देश के 40% मुख्यमंत्रियों के ख़िलाफ़ दर्ज हैं आपराधिक मामले: एडीआर

एडीआर की रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि देश के 40% मुख्यमंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब केंद्र सरकार ने विधेयक पेश किए हैं, जिनमें 30 दिन तक जेल में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान है.

नई दिल्ली: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ताज़ा रिपोर्ट ने भारतीय राजनीति के एक चिंताजनक पहलू को उजागर किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, देश के कुल 30 मुख्यमंत्रियों में से 12 अर्थात 40 प्रतिशत ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामलों की घोषणा की है.

चौंकाने वाले आंकड़े और नेताओं की सूची

एडीआर के विश्लेषण में सामने आया है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी सबसे ज्यादा मामलों के साथ शीर्ष पर हैं, जिन्होंने 89 आपराधिक मामले घोषित किए हैं. इसके बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का स्थान है, जिनके नाम 47 मामले दर्ज हैं.

तीसरे स्थान पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू हैं जिनके खिलाफ 19 मामले, चौथे स्थान पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नाम 13 मामले और पांचवें स्थान पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विरुद्ध 5 मामले हैं.

इसके अतिरिक्त, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू दोनों के नाम 4-4 मामले हैं. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के विरुद्ध 2 मामले और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के खिलाफ एक मामला दर्ज है.

गंभीर अपराधों में लिप्त मुख्यमंत्री

एडीआर की रिपोर्ट में और भी चिंताजनक तथ्य सामने आया है. कुल 10 मुख्यमंत्री (33 प्रतिशत) ने गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की है. इनमें हत्या के प्रयास, अपहरण, रिश्वतखोरी, आपराधिक धमकी जैसे संगीन अपराध शामिल हैं.

ध्यान रहे, एडीआर ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए सभी 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मौजूदा मुख्यमंत्रियों के स्व-घोषित शपथपत्रों का गहन विश्लेषण किया है. यह डेटा उन हलफनामों से संकलित किया गया है जो इन नेताओं ने अपने पिछले चुनाव लड़ने से पूर्व चुनाव आयोग के समक्ष दाखिल किए थे.

वर्तमान में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है, इसलिए इसे इस विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया है.

नए विधेयक और विरोध

यह रिपोर्ट एक अत्यंत संवेदनशील समय पर आई है जब केंद्र सरकार ने संसद में तीन महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए हैं. इन विधेयकों में प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिन तक लगातार जेल में रहते हैं तो उन्हें स्वतः पद से हटा दिया जाएगा.

विपक्षी दलों ने इन विधेयकों का कड़ा विरोध किया है और इन्हें ‘तानाशाही’ और ‘असंवैधानिक’ करार दिया है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह विधेयक ‘संविधान की मूल भावना का हनन’ करता है और ‘कोई इंसान निर्दोष साबित होने तक दोषी नहीं’ के सिद्धांत का उल्लंघन करता है.

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे ‘तानाशाही कृत्य’ बताया और आरोप लगाया कि यह विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का षड्यंत्र है.

एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सरकार देश को ‘पुलिस राज्य’ बनाना चाहती है.

प्रधानमंत्री मोदी ने किया बचाव

दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता की एक रैली में इन विधेयकों का मजबूत बचाव किया है. उन्होंने कहा कि ‘भ्रष्ट मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को जेल से सरकार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती’.

प्रधानमंत्री ने टीएमसी के दो मंत्रियों पार्था चटर्जी और ज्योति प्रिया मल्लिक का उदाहरण देते हुए कहा कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने के बाद भी अपने पद नहीं छोड़ना चाहते थे.

संसदीय प्रक्रिया और भविष्य की राह
तीनों विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है, जिसमें लोकसभा के 21 सदस्य और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल हैं. समिति को अगले सत्र के पहले सप्ताह के अंतिम दिन तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है.

यह उल्लेखनीय है कि संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है, जो वर्तमान में एनडीए के पास उपलब्ध नहीं है.

एडीआर की रिपोर्ट और सरकार के प्रस्तावित विधेयक दोनों ही भारतीय राजनीति के अपराधिकरण पर गंभीर चर्चा की मांग करते हैं.

एक ओर जहां 40% मुख्यमंत्रियों के विरुद्ध आपराधिक मामले चिंता का विषय हैं, वहीं विपक्ष की कानून के दुरुपयोग की आशंकाएं भी निराधार नहीं हैं.