16 विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त पत्र लिखकर विशेष संसद सत्र बुलाने की मांग उठाई

‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल सोलह विपक्षी दलों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखे पत्र में पुंछ, उरी, राजौरी में हमले, तनाव, नागरिकों की हत्या और संघर्ष विराम की घोषणा के साथ ही देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर इसके प्रभाव को लेकर ‘गंभीर सवालों’ का ज़िक्र किया गया है.

नई दिल्ली: ‘इंडिया’ गठबंधन के सोलह विपक्षी दलों ने मंगलवार (3 जून) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र लिखकर पहलगाम आतंकवादी हमले, ऑपरेशन सिंदूर, पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष और उसके बाद की घटनाओं पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है.

मालूम हो कि यह पत्र ऐसे समय में आया है, जब सरकार के कूटनीतिक प्रयासों के तहत विदेश भेजे गए बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों के देश लौटने के बाद संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की जा रही है.

इस मांग को लेकर 16 पार्टियों ने अपनी सहमति दी है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) के अलग से पत्र लिखने की उम्मीद है. वहीं एनसीपी (सपा) ने इस मांग से खुद को अलग कर लिया है.

पत्र में क्या लिखा है?

द वायर को मिली जानकारी के अनुसार, इस पत्र में पुंछ, उरी, राजौरी में हमले, तनाव, नागरिकों की हत्या और संघर्ष विराम की घोषणा के साथ ही देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर इसके प्रभाव को लेकर ‘गंभीर सवालों’ का जिक्र है.

पत्र में यह भी बताया गया है कि विपक्ष ने भारत की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ बातचीत करने के सरकार के प्रयासों का समर्थन किया है. हालांकि, अभी तक भारत पाकिस्तान सैन्य तनाव से जुड़ी जानकारी सरकार ने दूसरे देशों और मीडिया को दी है, लेकिन संसद को नहीं.

द वायर ने पिछले सप्ताह बताया था कि ‘इंडिया’ ब्लॉक के विपक्षी सदस्य संसद के विशेष सत्र की मांग करने पर काम कर रहे हैं.

कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के दो नेताओं द्वारा भेजे गए दो पत्रों के बाद राहुल गांधी चाहते थे कि प्रधानमंत्री को पत्र सभी विपक्षी दलों के समन्वय से भेजा जाए, न कि केवल कांग्रेस द्वारा.

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया, ‘इस संबंध में राहुल गांधी ने अखिलेश यादव, अभिषेक बनर्जी और आदित्य ठाकरे से संपर्क किया. केसी वेणुगोपाल और लोकसभा में सदन के उपनेता गौरव गोगोई सहित अन्य शीर्ष नेताओं ने कुछ और दलों से संपर्क किया. इसके अलावा लोकसभा के मुख्य सचेतक के. सुरेश और मणिकम टैगोर ने भी कई दलों से इस बारे में बातचीत की.

संयुक्त पत्र भेजने का निर्णय मंगलवार को पांच दलों – कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और शिवसेना (यूबीटी) के सांसदों की नई दिल्ली में हुई बैठक के बाद घोषित किया गया.

मालूम हो कि जिन सोलह दलों ने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें कांग्रेस, सपा, टीएमसी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके), शिवसेना (यूबीटी), राजद, नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), विदुथलाई चिरुथैगल काची (वीसीके), केरल कांग्रेस, मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कषगम और सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) शामिल हैं.

‘सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी है, संसद जनता के प्रति जबावदेह’

इस पत्र को लेकर राज्यसभा में टीएमसी संसदीय दल के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, ‘सोलह दलों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. पत्र में मूल रूप से पुंछ, उरी, राजौरी और संसद में स्वतंत्र और स्पष्ट चर्चा की बात की गई है. सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी है, संसद जनता के प्रति जबावदेह है. इसलिए हम संसद के विशेष सत्र की मांग कर रहे हैं.’

डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी (आप) भी पीएम मोदी को अलग से पत्र लिखकर यही मांग करेगी.

विपक्षी सांसदों ने कहा कि यह पत्र इसलिए जरूरी है क्योंकि सरकार को 33 देशों में भेजे गए सात बहुपक्षीय प्रतिनिधिमंडलों के साथ कूटनीतिक संपर्क के बाद संसद में पहलगाम आतंकी हमले के बाद की स्थिति पर भी चर्चा करनी चाहिए.

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा, ‘पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद कांग्रेस पार्टी और विपक्षी दलों ने जवाबी कार्रवाई करने के लिए सरकार को अपना पूरा समर्थन दिया था. सरकार को ऑपरेशन सिंदूर से लेकर अमेरिका द्वारा घोषित युद्ध विराम, पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने और आतंकवाद को जड़ से खत्म करने जैसे सभी मुद्दों पर अपने विचार रखने चाहिए.’
विपक्षी सांसदों ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम कराने और दोनों देशों को परमाणु युद्ध के कगार से वापस लाने के लिए व्यापार का इस्तेमाल करने के अपने दावों को जारी रखे हुए हैं, ऐसे में सरकार को संसद को उनके दावों की सच्चाई बतानी चाहिए.

सपा सांसद राम गोपाल यादव ने कहा, ‘आप पूरी दुनिया को बता रहे हैं, लेकिन भारत और उसके लोगों और संसद को अंधेरे में रख रहे हैं. हम जानना चाहते हैं कि किन देशों ने हमारा समर्थन किया. एक भी देश भारत के समर्थन में सामने नहीं आया. यह चिंताजनक है.’

उन्होंने कहा, ‘कूटनीतिक मोर्चे पर हम असफल रहे, सशस्त्र बलों ने अपना काम किया है और हम उन्हें बधाई देते हैं. लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर प्रधानमंत्री इतने सालों में इतने देशों का दौरा कर चुके हैं और उनके तथाकथित मित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी है. यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है. ऐसा लगता है कि हमें इसे रोकने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इस पर चर्चा होनी चाहिए. ट्रंप की घोषणा के कारण देश की छवि खराब हुई है और इस पर चर्चा होनी चाहिए.’

राजद सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि ट्रंप ने 15 दिनों में अपने मध्यस्थता के दावों को दोहराते हुए 13 बयान दिए हैं.

उन्होंने कहा, ‘ट्रंप ने 15 दिनों में 13 बयान दिए हैं. इसने एक समुदाय और एक राष्ट्र के रूप में भारत को चोट पहुंचाई है. संदेश कौन देगा? संसद. अगर इसके लिए संसद बुलाई जाती है, तो हम एक ही भाषा में बात करेंगे.’

ब्लूमबर्ग को दिए गए एक साक्षात्कार में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान द्वारा यह स्वीकार किए जाने का जिक्र करते हुए कि सैन्य संघर्ष में भारत को नुकसान हुआ है, झा ने कहा कि सवाल नुकसान की संख्या का नहीं है.

मनोज झा ने कहा, ‘मैं यह नहीं पूछ रहा कि कितना नुकसान हुआ. मैं पूछ रहा हूं कि हम इस पर कहां चर्चा करेंगे? संसद में. यह सरकार और विपक्ष का मामला नहीं है, यह जवाबदेही का मामला है. सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है और संसद लोगों के प्रति जवाबदेह है.’

मालूम हो कि झा, जिन्होंने सोमवार को मोदी को एक अलग पत्र लिखा था, उन कई विपक्षी नेताओं में से एक हैं, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद से संसद के विशेष सत्र की मांग दोहरा रहे हैं. अब तक चार अलग-अलग पत्र भेजे जा चुके हैं, जिनमें लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं.

हालांकि, सरकार ने अभी तक ऐसी किसी भी मांग पर ध्यान नहीं दिया है.

‘क्या हमें विशेष सत्र के लिए राष्ट्रपति ट्रंप के पास जाना चाहिए?’

शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने कहा, ‘अगर राष्ट्रपति ट्रंप के सुझाव पर संघर्ष विराम हुआ था, तो विपक्ष के बार-बार अनुरोध के बाद भी विशेष सत्र क्यों नहीं बुलाया जा सकता है? क्या हमें विशेष सत्र के लिए राष्ट्रपति ट्रंप के पास जाना चाहिए? हम अपने प्रधानमंत्री के पास जाएंगे.’

सांसदों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह पत्र प्रत्येक राजनीतिक दल के आंतरिक संसदीय दलों द्वारा नहीं भेजा गया है, जो आम तौर पर संसदीय रणनीति और भागीदारी को संभालते हैं, बल्कि यह पत्र पार्टियों के नेताओं द्वारा स्वयं भेजा गया है.

डेरेक ओ’ब्रायन ने बताया कि दोनों सदनों में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे, टीएमसी महासचिव और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और केसी. वेणुगोपाल पहले ही पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘लोकसभा और राज्यसभा के बाकी सांसद भी अगले कुछ दिनों में पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे.’
आप, एनसीपी (शरद पवार) संयुक्त पत्र से दूर

इस बीच गठबंधन के दो सदस्य – आप और एनसीपी (शरद पवार) इस एकजुट मांग से दूर रहे. आप के एक अलग पत्र लिखने की उम्मीद है, वहीं, एनसीपी (सपा) सुप्रीमो शरद पवार ने विशेष सत्र के आह्वान का समर्थन नहीं किया है.

सूत्रों ने द वायर को बताया कि एनसीपी (सपा) को लगता है कि कोई भी संसद सत्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर बोलने का मौका देगा, जिसमें विपक्षी सदस्यों को बोलने की अनुमति नहीं होगी. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भाजपा कैसे निपट रही है, इस पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं, पार्टी को लगता है कि संसद का विशेष सत्र बुलाना जरूरी नहीं है.

हालांकि, मंगलवार की बैठक के बाद शिवसेना सांसद राउत ने कहा कि एनसीपी (सपा) सांसद सुप्रिया सुले प्रतिनिधिमंडल के एक हिस्से के रूप में विदेश में हैं और जब शरद पवार मुंबई में होंगे तो वह उनके समक्ष इस मामले को उठाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘शरद पवार भी हमारे साथ हैं. सुले प्रतिनिधिमंडल के साथ बाहर हैं. जब मैं मुंबई जाऊंगा तो पवार से बात करूंगा.’

एनसीपी (सपा) ने कहा कि पवार पहले ही विशेष सत्र की मांग पर अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं.

एनसीपी (एसपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनीश गवांडे ने कहा, ‘शरद पवार ने खुद यह स्पष्ट कर दिया है कि हम इन मुद्दों पर संसद के विशेष सत्र के आह्वान का समर्थन नहीं करते हैं क्योंकि ये संवेदनशील प्रकृति के हैं. इसके बजाय, पवार ने सुझाव दिया है कि एक सर्वदलीय बैठक होनी चाहिए.’