शीतकालीन सत्र में ऑनलाइन हो जाएगी मप्र विधानसभा की कार्यवाही

भोपाल/मंगल भारत। मप्र विधानसभा हाईटेक होने जा रही है। इसको लेकर विधानसभा सचिवालय ने तैयारियां चल रही हैं। लेकिन टैबलेट खरीदी में देरी के कारण मानसून सत्र में ई-विधान नहीं लागू हो पाएगा। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि शीतकालीन सत्र में मप्र विधानसभा पूरी तरह ऑनलाइन हो जाएगी। ई-विधान लागू होने के बाद पेपरलेस वर्किंग होगी, इसलिए विधायकों को सदन संबंधी दस्तावेज ऑनलाइन ही मिलेंगे। सदन में उनकी टेबल पर कागज पन्नों की जगह टैब होंगे। विधायकों को भी टैब दिए जाएंगे। इसी को ध्यान में रखकर तैयारी की जा रही है। मप्र विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू होगा। सत्र 8 अगस्त तक चलेगा। मानसून सत्र के दौरान कुल 10 बैठकें होंगी। विस सचिवालय में अशासकीय विधेयकों की सूचनाएं 9 जुलाई तक ली जाएंगी। अशासकीय संकल्पों की सूचनाएं 17 जुलाई तक प्राप्त की जाएंगी। विस में प्रथम अनुपूरक बजट और 6 विधयेक प्रस्तुत होंगे। विधानसभा सचिवालय ने मानसून सत्र से सदन की कार्यवाही ऑनलाइन संचालित करने की तैयारियां की थीं, लेकिन उसकी यह कवायद पूरी होती नहीं दिख रही है। सदन के अंदर विधायकों की टेबल पर टैबलेट नहीं लग पाने के कारण मानसून सत्र में विधानसभा की कार्यवाही ऑनलाइन संचालित नहीं हो पाएगी, बल्कि सदन की कार्यवाही पूर्व की तरह मैनुअली संचालित होगी।
ई-विधान में करीब 23 करोड़ लागत
दरअसल, मप्र विधानसभा में ई-विधान परियोजना को लागू की जा रही है। इस पर करीब 23 करोड़ रुपए लागत आएगी। इस संबंध में पिछले साल विधानसभा सचिवालय, संसदीय कार्य विभाग और संसदीय कार्य मंत्रालय के बीच अनुबंध हो चुका है। इसमें 60 प्रतिशत राशि केंद्र दे रहा है और 40 प्रतिशत राज्य सरकार लगा रही है। इस परियोजना के तहत मप्र विधानसभा में सभी काम ऑनलाइन होंगे। सदस्यों को सदन में प्रश्नकाल के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्न भी ऑनलाइन स्क्रीन पर नजर आएंगे। इसके लिए सदन में सभी 230 विधायकों की टेबल पर टैबलेट लगाए जाएंगे। ई-विधान की तैयारियों के बीच विधानसभा में केबलिंग आदि का कार्य लोक निर्माण विभाग को करना था, जो उसने पूरा कर लिया है। सदन में विधायकों की टेबल पर टैबलेट लगाने का काम राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के जिम्मे है। एनआईसी ने टैबलेट खरीदने के लिए टेंडर जारी किए थे, लेकिन पर्याप्त संख्या में आवेदन नहीं आने के कारण टैबलेट की खरीदी नहीं हो पाई। इस कारण सदन में विधायकों की टेबल पर टैबलेट नहीं लगाए जा सके, जिससे मानसून सत्र से सदन की कार्यवाही ऑनलाइन नहीं हो पाएगी। ई-विधान लागू होने के बाद एनआईसी तीन साल तक इसका संचालन करेगा।
यहां ऑनलाइन काम
विधानसभा सचिवालय और मंत्रालय के बीच ऑनलाइन काम-काज पहले से है। इसके लिए विशेष सॉटवेयर बनाया गया है। विधानसभा सचिवालय ने सभी विधायकों के ई-मेल एड्रेस तैयार कराए हैं। डिजिटल सिग्नेचर भी सचिवालय के पास हैं। ऑनलाइन काम-काज मेंइन डिजिटल सिग्नेचर कोमान्य किया जाता है। अब ऑनलाइन वर्किंग को और विस्तार दिया जा रहा है।
टैबलेट की खरीदीं में देरी
विधानसभा सचिवालय ने सदन के काम-काज को हाईटेक तरीके से किए के लिए पूरी जिमेदारी एनआईसी को दी है। टैबलेट खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 16 जुलाई को टेंडर खुलेंगे। मप्र विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह का कहना है कि ई-विधान प्रोजेक्ट लागू की करने की तैयारियां अंतिम चरण में है। पीडब्ल्यूडी विधानसभा में केबलिंग आदि का कार्य पूरा कर चुका है। समय पर टैबलेट की खरीदीं नही हो पाने के कारण एनआईसी विधायकों की टेबल पर टैबलेट नहीं लगा पाया है। वैसे हमारी कोशिश है कि मानसून सत्र से विधानसभा पूर्णत: डिजिटल हो जाए। अन्यथा अगले सत्र तक यह प्रक्रिया हर हाल में पूरी कर ली जाएगी। विधानसभा में ई-विधान लागू किया जाना है। इसी के तहत पूरी तैयारी चल रही है। ई-विधान लागू होने के बाद पूरी व्यवस्था ऑनलाइन हो जाएगी। अब शीतकालीन सत्र में सदन का नजारा बदला-बदला नजर आएगा। हर विधायक की टेबल पर टैबलेट होगा। इसमें सदन संबंधी सभी जानकारी उपलब्ध होगी। प्रश्नोत्तरी, राज्य का बजट, विभागीय प्रतिवेदन सहित अन्य सामग्री डिजिटली फॉर्मेट में होगी। विधायकों को अपने साथ दस्तावेज लाने की जरूरत नहीं होगी।
मोबाइल एप बनाया जाएगा
विधायकों की टेबल पर टैबलेट लगाने के साथ ही उन्हें अपने कार्यालय के लिए एक-एक टैबलेट दिया जाएगा। विधानसभा सचिवालय की ओर से विधायकों और उनके स्टाफ को ई-विधान के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाएगा। एक मोबाइल एप बनाया जाएगा, जिसे विधायक मोबाइल पर संचालित करेंगे। सहायकों को ट्रेनिंग इसलिए दी जाएगी, ताकि वे टैबलेट का बेहतर उपयोग कर सकें। तय गया है कि मानसून सत्र शुरू से पहले उन्हें ई-विधान का प्रशिक्षण दिया जाएगा।विधानसभा के अधिकारियों का कहना है कि ई-विधान व्यवस्था का उददेश्य देश की सभी विधानसभाओं को एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर लाना है। इससे एक दूसरे के नवाचार पता लगेंगे और विचारों का आदान प्रदान भी होगा। इस व्यवस्था लागू होने के बाद विधानसभा के कागज में खर्च होने वाले करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष बचेंगे। सदस्यों को चर्चा करने के लिए संदर्भसामग्री भी ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएगी।