मप्र में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को लेकर डॉ.
मोहन यादव सरकार ने मार्च में एक और बड़ा निर्णय लेते हुए सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय अधिकारियों और सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों के खिलाफ जांच पर जल्द निर्णय लेने के लिए कमेटी गठित की है। सामान्य प्रशासन विभाग के सूत्रों के अनुसार भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मिली शिकायतों की जांच हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रदेश के उन पूर्व प्रशासनिक मुखियाओं यानी पूर्व मुख्य सचिवों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी जिन पर भ्रष्टाचार के दाग लगे हैं।
गौरतलब है कि डॉ. मोहन यादव ने जब से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, तभी से उन्होंने भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की कोशिश शुरू कर दी है। सामान्य प्रशासन विभाग के सूत्रों के अनुसार हर विभाग में जितने भी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं सभी की कुंडली बनाई जा रही है। इन सभी मामलों की जांच कर दागियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में प्रदेश के करीब आधा दर्जन पूर्व मुख्य सचिव भी चर्चा में हैं जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। ऐसे देखा जाए तो मप्र ही नहीं देश के कई राज्यों के पूर्व मुख्य सचिवों पर गंभीर आरोप लगे हैं। बीते साल सीएस नरेश कुमार और दिल्ली सरकार का विवाद चर्चित रहा। सीएस पर द्वारका एक्सप्रेस-वे में बेटे को 315 करोड़ का लाभ पहुंचाने का आरोप है। छग के पूर्व सीएस पर दुरुपयोग करने, भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग सहित कई मामलों में अनियमितता का आरोप लगा। अमन ने जमानत याचिका लगाई तो हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। उत्तराखंड के पूर्व सीएस राकेश शर्मा पर रास चुनाव में वोटों की खरीद-फरोख्त करने और करोड़ों केस दर्ज हुआ था। ये भी देश का चर्चित केस रहा।
अभी तक किसी पर कार्रवाई नहीं
एक तरफ प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी चल रही है, वहीं कई ब्यूरोक्रट्स के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है। लेकिन अभी तक किसी भी पूर्व मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। नवंबर 2023 में सेवानिवृत्त हुए प्रदेश के पूर्व सीएस इकबाल सिंह बैंस घोटालों के आरोपों के कारण चर्चाओं में हैं। केवल इकबाल ही नहीं इससे पहले भी प्रदेश के कई पूर्व सीएस आरोपों में घिरे हैं, लेकिन किसी को दंड नहीं मिला। अगर कानून का डंडा चला भी, तो किसी ने अग्रिम जमानत ले ली, तो कोई कैट तक जाकर जांच पर ही स्टे ले आया। नौकरशाहों ने भी आरोपों से घिरे सीएस का साथ देकर जांच में खामियां निकाल दी, ताकि क्लीन चिट की राह आसान हो जाए। नतीजा ये कि दागदार तो कई हैं, लेकिन दंडित कोई भी नहीं। गौरतलब है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की आंच से सबसे ज्यादा सीएस पद घिरा रहा है। 2003 में जब दस साल की कांग्रेस सरकार को ध्वस्त करके भाजपा आई तो तत्कालीन सीएम उमा भारती ने तत्कालीन सीएस एवी सिंह को हटा दिया। ये मामला सुर्खियों में रहा। फिर नवंबर 2018 में जब कांग्रेस वापस सत्ता में आई तो बीपी सिंह को एक महीने का कार्यकाल पूरा करने दिया गया। उलटे बीपी का पुनर्वास किया। फिर एसआर मोहंती को सीएस बनाया। मोहंती की सेवानिवृत्ति पर, गोपाल रेडडी को सीएस बनाया गया, लेकिन भाजपा जैसे ही सत्ता में आई, तो रेड्डी को महज 9 दिन में हटा दिया।
