जस्टिस बीआर गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने 14 मई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया है. जस्टिस केजी बालकृष्णन के बाद वे इस पद पर आसीन होने वाले अनुसूचित जाति समुदाय के दूसरे व्यक्ति हैं. वे 23 नवंबर, 2025 तक सीजेआई रहेंगे.

नई दिल्ली: भारत को एक नया मुख्य न्यायाधीश मिला है. जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार (14 मई) भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया, वे इस पद पर आसीन होने वाले 52वें व्यक्ति बन गए हैं.

जस्टिस गवई अनुसूचित जाति सूची में शामिल समुदाय से देश में शीर्ष न्यायिक पद पर आसीन होने वाले दूसरे व्यक्ति हैं. जस्टिस केजी बालकृष्णन पहले व्यक्ति थे, जिन्हें 2007 में नियुक्त किया गया था.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस गवई मुख्य न्यायाधीश बनने वाले पहले बौद्ध भी हैं.

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में जस्टिस गवई को शपथ दिलाई. शीर्ष कैबिनेट मंत्री और प्रधानमंत्री मौजूद थे. समारोह का आधिकारिक सोशल मीडिया चैनलों पर सीधा प्रसारण किया गया.

जस्टिस गवई 23 नवंबर, 2025 तक मुख्य न्यायाधीश रहेंगे.

उल्लेखनीय है कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर हाल ही में उठे सवालों के बाद दो दिन पहले जस्टिस गवई ने कहा था कि कि वह सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले किसी भी पद को ठुकरा देंगे.

जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को बॉम्बे उच्च न्यायालय से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. 24 नवंबर, 1960 को अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए. जस्टिस गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई, जिन्हें ‘दादा साहब’ के नाम से भी जाना जाता है, बिहार के पूर्व राज्यपाल और एक प्रमुख दलित नेता थे.

जस्टिस गवई ने 1987 से 1990 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की. 1990 के बाद उन्होंने मुख्य रूप से बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में प्रैक्टिस की.

उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में प्रैक्टिस की थी और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे.

जस्टिस गवई को 2003 में बॉम्बे उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और नवंबर 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बने.

कई प्रभावशाली निर्णयों का हिस्सा रहे

एक साहसी और निर्णायक न्यायाधीश के रूप में जाने जाने वाले जस्टिस गवई सर्वोच्च न्यायालय में कई प्रभावशाली फैसलों का हिस्सा थे, जिनमें संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करना शामिल है.

गवई उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने यह निर्णय दिया था कि राज्यों को राष्ट्रपति सूची में अधिसूचित अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकृत करने का अधिकार है, ताकि उन्हें सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा में अधिक वरीयता प्रदान की जा सके.

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत मामले में जस्टिस गवई के फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत किया था. उन्होंने उस पीठ की अध्यक्षता की थी जिसने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था.