यूपी: शीर्ष अदालत ने रद्द कीं धर्मांतरण संबंधी कई एफआईआर, कहा- आपराधिक क़ानून बेगुनाहों को सताने का हथियार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के फतेहपुर ज़िले में हिंदुओं के ईसाई धर्म में सामूहिक धर्मांतरण के आरोपों पर दर्ज कई एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि आपराधिक क़ानून निर्दोष नागरिकों को परेशान करने का औज़ार नहीं बन सकते.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (17 अक्टूबर) को कहा कि आपराधिक कानून का इस्तेमाल निर्दोष नागरिकों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले में हिंदुओं के ईसाई धर्म में ‘सामूहिक धर्मांतरण’ कराने के आरोपों पर दर्ज कई एफआईआर को रद्द करते हुए की.

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट का यह फैसला उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 के तहत दर्ज मामलों से जुड़ा है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इन मामलों की सुनवाई करते हुए पांच एफआईआर रद्द कीं.

इनमें आरोपियों में उत्तर प्रदेश के सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज़ के वाइस-चांसलर राजेन्द्र बिहारी लाल समेत कई अन्य लोग शामिल थे.

158 पन्नों के अपने फ़ैसले में जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि एफआईआर में कानूनी ख़ामियां, प्रक्रियागत चूक और ठोस साक्ष्यों की कमी थी. ऐसे में मुक़दमों को जारी रखना ‘न्याय का उपहास’ करने जैसा होगा.

अदालत ने कहा, ‘आपराधिक कानून को निर्दोष लोगों को सताने का औज़ार नहीं बनने दिया जा सकता. जांच एजेंसियों को अपनी मनमर्ज़ी से बिना ठोस आधार के मुक़दमे शुरू करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.’

फ़ैसले में कहा गया कि साल 2022 में दर्ज एक एफआईआर में ‘स्पष्ट ख़ामियां’ थीं. एक एफआईआर से जुड़े तथ्यों का ज़िक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘पुलिस यह नहीं कर सकती कि जब किसी मामले में पर्याप्त सबूत न हों, तब वही पुरानी कथित घटना दोबारा उठाकर कुछ ऐसे लोगों से शिकायत करवाए, जिनके अपने हिट इससे सधेंगे और फिर उन्हीं आरोपियों के ख़िलाफ़ नई जांच शुरू कर दे. दुर्भाग्य से रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से हमारे सामने यही तस्वीर उभरती है.’

पीठ ने यह दलील भी खारिज कर दी कि सुप्रीम कोर्ट को इन एफआईआर को रद्द नहीं करना चाहिए और यह मामला किसी अन्य अदालत में जाना चाहिए.

अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत नागरिकों को सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार दिया गया है, इसलिए शीर्ष अदालत को पूरा अधिकार है कि यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो, तो वह सीधे दख़ल दे सकती है.

कोर्ट ने कहा कि पीठ ने प्रत्येक एफआईआर के तथ्यों की विस्तार से समीक्षा की है, जिनमें सबसे अहम यह था कि किसी भी कथित ‘धर्मांतरण पीड़ित’ ने स्वयं पुलिस से शिकायत नहीं की थी.

पीठ ने छह एफआईआर में जुड़ी एक याचिका को अलग (डी-टैग) करने का निर्देश दिया, क्योंकि वह अन्य आरोपों से जुड़ा हुआ था, जिनकी अलग से सुनवाई की जानी है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उस मामले में आरोपियों को पहले दी गई अंतरिम राहत अंतिम फ़ैसला आने तक जारी रहेगी.

पीठ ने कहा, ‘अगर हाईकोर्ट को यह लगे कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है या होने की संभावना है, तो उसे अपने निहित अधिकारों का प्रयोग कर हस्तक्षेप करना चाहिए.’

अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश का धर्मांतरण विरोधी कानून एक विशेष अधिनियम है, जिसमें

सीआरपीसी से अलग कुछ विशेष प्रावधान हैं.
पीठ ने कहा, ‘कानून की व्याख्या उसके स्पष्ट शब्दों के अर्थ से की जानी चाहिए. जब तक वह व्याख्या असंगत या अव्यवहारिक न लगे, अदालत को उसके शब्दार्थ से हटकर व्याख्या नहीं करनी चाहिए.’

गवाहों के बयानों की सत्यता पर चर्चा करते हुए अदालत ने कहा कि ‘गवाह न तो धर्मांतरण के शिकार हुए थे, न ही वे 14 अप्रैल, 2022 को कथित सामूहिक धर्मांतरण की घटना के समय मौजूद थे.’

एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने एक एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि ‘एक ही कथित घटना के लिए कई एफआईआर दर्ज करना जांच एजेंसियों की शक्तियों के दुरुपयोग को दर्शाता है और न्यायिक निष्पक्षता को कमजोर करता है.’

बता दें कि ये सभी याचिकाएं दिसंबर 2021 से जनवरी 2023 के बीच आईपीसी और यूपी धर्मांतरण क़ानून के तहत दर्ज छह एफआईआर से जुड़ी थीं.

15 अप्रैल, 2022 को फतेहपुर के कोतवाली थाने में विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष हिमांशु दीक्षित की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी. इसमें 35 नामजद और 20 अज्ञात लोगों पर आरोप लगाया गया था कि 14 अप्रैल को एवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया में 90 हिंदुओं का ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया गया. यह दिन ईसाइयों के लिए धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण ‘मॉन्डी थर्सडे’ था.

शिकायत में कहा गया कि हिंदुओं को लालच, झांसे और दबाव में रखकर धर्मांतरण कराया गया.

आरोपियों पर आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 504 (शांति भंग के इरादे से अपमान) और 386 (धमकी देकर वसूली) सहित उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत मुक़दमे दर्ज किए गए थे.