भाजपा व कांग्रेस को अपने -अपने पक्ष में है उम्मीदें.
भोपाल/मंगल भारत। प्रदेश में मतदान के बाद से ही चुनाव परिणामों को लेकर कयासों का दौर जारी है। हार जीत के साथ ही अब सियासी समीकरणों पर भी विश्लेषण का दौर जारी है। ऐसे में माना जा रहा है कि कई जिलों में इस बार पूरी तरह से सियासी समीकरण बदल सकते हैं। दरअसल पिछले आम विधानसभा चुनाव में 15 जिले ऐसे थे, जिनमें सिर्फ एक ही दल का प्रभुत्व बन गया था। इन जिलों में भी इस बार उलट-पुलट की स्थिति बन सकती है। इनमें दस जिलों की सभी सीटों पर भाजपा के तो 5 जिलों में कांग्रेस पूरी तरह से कांग्रेस का कब्जा हो गया था। इस बार कांग्रेस और भाजपा को पूरी तरह से हारने वाले जिलों में अपना-अपना प्रभुत्व बढ़ने के आसार नजर आ रहे हैं। बीते आम चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीत कर निर्दलीयों और सपा -बसपा की मदद से डेढ़ दशक बाद सत्ता की कुर्सी तक पहुंची थी, जबकि भाजपा 109 सीटें जीतकर विपक्ष में बैठने को मजबूर हो गई थी। इसके बाद भी तब कांग्रेस का कई जिलों में खाता तक नहीं खुल सका था। इनमें से अधिकांश जिले विंध्य अंचल के थे। दरअसल तब विंध्य की 30 सीटों में से 24 पर जीत दर्ज कर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया था। कांग्रेस को महज छह सीटें ही इस अंचल में मिल सकी थीं। इस चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं तक को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में भाजपा ने अंचल के सिंगरौली, उमरिया, शहडोल और रीवा की सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। अचंल का अनूपपुर ही ऐसा जिला था , जहां पर कांग्रेस को बढ़त मिल सकी थी। इस जिले से कांग्रेस के तीन प्रत्याशी चुनाव जीते थे। इनमें बिसाहूलाल सिंह भी शामिल थे, जो बाद में दलबदल कर भाजपा में चले गए थे। लगभग यही स्थिति मध्य क्षेत्र के तहत आने वाली सीटों पर भी बनी थी। इनमें सीहोर जिले की सभी चारों सीटों, होशंगाबाद जिले की पांच सीटों और हरदा जिले की दो सीटों पर कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था, जबकि बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले की तीन सीटों पर भी कांग्रेस का खाता नहीं खेल सकी थी। इसके अलावा मालवा के अलीराजपुर, नीमच में भी कांग्रेस खाता खोलने में असफल रही थी।
इन जिलों में भाजपा को लगा था बड़ा झटका
इसी तरह की स्थिति का सामना भाजपा को पांच जिलों में करना पड़ा था। इसमें भी भाजपा को सर्वाधिक नुकसान ग्वालियर-चंबल में उठना पड़ा था। इस अंचल के तहत 34 सीटों में से कांग्रेस ने 26 पर जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा को मात्र सात सीटों पर ही जीत मिल सकी थी। जबकि इसी अंचल से भाजपा के अधिकांश दिग्गज नेता आते हैं। अंचल की एक सीट पर बसपा ने भी जीत दर्ज की थी। इस अंचल के मुरैना और अशोकनगर जिलों में भाजपा का तो खाता तक नहीं ख्ुाल सका था। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गृह जिले छिंदवाड़ा में भी भाजपा एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।
बदल सकते हैं जीत के समीकरण
इस बार इन जिलों के सियासी हालात बदलते हुए नजर आ रहे हैं। श्रीमंत के समर्थकों के साथ भाजपाई बनने के बाद से ग्वालियर-चंबल अंचल का चुनावी गणित बदल चुका है। विंध्य में मिली बड़ी हार पर भी कांग्रेस ने बेहद ध्यान दिया है। इस अंचल में बागी भी समीकरण बदलने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इस वजह से कांग्रेस को फायदा हो सकता है। सतना में भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रहे रत्नाकर चतुर्वेदी को मिलने वाले मत भाजपा का नुकसान कर सकते है। वहीं सीधी से भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला भी रीति पाठक के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। सीधी और सिंगरौली और शहडोल में भी इस बार कांग्रेस को कुछ सीटों की उम्मीद है। टीकमगढ़ जिले में भी कांग्रेस इस बार एक से दो सीटों पर अपनी जीत का अनुमान लगा रही है।