मद्रास हाईकोर्ट के सामने यह मामला आया कि ईडी के अधिकारियों ने तलाशी और जब्ती अभियान के दौरान याचिकाकर्ता से जुड़े बंद पड़े परिसरों को सील कर दिया है, जिसके बाद अदालत ने आश्चर्य जताया कि ऐसा कौन-सा पीएमएलए का प्रावधान है, जो इसकी अनुमति देता है.

नई दिल्ली: मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार (17 जून) को कहा कि अदालतें अक्सर 2002 के मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) को एक ‘विकसित हो रहा कानून’ कहती हैं, जो नए कानूनी सवाल उठाता है, लेकिन वास्तव में यह ‘प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी हैं, जो अपनी शक्तियों का विस्तार करके दिन-प्रतिदिन आगे ही बढ़ते जा रहे हैं.’
रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एमएस रमेश ने फिल्म निर्माता आकाश भास्करन और उनके मित्र विक्रम रविंद्रन द्वारा दायर तीन रिट याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन के साथ एक खंडपीठ की अध्यक्षता करते हुए यह टिप्पणी की.
द हिंदू ने बताया कि जस्टिस रमेश की यह टिप्पणी तब आई, जब उन्होंने आश्चर्य जताया कि ऐसा कौन सा पीएमएलए का प्रावधान है, जो तलाशी और जब्ती अभियान के लिए पहुंचे ईडी अधिकारियोंं को बंद मिले आवासीय/व्यावसायिक परिसर को सील करने का अधिकार देता है.
मालूम हो कि याचिकाकर्ता ने ईडी अधिकारियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सेमेनचेरी में उनके ऑफिस परिसर और चेन्नई के पोएस गार्डन में एक किराए के आवासीय फ्लैट को भी ‘सील’ कर दिया था, क्योंकि वे बंद थे. एजेंसी 16 मई को तलाशी अभियान के लिए इन परिसरों में गई थी, जहां वह मौजूद नहीं थे.
हालांकि, ईडी के विशेष लोक अभियोजक एन. रमेश ने दोनों परिसरों को सील करने के आरोप से इनकार किया और कहा कि अधिकारियों ने केवल दरवाजों पर नोटिस चिपकाए थे, जिसमें याचिकाकर्ता से मनी लॉन्ड्रिंग जांच में सहयोग करने के लिए उनसे संपर्क करने के लिए कहा गया था.
लेकिन जस्टिस रमेश ने बताया कि नोटिस में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि ईडी अधिकारियों की अनुमति के बिना परिसर को नहीं खोला जाना चाहिए.
जस्टिस लक्ष्मीनारायणन ने पूछा, ‘यहां तक कि अगर यह मान भी लिया जाए कि नोटिस में लिखे गए शब्द सील करने के लिए नहीं होंगे, तो भी आपको किसी व्यक्ति को उसके घर या कार्यालय में प्रवेश करने से रोकने का अधिकार कहां से मिलता है.’
उन्होंने कहा कि ‘कोई भी समझदार व्यक्ति’ किसी सरकारी अधिकारी द्वारा अपने दरवाजे पर चिपकाए गए नोटिस को अनदेखा करने और अधिकारी द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना करने के लिए मुकदमा चलाए जाने के डर के बिना परिसर में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं करेगा.
गौरतलब है कि 23 मई को भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने ईडी को फटकार लगाते हुए कहा था कि ‘ईडी सभी हदें पार कर रहा है…आप देश के संघीय ढांचे का पूरी तरह से उल्लंघन कर रहे हैं.’