बीएसएफ की 24वीं बटालियन में कार्यरत पूर्णम साऊ 23 अप्रैल को फिरोजपुर में भारत-पाक सीमा पर तैनात थे, जहां उन्होंने अनजाने में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर ली थी, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उन्हें ‘हिरासत’ में ले लिया था. इस समय उनका परिवार सदमे और अनिश्चितता से जूझ रहा है.

रिशरा (पश्चिम बंगाल): सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के 34 वर्षीय जवान पूर्णम साऊ को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पकड़े जाने के अठारह दिन बाद और संघर्षविराम की घोषणा के लगभग 24 घंटे बाद भी कोई राहत नहीं मिली है. वे अभी भी पाकिस्तानी सैन्य हिरासत में है.
मालूम हो कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति होने के बावजूद पश्चिम बंगाल के रिशरा में साऊ का परिवार उम्मीद रखे हुए है, भले ही दोनों देशों के बीच कूटनीतिक प्रयासों में धीमी प्रगति दिख रही हो.
उल्लेखनीय है कि फिरोजपुर में बीएसएफ की 24वीं बटालियन में तैनात साऊ को 23 अप्रैल को भारत-पाक सीमा पर तैनात किया गया था. उन्हें पकड़े जाने की यह घटना पहलगाम में सीमा पार से हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय पर्यटकों के मारे जाने के एक दिन बाद सामने आई थी.
स्थानीय किसानों को संवेदनशील क्षेत्र से निकालने में मदद करते समय साऊ ने कथित तौर पर अनजाने में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर ली थी, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उन्हें ‘हिरासत’ में लिया था. इसके बाद उनकी आंखों पर पट्टी बंधी एक तस्वीर जारी की, जिससे उनके पकड़े जाने की आशंका की पुष्टि हुई.
साऊ का पिरवार हुगली जिले के रिशरा के वार्ड नंबर 13 में अपने साधारण से घर में रहता है और इस समय सदमे और अनिश्चितता से जूझ रहा है. उनकी पत्नी रजनी साऊ, जो सात महीने की गर्भवती हैं, अपनी आपबीती सुनाते हुए बेहोश तक हो गईं.
उन्होंने रोते हुए कहा, ‘मेरे पति को पाकिस्तानी सेना ने अगवा कर लिया है. वह उनकी हिरासत में हैं. उन्होंने उनकी आंखों पर पट्टी बंधी एक तस्वीर जारी की है.’
अपहरण से कुछ घंटे पहले परिवार को फोन किया
उनकी पत्नी ने आगे कहा, ‘बीएसएफ अधिकारी हमारे घर आए और बताया कि वे मेरे पति को वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अब स्थिति युद्ध जैसी है. मुझे नहीं पता कि आगे क्या खबर आएगी!’
बता दें कि एक महीने की छुट्टी से लौटने के बाद पूर्णम ने 1 अप्रैल को ही ड्यूटी फिर से शुरू की थी. रजनी को उनका आखिरी फोन अपहरण से कुछ घंटे पहले 22 अप्रैल की रात को आया था, जिसमें उन्होंने रजनी से उनका हालचाल पूछा था, जैसा कि वह अक्सर नाइट शिफ्ट के बाद करते थे.
रजनी ने कहा, ‘इतने दिन बीत गए हैं, और अभी भी उनका कोई जवाब नहीं आया है.’
पूर्णम और रजनी का एक आठ वर्षीय बेटा भी है, जिसकी देखभाल अब पड़ोसी कर रहे हैं, वह फिलहाल इस स्थिति की गंभीरता से अनजान है.
पूर्णम के पिता भोला साऊ, जो एक सेवानिवृत्त सुरक्षा गार्ड हैं, ने शुरुआती सैन्य आश्वासनों के बाद चुप्पी पर निराशा जाहिर की.
साऊ की मां ने कहा, ‘हम अपनी बहू के साथ फिरोजपुर गए थे और सेना के अधिकारियों ने वादा किया था कि वे कोशिश कर रहे हैं. अब, कोई अपडेट नहीं है. अगर हम प्रधानमंत्री से संपर्क कर पाते, तो हम अपने बेटे की वापसी के लिए भीख मांगते. मेरे बेटे ने 18 साल तक देश की सेवा की है. आज, हम खुद को अकेला महसूस करते हैं.’
इस घटना ने रिशरा में बड़े पैमाने पर गैर-बंगाली प्रवासी समुदाय को एकजुट किया है, जो बिहार और उत्तर प्रदेश के जूट मिल श्रमिकों के वंशज हैं. स्थानीय लोग बारी-बारी से परिवार के वार्ड नंबर 13 के इस साधारण से घर का दौरा करते हैं, जहां टीवी स्क्रीन चौबीसों घंटे समाचार अपडेट दिखाती रहती हैं.
पूर्णम के भाई श्यामसुंदर ने कहा, ‘हम असमंजस में हैं. एक तरफ युद्ध की चीखें हैं, दूसरी तरफ हम शांति और पूर्णम की सुरक्षित वापसी की भीख मांग रहे हैं. हम सिंदूर लगाकर तभी जश्न मनाएंगे, जब वह घर लौट आएगा.’
इस संबंध में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले सोमवार गृह मंत्रालय से इस मामले के त्वरित समाधान की उम्मीद जताई थी. हुगली के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी पुष्टि की थी कि उन्होंने बीएसएफ कमांडरों के सामने इस मुद्दे को उठाया है.
उन्होंने कहा था, ‘मैंने बीएसएफ कमांडरों से बात की, जिन्होंने उनकी रिहाई के लिए किए जा रहे प्रयासों की पुष्टि की. मैं पूर्णम के परिवार से भी मिला, लेकिन स्थिति और खराब हो गई है.’
गौरतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर का नाम सुनते ही रजनी रो पड़ीं और उन्होंने अपना घूंघट चेहरे पर खींच लिया और रोते हुए कहा, ‘सरकार, मुझे मेरा सिंदूर वापस दे दे!’