 23 विधानसभा पर है। इस समाज के प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान नारायण सिंह कुशवाह को सौंपी है। इन्हें ग्वालियर दक्षिण सीट पर उम्मीदवार भी बनाया है। नारायण सिंह ने पहली बार मंच से सार्वजनिक तौर पर श्रीमंत को कुर्मी समाज का बताकर जाति को साधने का प्रयास किया था। भाजपा ने राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह को ग्वालियर ग्रामीण सीट पर फिर उतारा है.