सात वेतन आयोग नहीं कर पाए संतुष्ट.
सरकारी कर्मचारियों के लिए हर वेतन आयोग एक नई उम्मीद लेकर आता है, और इस बार 8वां वेतन आयोग चर्चा का मुख्य विषय बन चुका है। बढ़ती महंगाई और जीवन की लागत के चलते केंद्रीय कर्मचारी अपने वेतन में वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं। अब 8वें वेतन आयोग से उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं, क्योंकि इसके तहत वेतन में भारी बदलाव की संभावना जताई जा रही है। दरअसल, सुविधाओं के लिए गठित वेतन आयोगों पर राजकीय कर्मचारियों ने सवाल उठाए हैं। सरकारी सेवकों ने कहा कि 1960 से अभी तक सात कमीशन बनाए गए हैं। उनके द्वारा की गई सभी सिफारिशों को कभी सरकार लागू नहीं कर पाई है। जिससे बड़ी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है। अभी भी नुकसान झेलने का यह सिलसिला बरकरार है। मप्र की बात करें तो यहां अभी सातवां वेतनमान लागू नहीं हुआ है। शासकीय कर्मचारियों की शिकायतें अक्सर यह होती हैं कि वेतन बढ़ोतरी उनकी जीवन की जरूरतों के मुताबिक नहीं हो रही है। महंगाई दर में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के चलते, वर्तमान वेतन से उनका खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए, सरकार और वेतन आयोग ने केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में बदलाव की सिफारिश की है। उम्मीद है कि 8वें वेतन आयोग के तहत, वेतन में 15 से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सकती है, जिससे कर्मचारियों को महंगाई से राहत मिलेगी।
छठवें का लाभ दो साल बाद मिला
केंद्र में वर्ष 2006 में छठवां वेतनमान लागू हुआ था, जबकि प्रदेश में यह कमीशन 2008 में लाया गया। तब कर्मचारी यह डिमांड उठाते रहे कि केंद्रीय तिथि से छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ मिलना चाहिए। दो साल के अंतर की खाई को पाटा जाना चाहिए। लेकिन आरोप है कि यह संभव नहीं हो सका। इसमें वेतन विसंगतियां दूर करने, ग्रेड-पे की त्रुटियां सुधारने, क्रमोन्नति, समयमान का निर्धारित अवधि में लाभ सहित अन्य अनुशंसाएं थीं। वहीं अभी सातवें वेतनमान को लागू करने की फिलहाल कोई संभावना नहीं दिख रही है। मप्र लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष एमपी द्विवेदी का कहना है कि शुरूआती तारचंद्र से लेकर अभी तक जितने वेतन आयोग गठित किए गए हैं, उनके द्वारा जो सिफारिशें लागू की गईं, उन सभी का लाभ कभी भी कर्मचारियों को नहीं दिया गया। जिससे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। प्रदेश संरक्षक मप्र कर्मचारी कांग्रेस वीरेन्द्र खोंगल का कहना है कि वेतन आयोगों की अनुशंसाओं के अनुसार कर्मचारियों को लाभ देने की कभी भी सरकार की मंशा नहीं रही है। यही वजह है कि समस्याएं बढ़ती गई और सरकारी सेवक बिना लाभ लिए सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
8वें वेतन आयोग से उम्मीदें
मप्र में भले ही अभी सातवां वेतनमान लागू नहीं हुआ है, लेकिन अब जब 8वां वेतन आयोग की चर्चा हो रही है, तो कर्मचारियों को इससे बड़ी उम्मीदें हैं। जानकारी के मुताबिक, यह वेतन आयोग 2026 से लागू होने की संभावना है। हालांकि, सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, बेसिक सैलरी में 20 से 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। सिर्फ सैलरी ही नहीं, बल्कि 8वें वेतन आयोग के तहत अन्य भत्तों में भी सुधार की उम्मीद की जा रही है। इसके तहत महंगाई भत्ते, मकान किराया भत्ता और यात्रा भत्ते में भी बढ़ोतरी संभव है। इसके साथ ही, रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले लाभों में भी वृद्धि की जा सकती है, जिससे पेंशनभोगियों को भी फायदा होगा। सरकारी कर्मचारियों के लिए 8वां वेतन आयोग एक बड़ा मुद्दा है, और अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाता है, तो इससे लाखों कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है। बेसिक सैलरी में 15 से 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की संभावना है, जिससे महंगाई के बढ़ते प्रभाव को झेलने में मदद मिलेगी। अब सबकी नजरें सरकार की आधिकारिक घोषणा पर हैं, जिससे इस मामले में पूरी स्थिति स्पष्ट होगी। कर्मचारियों को उम्मीद है कि 8वें वेतन आयोग के जरिए उनके वेतन में बड़ा सुधार होगा और वे बेहतर जीवन स्तर का आनंद ले पाएंगे।
कर्मचारियों की अनुशंसाओं को महत्व नहीं
भारत में पहला वेतन आयोग 1946 में स्थापित किया गया था, तब से लेकर अब तक सात आयोग बने और कर्मचारियों के लिए सिफारिशें की गईं। हालांकि, पिछले आयोगों के दौरान कर्मचारियों की कुछ नाराजगी भी रही है। वहीं मप्र में 60 के दशक में सबसे पहले ताराचंद वेतनमान लागू हुआ था। उस समय मप्र के मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाशनाथ काटजू हुआ करते थे। फिर पीसी शेट्टी, अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल बोरा, दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में वेतन आयोग गठित किए गए। कर्मचारियों की मानें तो वेतन आयोगों ने जितनी रिकर्मडेशन की हैं, उन सभी को कभी सरकार लागू नहीं कर पाई है। हर आयोग ने तीस से लेकर 35 मांगों की अनुशंसाएं पर सरकार ने कभी तीन तो कभी चार मांगों पर ही मंत्री परिषद की बैठक में हरी झंडी दी। समय-समय पर आयोगों की अनुशांसाओं को लेकर बड़े आंदोलन भी किए गए। सरकारों से लंबे दौर की वार्ताएं हुई, लेकिन वेतन आयोग की मांगों से संदर्भित सिफारिशों पर कभी भी गंभीरता के साथ गौर न ही किया गया। कर्मचारियों का कहना कि शुरूआती दौर से कर्मचारियों को भत्ता और बोनस दिया जाता रहा है। वर्ष 1990 से अनेक भत्ते बंद किए हैं। लगातार मांग करने के बाद भी इन्हें शुरू नहीं किया गया है। त्यौहार भत्ता, अनाज अगिम, साइकिल जैसे भत्ते पूरी तरह से बंद कर दिए गए हैं। दीवाली जैसे त्यौहार पर सरकार बोनस दिया करती थी, वह भी बंद पड़ा है। जिस गृह भाड़ा भत्ते का सरकार भुगतान करती है। वह भी भीषण महंगाई के इस दौर में पर्याप्त नहीं है।