पटवारी को कुचलकर हत्या करने की घटना वाले शहडोल
सहित प्रदेश के एक दर्जन जिलों में बीते सात माह से रेत का बड़ा संकट बना हुआ है। इसकी वजह है इन जिलों की रेत खदानों की नीलामी न हो पाना। उधर अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहावत पूरी तरह से रेत माफिया पर कार्रवाई के नाम पर फिट बैठती है। इसका उदाहरण है शहडोल जिले के सोन घडिय़ाल अभ्यारण्य क्षेत्र में रेत माफिया द्वारा नौघटा से गोपालपुर तक दो किलोमीटर लंबी सडक़ का निर्माण कर देना। इसकी शिकायत के बाद भी कलेक्टर से लेकर तमाम जिम्मेदारों ने कोई कार्रवाई करने में अब तक कोई दिलचस्पी तक नहीं दिखाई है। इसके बाद भी शासन व सरकार इन जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई करने की हिम्मत तक नहीं दिखा पा रहा है। यह हाल प्रदेश में तब बने हुए हैं , जबकि पूरे प्रदेश में रेत माफिया खुलकर सक्रिय बना हुआ है। इसे शासन प्रशासन से लेकर नेताओं तक संरक्षण होता है, जिसकी वजह से नाम के लिए ही कभी-कभी कार्रवाई कर इति श्री कर ली जाती है।
अगर प्रदेश की रेत खदानों की बात की जाए तो, बीते आठ माह से शासन प्रदेश के एक दर्जन जिलों की रेत खदानों का ठेका तक नहीं कर पाया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इन खदानों के ठेके न हो पाएं इसके लिए रेत माफिया ने अपने रसूख का उपयोग करते हुए रेत खदानों के दाम इतने अधिक तय करा दिए हैं कि कोई भी ठेकेदार इन्हें लेने आगे नहीं आ रहा है। यही नहीं अगर कोई ठेकेदार खदान ले भी लेता है और अगर वह रेत माफिया पर भारी पड़ता है, तो रेत खदानों के ठेकों तक को अफसरों से मिलकर निरस्त करा दिया जाता है। ठेके नहीं हो पाने की वजय से रेत माफिया की पौ बारह हो जाती है। अवैध रेत से भरे वाहन तमाम थानों व प्रशासनिक कार्यालयों के सामने से बेधडक़ होकर आवाजाही करते रहते हैं। इसके बाद भी मजाल है कि दो पहिया वाहन चालकों पर कार्रवाई करने के लिए चौकन्नी रहने वाली पुलिस उन्हें रोकती तक नही है। अगर प्रदेश में अवैध रेत परिवहन की बात की जाए तो इससे ही पता चल जाता है कि बीते वित्तीय वर्ष में जहां अवैध उत्खनन और परिवहन के साढ़े आठ हजार से अधिक मामले दर्ज हुए थे , जो इस वर्ष महज अब तक पांच हजार के करीब ही पहुंच सके हैं। इनमें से अधिकांश मामले उन वाहनों पर दर्ज किए गए हैं जो छोटे मोटे वाहन होते हैं और उनका उपयोग घरेलू उपयोग के लिए लोगों द्वारा व्यक्तिगत रुप से किया जाता है।
नीलामी न होने की वजह
ठेकेदारों का कहना है कि रेत खदानों में तय मात्रा में रेत तक नहीं होती है। इसके अलावा खदानों का आधार मूल्य भी अधिक तय किया जाता है। इसकी वजह से तय राशि के हिसाब से रेत ही नहीं निकल सकती है, जिससे घाटा की संभावना बनी रहती है। इसके लिए विभाग को रेत की मात्रा रिवाइज करनी पड़ेगी। प्रदेश में अभी तक महज 33 जिला रेत खदान समूह की नीलामी हो सकी है, जिसमें से 30 जिलों की खदानें चालू हो पायी हैं। उधर, शहडोल, उमरिया, भिंड, सिंगरौली, पन्ना, टीकमगढ़, अलीराजपुर, आगर मालवा, मंदसौर जिला रेत समूहों की खदानें अब तक नीलाम नहीं हो सकी हैं। गौरतलब है कि 42 जिलों के 44 जिला रेत समूहों की नीलामी के लिए पहली निविदा 28 जून को आमंत्रित की गई थी। इसमें 17 जिला रेत समूहों की खदानें नीलाम नहीं हुई थीं। दूसरी बार निविदा सितम्बर में चालू की गई। इसमें आठ जिलों की रेत खदानें ही नीलाम हो सकीं, जिसमें से भी उमरिया खदान के ठेकेदार ने बाद में हाथ खींच लिए अब शेष खदानों के नीलामी फिर से की जानी हैं।
खनन माफिया हो चुका दुस्साहसी
राज्य में खनन माफियाओं के दुस्साहस कितना बढ़ चुका है, इससे ही समझा जा सकता है कि शहडोल जिले में खनन रोकने गए पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल की हत्या का पहला मामला नहीं हैं, बल्कि मार्च 2012 में तो मुरैना में आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह की भी हत्या कर दी गई थी, बात जून 2015 की करें तो, बालाघाट में रेत खनन माफियाओं ने एक पत्रकार का अपहरण कर उसे जिंदा तक जला दिया था, इसी साल जून में शाजापुर में भी माइनिंग इंस्पेक्टर उसकी टीम के साथ मारपीट की गई थी। इसी तरह से सितंबर 2018 में मुरैना के देवरी गांव में खनन माफिया ने वन विभाग के डिप्टी रेंजर पर ट्रैक्टर चढ़ाकर हत्या कर दी थी। मई 2022 में भी अशोक नगर में खनन माफिया ने अवैध खनन रोकने वाले वन कर्मियों पर डंडों से हमला किया था। यह तो गिनती की घटनाएं हैं, जो चर्चाओं में रहीं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इस तरह की वारदातें होते रहना आम बात हो गई है।
तीन माह पहले बना दी अभ्यारण्य में सडक़
शहडोल जिले के सोन घडिय़ाल अभ्यारण्य क्षेत्र में रेत माफिया ने नौघटा से गोपालपुर तक दो किलोमीटर लंबी सडक़ का निर्माण कर दिया। तीन माह से प्रतिदिन सैकड़ों वाहनों से इसी मार्ग से रेत का अवैध परिवहन खुलेआम कर रहे हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों ने इस सडक़ को तोडऩे तक की कार्रवाई नही की है। यही वजह रही है कि जिले के ब्यौहारी क्षेत्र में रेत माफिया, स्थानीय नेता और अधिकारियों के इसी गठजोड़ के नतीजे के रुप में रेत माफिया ने पटवारी की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर डाली। इस सडक़ के लिए माफिया ने किसानों के खेतों तक को भरी नुकसान पहुंचाया है। बीते माह भी सेना के सूचना विंग में काम कर रहे जवान राजभान तिवारी गांव पहुंचे और जमीन पर जबरिया सडक़ निर्माण का विरोध किया तो उसके साथ भी मारपीट कर दी गई थी। इस मामले की शिकायत देवलोंद थाने में की थी , लेकिन पुलिस ने प्रभावी कार्रवाई नहीं की। हद तो यह है कि इस मामले की 23 अक्टूबर को कलेक्टर से भी शिकायत की गई , लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।