दो दशक बाद उम्मीदों को लगते दिख रहे हैं पंख.
भोपाल/मंगल भारत। मतदान के बाद जिस तरह के रुझान सामने आए हैं, उसके मुताबिक इस बार भी प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के बीच बेहद कड़ा मुकाबला नजर आ रहा है। प्रदेश की 16 वीं विधानसभा के चुनाव में बहुमत के लिए लड़ाई का हाल यह है कि नेता भी दबी जुबान में जीत हार का दावा करने में कतरा रहे हैं। यह बात अलग है कि वे सार्वजनिक रुप से जरुर अपने अपने दल के जीत के दावे कर रहे हैं। दोनों दलों के लिए इस बार चुनावी रण करो या मरों वाला रहा है। इसके बाद सबसे बड़ा सवाल यही बना हुआ है कि बीते चार चुनावों से जिस जादुई संख्या 116 के लिए कांग्रेस तरस रही है, वह इस बार क्या उसे मिल सकता है, या फिर भाजपा की सत्ता बरकरार रहेगी। फिलहाल जिस तरह से कांग्रेस में इस चुनाव को देखकर उत्साह देखा गया है, उससे कांग्रेस मानकर चल रही है कि इस बार उसे पूर्ण बहुमत का आंकड़ा मिल जाएगा। कांग्रेस के एक बड़े नेता का दावा है कि पार्टी सत्ता में भारी बहुमत के साथ आ रही है। उधर,भाजपा एक बड़े नेता का कहना है कि संगठन के आंतरिक विश्लेषण में पार्टी 121 सीटों के साथ वापसी कर रही है। गौरतलब है कि भाजपा ने 2003, 2008 और 2013 में बड़े बहुमत से सरकारें बनाईं। लेकिन, 2018 में उसे बहुमत से दूर रहना पड़ा था। कांग्रेस की अपेक्षा एक फीसदी अधिक मत पाने के बाद भी भाजपा 109 सीटों तक ही पहुंच सकी थी , जबकि कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं। लिहाजा, कांग्रेस की सरकार बनी। डेढ़ साल बाद कांग्रेस सरकार गिरी और भाजपा की शिवराज चौहान सरकार फिर आ गई। अब सवाल है कि क्या कांग्रेस इस बार यह जादुई नंबर हासिल कर पाएगी? कांग्रेस को जिन वजहों से बहुमत की जीत के आसर हैं, उनमें प्रमुख फैक्टर सत्ता विरोधी रुझान कई जगह सामने आना। भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी थी तो उधर, कांग्रेसियों को आक्रामक नजर आना। इसी तरह से भाजपा का सीएम चेहरा सामने न रखना कई लोगों को पसंद नहीं आया। मतदाताओं का कहना है कि एमपी के मन में मोदी का मतलब यह तो नहीं है कि मोदी एमपी के मुख्यमंत्री बनेंगे। कांग्रेस के सीएम प्रत्याशी से तुलना के लिए कोई तो चेहरा होता। भाजपा की सबसे बड़ी उम्मीद लाडली बहना योजना ही नजर आई। महिलाएं भाजपा के साथ दिखीं। अन्य किसी मुद्दे में ऐसी अपील नहीं दिखी। महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत इस बार ज्यादा सामने आया है। भाजपा इसे अपने पक्ष में मान रही है। कर्मचारी पुरानी पेंशन के कांग्रेस के वादे से प्रभावित दिखे। इसी तरह से बागी प्रत्याशी एक दर्जन सीटों पर मुख्य लड़ाई में नजर आए।
मिलता रहा सत्ताधारी दल को फायदा
अगर प्रदेश में बीते दशक में हुए चुनावों पर नजर डालें तो अधिक मतदान होने पर सत्तारूढ़ दल को ही फायदा होता रहा है। वर्ष 2003 से हर चुनाव में मत प्रतिशत बढ़ा है। 2018 के चुनाव को छोड़ हर बार इसका फायदा सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में गया। पिछले चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस को पांच सीटें ज्यादा मिलीं, लेकिन वोट ज्यादा भाजपा को मिले थे। विश्लेषक बताते हैं कि इस बार सामान्य वोट बढ़ना तो कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है लेकिन यदि उनमें महिलाओं के वोट का फायदा भाजपा के पक्ष में जाने का अनुमान है। भितरघातियों-बागियों से जूझ रहे दिग्गज लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और पूर्व सीएम कमलनाथ के क्षेत्रों में उलटफेर की स्थिति नहीं है। लेकिन, अन्य हिस्सों में तस्वीर हटकर है। चुनाव में उतरे भाजपा के दिग्गज मंत्री व सांसद में ज्यादातर करीबी लड़ाई में दिखे। बसपा-सपा कई सीटों पर संघर्ष में दिखीं, जिसका कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस को नुकसान नजर आया। भाजपा विरोधी वोट कांग्रेस को गए हैं। भाजपा को कई जगह कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी है। दूसरी पार्टियों से लड़े बागी नेताओं खुद की जीत न होते देख अपनी पुरानी पार्टी के प्रत्याशियों की हार के लिए ताकत झोंक दी। जबलपुर संभाग में ऐसी कई सीटों पर कांग्रेस को फायदा मिल सकता है।