सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के कांचा गच्चीबौली में वन भूमि को साफ करने के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल पर तीखी असहमति जताते हुए कहा कि रातोंरात किए गए ऐसे कार्यों को सतत विकास के नाम पर उचित नहीं ठहराया जा सकता. मई महीने में अदालत ने पेड़ों की कटाई को लेकर तेलंगाना के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को जेल भेजने की चेतावनी दी थी.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के कांचा गच्चीबौली में वन भूमि को साफ करने के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल पर तीखी असहमति जताते हुए कहा कि रातोंरात किए गए ऐसे कार्यों को सतत विकास के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ तेलंगाना के कांचा गच्चीबौली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से संबंधित एक स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी.
यह भूमि हैदराबाद के आईटी केंद्र में स्थित है. वहां के लोगों ने हरित क्षेत्र और वन्यजीवों के जगह के नुकसान पर चिंता व्यक्त की है.
मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकील से कहा, ‘यह सही दृष्टिकोण नहीं है, हालांकि मैं स्वयं सतत विकास का समर्थक हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप (स्टेट) रातोंरात 30 बुलडोज़र लगा दें और जंगलों को साफ़ कर दें.’
राज्य के वकील ने पीठ को सूचित किया कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्देश के अनुरूप पेड़ों की कटाई रोक दी है.
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य द्वारा मंगलवार को दायर एक हलफनामे में अदालत को बताया गया कि उक्त भूमि का उपयोग राज्य में विकास गतिविधियों के लिए किया जा रहा है.
वकील श्रवण कुमार कर्णम के माध्यम से दायर राज्य के हलफनामे में बताया गया है कि यह भूमि खेल अवसंरचना और संस्थागत विकास से लेकर आवास और औद्योगिक विस्तार तक, विभिन्न सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए सरकार की विभिन्न पहलों में चिन्हित की गई है.
राज्य ने कहा, ‘इस प्रक्रिया में कई हितधारक शामिल थे और यह विधायी अधिनियमों, कैबिनेट स्तर की मंज़ूरियों और अंतर-विभागीय परामर्शों से होकर गुज़री. किसी भी स्तर पर विषयगत भूमि को वन भूमि नहीं माना गया; बल्कि, इसे लगातार उच्च रणनीतिक मूल्य के विकास आरक्षित क्षेत्र के रूप में देखा गया.’
राज्य ने अदालत को बताया, ‘प्रस्तावित विकास, जो व्यापक भूमि (कांचा गच्चीबौली) के भीतर 400 एकड़ तक सीमित है, को जानबूझकर इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि क्षेत्र के व्यापक पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान न पहुंचे. इसका एक बड़ा हिस्सा अछूता है और खुले स्थानों या संस्थागत जोतों के रूप में काम करता रहता है, जिसमें सार्वजनिक उद्देश्यों और प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के लिए निर्धारित भूमि भी शामिल है.’
सुप्रीम कोर्ट ने पहले तेलंगाना के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को जेल भेजने की चेतावनी दी थी
15 मई को शीर्ष अदालत ने हैदराबाद के बाहरी इलाके कांचा गच्चीबौली के एक वन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई के लिए तेलंगाना के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को जेल भेजने की चेतावनी दी थी. उसने राज्य सरकार को वन क्षेत्र बहाल करने का भी निर्देश दिया था, अन्यथा उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाएगी.
सीजेआई गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अध्यक्षता वाली पिछली पीठ ने कहा था कि ‘प्रथम दृष्टया’ 10 से 13 मई के बीच 1,000 से अधिक पेड़ों को बुलडोजर से गिराने की पूरी कवायद विस्तारित सप्ताहांत का लाभ उठाने के लिए ‘पूर्व नियोजित’ थी.
सोमवार (13 मई) को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर अदालतें बंद थीं. पेड़ों की कथित कटाई शीर्ष अदालत द्वारा 3 अप्रैल को दिए गए निर्देश का उल्लंघन करते हुए की गई.
मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा था, ‘आपने इतने कम समय में कैसे व्यवस्था कर ली? एक दर्जन बुलडोज़र थे. प्रथम दृष्टया, ऐसा लगता है कि सब कुछ पूर्व नियोजित था.’
‘हमने तस्वीरें देखी हैं. क्या आपने तस्वीरें देखी हैं?’ सीजेआई गवई ने सिंघवी की इस दलील को खारिज करते हुए पूछा कि संबंधित क्षेत्र गैर-वन भूमि है और पेड़ों की कटाई राज्य द्वारा ‘नेक’ उद्देश्य से की गई थी.
पीठ ने पूछा था, ‘यदि आपके इरादे नेक थे, तो आपने लंबे सप्ताहांत की शुरुआत में पेड़ों को काटना क्यों शुरू किया, जब अदालतें बंद थीं?’
वरिष्ठ अधिवक्ता और न्यायमित्र के. परमेश्वर ने पहले पीठ को सूचित किया था कि यह कार्रवाई जल्दबाजी में की गई थी और काटे गए पेड़ों में घने और मध्यम वन क्षेत्र माने जाने वाले क्षेत्र भी शामिल थे. उन्होंने अपने दावों के समर्थन में भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति के निष्कर्षों का हवाला दिया था.
शीर्ष अदालत ने 3 अप्रैल को तेलंगाना के अधिकारियों द्वारा आईटी पार्क स्थापित करने के लिए 400 एकड़ वन भूमि पर 1,500 पेड़ों को कथित तौर पर काटे जाने का स्वत: संज्ञान लिया था.