दो मामलों में घिरे इकबाल
मप्र के कडक़ और ईमानदार अफसरों में सुमार पूर्व सीएस इकबाल सिंह बैंस का नाम दो घोटालों में सामने आया है। पहला उज्जैन के देवास रोड पर दताना-मताना हवाई पट्टी की लीज व पार्किंग में आर्थिक गड़बड़ी का है। लोकायुक्त संगठन जांच कर रहा है। दूसरा आजीविका मिशन में भर्ती घोटाला है। वर्ष 2017-18 में हुई इन नियुक्तियों को फर्जी माना गया है। आईएएस नेहा मारव्या ने 2022 में जांच में गड़बड़ी को स्वीकारा था। इसमें भी इकबाल घिरे हैं। जानकारी के अनुसार ईओडब्लयू ने माना है कि ग्रामीण एवं पंचायत विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के खिलाफ शिकायत मिली है। इसका परीक्षण भी कराया गया। इसमें पता चला कि इन अफसरों द्वारा किए गए विवादित कार्य या आदेश शासकीय पद पर रहते हुए जारी किए गए हैं। ऐसे में इनके खिलाफ जांच के लिए सामान्य प्रशासन विभाग की अनुमति जरूरी है। ईओडब्ल्यू की ओर से सामान्य प्रशासन के प्रमुख सचिव को पत्र लिखा गया है।
आर्थिक अनियमितता के केस में घिरे रेड्डी
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के ठीक पहले मार्च 2020 में महज 9 दिन सीएस रहने वाले गोपाल रेड्डी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद आर्थिक अनियमितता के केस में घिर गए थे। दिसंबर 2020 में ईडी ने मनी लांड्रिंग में रेड्डी पर केस दर्ज किया था। इस पर रेड्डी ने तेलंगाना हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली, पर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। मामला अप्रैल 2019 में ईओडब्ल्यू के ई- टेंडर घोटाले में केस दर्ज करने के बाद सामने आया था। हैदराबाद की मेसर्स मेंटोना कंपनी का मामले में नाम आने यह और बड़ा हो गया।
मोहंती पर करीब 719 करोड़ के घोटाले का आरोप
कमलनाथ सरकार में जनवरी 2019 से मार्च 2020 तक सीएस रहे एसआर मोहंती के खिलाफ 719 करोड़ के उद्योग घोटाले में जांच का पेच बरसों रहा। एमपीआइडीसी में उद्योगों को करीब 719 करोड़ रुपए का लाभ पहुंचाने के आरोप में मोहंती के खिलाफ जनवरी 2007 में जांच शुरू हुई थी। बाद में क्लीनचिट दे दी गई। मोहंती कमलनाथ सरकार के समय सीएस बने। कैट से मोहंती ने जांच पर स्टे लिया। लेकिन, जबलपुर हाईकोर्ट ने अप्रैल 2022 में स्टे को खारिज कर दिया। जांच फिर शुरू हो गई।
विवादों में रहे परशुराम-डिसा
वहीं प्रदेश के दो पूर्व सीएस अपने विवादों के कारण चर्चा में रहे हैं। पूर्व सीएस आर परशुराम भी विवादों से घिरे थे। आर परशुराम सीएस पद से सेवानिवृत्त होने के बाद सुशासन संस्थान के डीजी बने, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद जब फिर से शिवराज सरकार बनी तो उनका तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से विवाद हो गया। जबकि, पूर्व में वे शिवराज के करीबी रहे थे। लेकिन इस बार विवाद के बाद परशुराम को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद परशुराम के मतभेद लगातार भाजपा सरकार से सामने आए। वहीं पर्व सीएस अंटोनी डिसा को मप्र पू भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के अध्यक्ष पद से सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सरकार ने हटा दिया था। इस पर भी खूब विवाद हुआ था। डिसा पूर्व सीएम शिवराज के करीबी थे। इसलिए सीएस पद से सेवानिवृत्त के बाद रेरा अध्यक्ष बन गए थे। इस बीच 2018 में कमलनाथ सरकार बनी, तो डिसा के कमलनाथ खूब पटरी बैठी। मार्च 2020 में सत्ता के बाद शिवराज सीएम बने, तो डिसा की पटरी नहीं बैठी। उपचुनाव के ठीक पहले डिसा से इस्तीफा लिया गया।