संपादकीय | नेतृत्व पद के बिना नेतृत्वधर्म निभाते अजय सिंह राहुल
लेख: बलराम पांडेय(पत्रकार)
मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ नेता ऐसे होते हैं, जिनकी पहचान उनके पद से नहीं, बल्कि उनके कार्यों से होती है। चुरहट विधायक अजय सिंह राहुल का नाम इस श्रेणी में सबसे ऊपर आता है। सात बार के विधायक, पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र होने के नाते राजनीतिक अनुभव और विरासत दोनों उनके पास हैं, लेकिन यह भी एक यथार्थ है कि वर्तमान समय में उनके पास न तो प्रदेश कांग्रेस संगठन में कोई पद है और न ही विधानसभा में कोई औपचारिक भूमिका। फिर भी वे लगातार जनता के मुद्दों पर सक्रिय रहकर यह सिद्ध कर रहे हैं कि नेतृत्व किसी पद से नहीं, बल्कि जनविश्वास और कर्मशीलता से आता है।

हाल ही की दो घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं। पहली—चुरहट में ‘जन अधिकार आंदोलन’, और दूसरी—लीला साहू की सड़क की मांग पर हुई वास्तविक कार्रवाई। इन दोनों मामलों में अजय सिंह राहुल ने न केवल संवेदनशीलता दिखाई, बल्कि प्रशासनिक शिथिलता के बीच कार्यवाही करते हुए एक जनप्रतिनिधि की भूमिका का आदर्श प्रस्तुत किया।
जन अधिकार आंदोलन के दौरान अजय सिंह राहुल ने भारी बारिश के बावजूद जनता के साथ कदम से कदम मिलाया। बिजली, पानी, स्वास्थ्य, बीपीएल कार्ड जैसी बुनियादी जरूरतों पर प्रशासन को घेरते हुए उन्होंने एसडीएम कार्यालय में ज्ञापन सौंपा और पूरी प्रक्रिया को जनता के भरोसे के साथ पूरा किया। यह आंदोलन किसी राजनीतिक मंचन से अधिक एक चेतना अभियान के रूप में देखा गया—जिसमें नारे नहीं, मुद्दे थे; और भीड़ नहीं, जनसंपर्क था।
दूसरा प्रसंग सोशल मीडिया पर चर्चित हुआ—गर्भवती महिला लीला साहू की सड़क की मांग। यह मांग पहले उपेक्षा का शिकार बनी, फिर राजनीतिक विवाद का। लेकिन इसी बीच, अजय सिंह राहुल ने निजी खर्च से उस रास्ते की मरम्मत शुरू करवा दी। न तो उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, न कोई औपचारिक घोषणा—सिर्फ सादा कार्य। यही सादगी उन्हें जनता के निकट खड़ा करती है।
इन दोनों घटनाओं में जो बात सबसे प्रमुख रूप से सामने आती है, वह यह कि अजय सिंह राहुल नेतृत्व की उस शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो आज की राजनीति में दुर्लभ है—नारेबाज़ी नहीं, सेवा; प्रचार नहीं, समाधान; और पद की प्रतीक्षा नहीं, ज़िम्मेदारी की तत्परता।
यह संपादकीय केवल उनकी प्रशंसा के लिए नहीं, बल्कि प्रदेश कांग्रेस और राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए एक विचारणीय संकेत है: क्या पार्टी को अब ऐसे नेताओं की ओर गंभीरता से नहीं देखना चाहिए, जो पद से दूर रहकर भी जनहित में सक्रिय हैं?
जब कांग्रेस जैसे संगठन को विश्वसनीयता और ज़मीनी पुनर्निर्माण की आवश्यकता है, तब अजय सिंह राहुल जैसे अनुभवी, संयमी और लगातार सक्रिय नेता को केवल विधायक की भूमिका में सीमित रखना संगठनात्मक दूरदर्शिता पर प्रश्न खड़ा करता है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व की निरंतर चर्चा होती है, लेकिन नेतृत्व केवल चेहरों से नहीं बनता—बल्कि जनभावनाओं को पढ़ने और उन पर कार्य करने की क्षमता से बनता है। अजय सिंह राहुल, इस मायने में, एक सिद्ध उदाहरण हैं।
अब यह जिम्मेदारी कांग्रेस नेतृत्व की है कि वह ऐसे नेताओं को केवल बीते गौरव का प्रतीक न समझे, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक विकल्प के रूप में गंभीरता से देखे।
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