पिछली बार काबिल और ईमानदार… इस बार भ्रष्टाचारी

जल संसाधन विभाग के अफसरों की भर्राशाही.

जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता मदन गोपाल चौबे और अन्य अफसरों के खिलाफ अभियोजन दायर करने की आखिर सहमति दे दी गई है। जांच के मामले में सरकार ने 10 साल बाद स्वीकार किया है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार किया गया था। अब भ्रष्टाचार को लेकर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ पूर्व प्रमुख अभियंता मदन गोपाल चौबे के खिलाफ कोर्ट में केस चलाएगा। हैरानी की बात यह है कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जल संसाधन विभाग चौबे को ईमानदार एवं काबिल बताकर अभियोजन की स्वीकृति देने से इंकार कर चुका है। इस मामले में कुंडम सब डिवीजन-3 के रिटायर्ड एसडीओ शिखरचंद जैन और प्रभारी कार्यपालन यंत्री हिरन जल संसाधन संभाग भी आरोपी बनाए गए हैं। इस दौरान प्रमुख अभियंता मदन मोहन चौबे तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जल संसाधन संभाग डिंडोरी पदस्थ थे।
गौरतलब है कि जल संसाधन विभाग के लंबे समय तक प्रमुख अभियंता रहे मदन गोपाल चौबे के खिलाफ जल संसाधन विभाग ने भ्रष्टाचार के 15 साल पुराने मामले में राज्य आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ को अभियोजन की मंजूरी दे दी है। विभाग ने विधि विभाग से अभिमत लेकर जांच एजेंसी को अभियोजन की स्वीकृति दी है। जबकि पिछली सरकार के कार्यकाल में जल संसाधन विभाग चौबे को ईमानदार एवं काबिल बताकर अभियोजन की स्वीकृति देने से इंकार कर चुका है। विभाग ने तब चौबे द्वारा लिखी गई किताब को भी अभियोजन की मंजूरी नहीं देने का आधार बनाया था। जब यह मामला विधि विभाग के पास भेजा, तो विभाग द्वारा चौबे के पक्ष में दी गई तमाम दलीलों को खारिज कर अभियोजन की स्वीकृति देने की सिफारिश कर दी गई। जल संसाधन विभाग के उप सचिव आशीष तिवारी ने पिछले हफ्ते भ्रष्टाचार के मामले में अभियोजन की स्वीकृति प्रदान कर दी है।
पद का दुरुपयोग और मिलीभगत
जांच में पाया गया कि आरोपी एमजी चौबे ने पद का दुरुपयोग कर आरोपियों से मिलीभगत करके कूटरचित मात्राओं के प्रमाण पत्र जारी किए। जिनका उपयोग ठेकेदारों ने हंसापुर जलाशय एवं रीवा जलाशय से संबंधित कार्यों के लिए जारी निविदाओं के लिए किया। जांच के बाद तत्कालीन कार्यपालन यंत्री डिंडौरी एमजी चौबे एवं शिखर चंद जैन के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने समेत अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया। विवेचना के बाद जल संसाधन विभाग से अभियोजन की मंजूरी मांगी गई। बता दें कि चौबे के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति का मामला लंबे समय से विभाग में विचाराधीन था। तत्कालीन सरकार के समय कार्यालय प्रमुख अभियंता ने इन तर्कों के साथ अभियोजन की स्वीकृति नहीं देने की सिफारिश की थी कि प्रमाण पत्रों का सत्यापन फिर कराया जाएगा। तथा कहा गया कि आरोपी शिखर चंद्र जैन और एमजी चौबे का कृत्य कोई प्रत्यक्ष रूप से दुर्भावना से परिलक्षित प्रतीत नहीं होता है और प्रमुख अभियंता के अभिमत के बाद विभाग ने अभियोजन की स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद जब मामला विधि विभाग भेजा गया तो विभाग ने प्रमुख अभियंता जल संसाधन की दलीलों को खारिज करते हुए अभियोजन की स्वीकृति की सिफारिश कर दी। इसके साथ ही कहा कि केवल धन प्राप्ति ही भ्रष्टाचार की परिभाषा नहीं है, लोक सेवक के कार्य से किसी व्यक्ति को अनुचित लाभ होता है तो ही भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। किसी के किताब लिखने और अति- ज्ञानवान होने से किसी को भ्रष्ट आचरण से मुक्त नहीं किया जा सकता है।
अभियोजन की स्वीकृति में लग गए 11 साल
दरअसल, 2008-09 में हंसापुर और रीवा में जलाशय के करोड़ों रुपए के काम ठेकेदार को दिलाने के साथ उपयोगिता प्रमाण पत्र दिया गया था। जल संसाधन विभाग के आदेश के अनुसार मदन गोपाल चौबे ने वर्ष 2008 में कार्यपालन यंत्री डिंडौरी रहते जबलपुर के हंसापुर जलाशय के निर्माण में ठेकेदारों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए कूटरचित दस्तावेजों का सहारा लिया था। जिसमें शिखर चंदे जैन तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी उप संभाग क्रमांक-3 भी शामिल रहे। इनकी ईओडब्ल्यू में वर्ष 2009 में शिकायत हुई। जांच के बाद 5 जुलाई 2013 को प्रकरण दर्ज किया गया। इन दोनों अधिकारियों पर आरोप है कि हंसापुर जलाशय की निविदा में आरोपी ठेकेदार संतोष कुमार मिश्रा द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्रों का भौतिक सत्यापन आरोपी कार्यपालन यंत्री शिखर चंद्र जैन द्वारा नहीं किया गया। जिसकी शिकायत की जांच अधीक्षण यंत्री छिंदवाड़ा से कराई गई। जांच में पाया गया कि ठेकेदार का अनुभव प्रमाण पत्र फर्जी था। इसी प्रकार तक कार्यपालन यंत्री डिंडोरी एमजी चौबे द्वारा जारी प्रमाण पत्र के कुछ आयटम ठेकेदार संतोष मिश्रा ने निविदा के साथ प्रस्तुत किए थे। आयटमों की मात्राओं में तथा प्रस्तुत सत्यापित प्रमाण पत्रों में दर्शाई मात्राओं में अंतर पाया गया था। इसी तरह रीवा जलाशय की निविदा में ठेकेदार मेसर्स प्रीत कंस्ट्रक्शन परासिया द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्र का सत्यापन आरोपी कार्यपालन यंत्री एससी जैन भारा नहीं किया गया। इस शिकायत की जांच भी अधीक्षण यंत्री छिंदवाड़ा से कराई गई। जिसमें पाया गया कि वर्क इन हैंड का प्रमाण पत्र फर्जी एवं असत्य था। ये प्रमाण पत्र तत्कालीन कार्यपालन यंत्री एमजी चौबे ने जारी किए थे। राज्य परीक्षक की जांच में फर्जी प्रमाण पत्र एमजी चौबे के हस्ताक्षर से होना पाया गया।