सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार के पुनर्विचार अनुरोध के बाद अपने पिछले फैसले में बदलाव करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन का तबादला अब छत्तीसगढ़ की बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट करने की सिफारिश की है.

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बुधवार (15 अक्टूबर) को एक बेहद असामान्य स्वीकारोक्ति में कहा कि सरकार द्वारा अपने पहले के फैसले पर ‘पुनर्विचार’ की मांग के बाद कॉलेजियम ने एक न्यायाधीश के स्थानांतरण संबंधी अपनी सिफारिश बदल दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 25 अगस्त को कॉलेजियम ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अतुल श्रीधरन का छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में स्थानांतरण करने की सिफारिश की थी. अब जस्टिस श्रीधरन की इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरण करने की सिफारिश की गई है.
कॉलेजियम की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, ‘सरकार द्वारा पुनर्विचार के लिए मांगे गए अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 14 अक्टूबर, 2025 को आयोजित अपनी बैठक में यह सिफारिश करने का फैसला लिया कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस अतुल श्रीधरन को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया जाए.’
हालांंकि, कॉलेजियम ने अतीत में भी न्यायाधीशों के स्थानांतरण के अपने निर्णय पर पुनर्विचार किया है, लेकिन बयान में यह स्पष्ट करना असामान्य है कि सरकार ने पुनर्विचार की मांग की थी.
यदि जस्टिस श्रीधरन का छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में स्थानांतरण होता, तो वे उस उच्च न्यायालय में दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश होते. लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वरिष्ठता में उनके सातवें स्थान पर होने की संभावना है.
जस्टिस श्रीधरन का सफर
उल्लेखनीय है कि जस्टिस श्रीधरन को 2016 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
इससे पहले एक वकील के रूप में उन्होंने इंदौर में अपनी प्रैक्टिस शुरू करने से पहले पांच साल तक वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम के चैंबर में प्रैक्टिस की थी.
2023 में उन्होंने स्वेच्छा से मध्य प्रदेश से बाहर स्थानांतरण की मांग की थी, यह कहते हुए कि उनकी बेटी इंदौर में अपनी प्रैक्टिस शुरू करेंगी.
इसके बाद उनका तबादला जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में कर दिया गया और 2025 में वे वापस मध्य प्रदेश आ गए.
श्रीनगर में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस श्रीधरन ने निवारक निरोध (Preventive Detention) मामलों की न्यायिक जांच को और अधिक व्यापक बनाया और जन सुरक्षा अधिनियम के तहत कई मामलों को रद्द कर दिया था.
वहीं, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जस्टिस श्रीधरन उस खंडपीठ का हिस्सा थे जिसने मीडिया में आई उन रिपोर्टों के बाद मामले का स्वतः संज्ञान लिया था, जिनमें कहा गया था कि राज्य के मंत्री विजय शाह ने भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ कथित तौर पर भड़काऊ टिप्पणी की थी.
इस मामले में अदालत ने सुनिश्चित किया था कि राज्य पुलिस द्वारा मंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए.
गौरतलब है कि तब मंत्री ने कहा था, ‘भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को उनकी ही बहन (उनकी समाज की बहन के जरिए) सबक सिखाया है.’
विजय शाह की इस टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी और अदालत ने उन्हें फटकार लगाई थी.
पैर धोकर पानी पीने के लिए मजबूर करने की घटना पर स्वत: संज्ञान
मालूम हो कि हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की बेंच ने दमोह जिले में ओबीसी समुदाय के एक व्यक्ति को पैर धोकर पानी पीने के लिए मजबूर करने की घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए गंभीर टिप्पणी की है.
अदालत ने इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई का निर्देश देते हुए कहा कि यदि इस मामले में जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो सामाजिक अशांति और हिंसा फैल सकती है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि जातीय हिंसा और भेदभाव की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. यही वह राज्य है, जहां एक सामान्य वर्ग के व्यक्ति ने एक आदिवासी पर मूत्र त्याग किया था और तब मुख्यमंत्री ने उस पीड़ित के पैर धोकर माफी मांगी थी.
अदालत ने इस घटना को ‘गहरा जातिगत भेदभाव और मानवीय गरिमा पर गंभीर हमला’ करार दिया और पुलिस को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 351 और 133, तथा धारा 196(2) के तहत कड़े आरोप जोड़ने का निर्देश दिया.
अदालत ने वायरल वीडियो में दिखाई दे रहे सभी लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाने का भी आदेश दिया.
पीठ ने कहा कि पीड़ित को भीड़ ने घेर लिया और उसे आज्ञा मानने के लिए मजबूर किया. यह जबरदस्ती और धमकी का दंडनीय कृत्य है.