एक बार फिर से कानूून में बदलाव की तैयारी शुरू.
मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। प्रदेश में भले ही निकाय चुनाव होने में अभी ढाई साल का समय है, लेकिन प्रदेश सरकार ने अभी से इसके निर्वाचन कानून में बदलाव की तैयारी शुरु कर दी है। इसके तहत 2027 में होने वाले नगर पालिका और नगर परिषद् के चुनावों में अध्यक्षों का चुनाव पार्षद नहीं, बल्कि जनता द्वारा किया जाएगा। इसके साथ ही बीते पांच साल में नगर पालिका एक्ट में यह चौथी बार बदलाव होने जा रहा है। इसके लिए नगरीय विकास एवं आवास विभाग द्वारा प्रारूप तैयार किया जा रहा है। इसके बाद इसे कैबिनेट बैठक में पेश किया जाएगा। कैबिनेट की मुहर लगने के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा। उधर, सीएम के निर्देश पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग भी जिला और जनपद पंचायत अध्यक्षों के भी प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने का प्रारूप तैयार कर रहा है। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में सिर्फ महापौर का चुनाव ही सीधे जनता के माध्यम से किया गया था। नगर पालिका और नगर परिषद् के अध्यक्षों का चुनाव इन पार्षदों के माध्यम से किया गया था। दरअसल, पिछले पांच साल में नगर पालिका एक्ट में ये चौथी बार बदलाव किया जा रहा है। इससे पहले 2019 में कमलनाथ सरकार ने इसमें बदलाव किया और नगर निगम, नगरपालिका और नगर परिषद् के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का फैसला किया था। इसके बाद शिवराज सरकार ने इसमें दो बार बदलाव किया। पहली बार में मेयर और अध्यक्ष दोनों का इलेक्शन डायरेक्ट करने का फैसला लिया था लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से दूसरी बार में आंशिक बदलाव करते हुए केवल मेयर के चुनाव आम जनता के माध्यम से कराया गया था।
राइट टू रिकॉल
नगर पालिका-निगम एक्ट 1961 की धारा 47 के तहत राइट टू रिकॉल का नियम लागू होता है। यदि पार्षद, नगरपालिका-परिषद् अध्यक्ष या नगर निगम मेयर, जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते तो उन्हें वापस बुलाने का नियम लागू होता है।
विधायकों के दबाव में लिया गया था फैसला
सूत्र बताते हैं कि नगर पालिका-परिषद् अध्यक्षों के इन डायरेक्ट इलेक्शन का फैसला शिवराज सरकार ने विधायकों के दबाव में लिया था। नगर पालिका-परिषद् अध्यक्ष जनता के जरिए सीधे चुने जाते हैं तो वे विधायक से ज्यादा पावरफुल हो जाते हैं। वे विधायकों के दबाव में नहीं रहते। शहरी क्षेत्र के विधायकों को अपने क्षेत्र में विकास कामों के लिए उन पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी तरह का मामला मेयर के साथ भी है।
भाजपा संगठन की मंशा
बीजेपी संगठन चाहता है कि मेयर और अध्यक्ष को सीधे जनता चुने न कि पार्षद। दरअसल, जब कमलनाथ सरकार ने नगरीय निकाय के मेयर और अध्यक्षों को अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुने जाने का प्रस्ताव पास किया था, तब बीजेपी ने इसका विरोध किया था। संगठन का मानना था कि भले ही निकाय में पार्टी के पार्षदों की संख्या कम हो लेकिन मेयर और अध्यक्ष यदि पार्टी का होता है तो ये शहर के विकास के लिहाज से मुफीद है। बीजेपी बजाय पार्षदों के, अध्यक्ष और मेयर के इलेक्शन पर फोकस करती है। इससे जनता के बीच एक अलग मैसेज जाता है। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद तत्कालीन शिवराज सरकार ने अध्यक्ष और मेयर का चुनाव डायरेक्ट कराने का फैसला किया था, लेकिन अध्यादेश को डेढ़ साल तक विधानसभा में पारित नहीं कराया। जब नगरीय निकाय के चुनाव नजदीक आए तो 26 मई 2022 को इसमें आंशिक संशोधन करते हुए केवल मेयर के चुनाव प्रत्याक्ष प्रणाली से कराए गए।
अपनों ने ही खोल रखा है मोर्चा
कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली से अध्यक्षों के चुनाव का जो फैसला लिया था, उसमें राइट टू रिकॉल के प्रावधान को हटा दिया था। यानी पार्षद ही अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उसे हटा सकते थे। इसमें नियम था कि वे अध्यक्ष के चुनाव के दो साल बाद ही अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे। इस नियम के चलते इसी साल सिवनी की केवलारी, गुना की चाचौड़ा, मुरैना की बानमोर नगर परिषद्, सागर की देवरी, नर्मदापुरम, टीकमगढ़, दमोह नगर पालिका समेत एक दर्जन से ज्यादा नगर पालिका और परिषद् अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए गए। इनमें से ज्यादातर नगरीय निकायों में बीजेपी के अध्यक्ष काबिज थे और इन्हें हटाने की तैयारियां कर ली गई थीं। इसको देखते हुए सरकार ने नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43(क) में बदलाव किया। इसमें अविश्वास प्रस्ताव दो साल की बजाय तीन साल में लाने का प्रावधान कर मामले को साधने का प्रयास किया गया है। हालांकि, अगले साल फिर इन अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।