पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 2 अक्टूबर को नागपुर में होने वाले आरएसएस के 100वें स्थापना दिवस और विजयादशमी समारोह में मुख्य अतिथि होंगे.

नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ‘विजयादशमी’ समारोह में मुख्य अतिथि होंगे. यह आयोजन 2 अक्तूबर को नागपुर में होगा. आरएसएस ने शुक्रवार (22 अगस्त, 2025) को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर यह जानकारी दी.
संगठन की ओर से नागपुर प्रमुख राजेश लोया ने एक विज्ञप्ति में बताया कि आरएसएस अपना 100वां स्थापना दिवस नागपुर के रेशीमबाग मैदान में सुबह 7:40 बजे मनाएगा, जहां संगठन के सरसंघचालक मोहन भागवत अपने परंपरागत भाषण में श्रोताओं को संबोधित करेंगे.
ऐतिहासिक महत्व और प्रतीकवाद
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पहले पूर्व राष्ट्रपति होंगे जो आरएसएस के सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक कार्यक्रम विजयादशमी उत्सव में मुख्य अतिथि बनेंगे. यह आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने का भी अवसर है.
दलित समुदाय से आने वाले कोविंद का चुना जाना आरएसएस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ऐतिहासिक रूप से ‘ब्राह्मणवादी’ होने के आरोपों का सामना कर रहे संघ ने हाल के वर्षों में ‘सामाजिक समरसता अभियान’ के माध्यम से अपनी समावेशिता की छवि प्रस्तुत करने का प्रयास किया है. ऐसे में रामनाथ कोविंद का आरएसएस के समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना केवल एक प्रतीकात्मक घटना नहीं है.
ज्ञात हो कि रामनाथ कोविंद को 2017 में राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल 2022 में समाप्त हुआ. भारतीय जनता पार्टी से जुड़े नेता और पेशे से वकील, कोविंद उत्तर प्रदेश से राष्ट्रपति बनने वाले पहले व्यक्ति थे. वे राज्यसभा सदस्य और बिहार के राज्यपाल भी रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि कोविंद ने अपना पैतृक घर भी आरएसएस को दान कर दिया था, जो संगठन के प्रति उनकी भावनाओं को दर्शाता है.
संघ के किसी कार्यक्रम में शामिल होने वाले दूसरे पूर्व राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद दूसरे पूर्व राष्ट्रपति हैं जो आरएसएस के किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बन रहे हैं. इससे पहले 2018 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी संघ के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बने थे, जो संघ के तीन साल के प्रशिक्षण शिविर के समापन पर आयोजित हुआ था.
मुखर्जी के संघ मुख्यालय जाने पर तीखा राजनीतिक विवाद हुआ था. तब कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित ने कहा था, ‘प्रणब दा हमें और दूसरों को कहा करते थे कि आरएसएस सांप से भी ज़्यादा ख़तरनाक है. आरएसएस पर उनकी राय हमेशा कांग्रेस जैसी ही रही है कि आरएसएस सांप्रदायिक, दलित विरोधी और संविधान विरोधी है. फिर अचानक उन्होंने आरएसएस के किसी कार्यक्रम में शामिल होने का फ़ैसला क्यों किया? क्या उनकी आरएसएस पर राय बदल गई है या आरएसएस ने उनके विचारों को स्वीकार कर लिया है?’
कई कांग्रेसी नेताओं ने मुखर्जी से अपना निर्णय पुनर्विचार करने की अपील की थी. लेकिन, मुखर्जी नहीं माने.
संघ के लिए विजयादशमी का महत्व
विजयादशमी का दिन आरएसएस के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 1925 में इसी दिन डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में पांच साथियों के साथ संगठन की स्थापना की थी. तब से प्रतिवर्ष इस दिन सरसंघचालक रेशीमबाग मैदान से स्वयंसेवकों को संबोधित करता है.
हेडगेवार ने रणनीतिक रूप से विजयादशमी समारोहों को वार्षिक हिंदू आउटरीच कार्यक्रम के रूप में डिज़ाइन किया था. ऐसा माना जाता है कि इस समारोह में सरसंघचालक का भाषण हमेशा राष्ट्रीय चुनौतियों, हिंदू चिंताओं और आगामी वर्ष की रणनीति पर केंद्रित होता है.
मोदी और आरएसएस
उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 79वें स्वतंत्रता दिवस के भाषण में आरएसएस की प्रशंसा करते हुए कहा था कि यह ‘मानव निर्माण और राष्ट्र निर्माण’ के लिए प्रतिबद्ध संस्था है और इसे दुनिया का ‘सबसे बड़ा एनजीओ’ बताया था.
ध्यान रहें, चुनावी राजनीति में उतरने से पहले नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक थे और बचपन में स्वयंसेवक थे.