रामपुर नैकिन का शिक्षा विभागीय ऑफिस — सरकारी तनख्वाह पर मौन साधना केंद्र!

रामपुर नैकिन का शिक्षा विभागीय ऑफिस — सरकारी तनख्वाह पर मौन साधना केंद्र!

विशेष रिपोर्ट सलाहकार संपादक – बलराम पांडेय की कलम से

“यह कोई ऑफिस नहीं, चमत्कारी स्थान है जहां कुर्सियाँ हैं, फाइलें हैं, कंप्यूटर हैं — बस कर्मचारी नहीं हैं।”
जी हां, हम बात कर रहे हैं रामपुर नैकिन विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय की — जो नाम से ‘शिक्षा’ कार्यालय है, लेकिन हकीकत में ‘उपेक्षा’ का तीर्थ स्थल बन चुका है।

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कुर्सियाँ खाली, जवाब गायब

जब हमारे संवाददाता ने कार्यालय की हाजिरी देखने का साहस किया, तो सामने आया एक शांत वातावरण — न कोई अधिकारी, न बाबू, न क्लर्क… सिवाय एक सहायक ग्रेड-2 श्री राजराखन कोल के।
वे अकेले योद्धा की भांति फाइलों से जूझते मिले। उनसे पूछा गया तो उन्होंने गहरी सांस लेकर कहा:

> “साहब लोग तो कभी-कभी दर्शन देने आते हैं। BEO साहब खुद स्कूल में प्राचार्य बने हुए हैं। और बाकी बाबू लोग… वो तो ट्रैकिंग सिस्टम से भी नहीं पकड़ में आते!”

पुस्तक वितरण से लेकर झाड़ू तक — राजराखन महाराज का वन मैन शो!

विकासखंड शिक्षा अधिकारी महोदय, जिन्हें ब्लॉक शिक्षा व्यवस्था का सेनापति कहा जाता है — वे वास्तव में शासकीय कन्या हाईस्कूल में प्राचार्य बनकर ‘स्थायी ठिकाना’ जमा चुके हैं।
और चपरासी के.के. पांडे जी?
वो तो चुरहट SDM ऑफिस में अटैच होकर ‘बहुआयामी व्यक्तित्व’ बन चुके हैं। नतीजा ये कि किताबें बांटना हो या बाहर के मेहमानों से पूछताछ — सबकुछ राजराखन जी को ही करना पड़ता है। शायद जल्द ही उन्हें “ऑफिस सहायक cum मल्टी टास्किंग सुपरहीरो” घोषित कर दिया जाए!

कंप्यूटर हैं, लेकिन ऑपरेटर को ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो चुका है!

ऑफिस में कंप्यूटर भरे पड़े हैं, लेकिन जब पूछा गया — “इन्हें कौन चलाता है?”
तो जवाब मिला:

> “पहले से ही सब मनमर्जी से चल रहा है, हमें नहीं पता!”
मतलब अब कंप्यूटर भी आत्मनिर्भर भारत के तहत खुद ही फैसले ले रहे हैं!

बाबूगण की गूढ़ उपस्थिति

तीन महाबाबू — अंजनी मिश्रा, बृज बिहारी निगम, बिष्णु मणि पयासी — पे-रोल पर दर्ज ज़रूर हैं, पर इनकी उपस्थिति पर ज्योतिषाचार्य ही रोशनी डाल सकते हैं।
वहीं राजेन्द्र सिंह, सुधीर कोल, मोहन लाल अग्निहोत्री — ऑफिस में ज़रूर दिखे, लेकिन सवाल पूछे जाने पर ऐसे चुप रहे जैसे ‘मौन ब्रह्मचर्य साधना’ का हिस्सा हों।

जिम्मेदार कौन? जवाबदेह कोई नहीं!

एक ब्लॉक का शिक्षा कार्यालय, जहां से स्कूलों की मॉनिटरिंग, समाधान और निगरानी होती है — जब वहीं पर ये हाल हो, तो दूरस्थ गांवों के स्कूलों का क्या होगा?

जब यह जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी तक पहुंचाई जाती है, तो जवाब में “जांच कराएंगे” वाली स्क्रिप्ट चल जाती है। लेकिन नतीजे… वही पुराने फाइलों की धूल में दब जाते हैं।

अंत में सवाल बड़ा है:

“जब शिक्षा का मुख्यालय ही शिक्षा से गायब हो जाए — तो जिम्मेदारी किसकी?”

क्या ये ‘मौन साधना केंद्र’ फिर से सक्रिय विकासखंड शिक्षा कार्यालय बन पाएगा?
या फिर सरकारी तनख्वाह पर ये शांति साधना यूं ही चलती रहेगी?

हम सवाल उठाएंगे, आवाज़ बनेंगे — क्योंकि ये आपकी और बच्चों की शिक्षा का सवाल है।

मंगलभारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका से
सलाहकार संपादक बलराम पांडेय
9893572905, 7999398695