सीजेआई बीआर गवई ने केंद्रीय विधि मंत्री को भेजे गए पत्र में शीर्ष अदालत के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत को अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की सिफ़ारिश की है. सीजेआई गवई का कार्यकाल अगले महीने की 23 तारीख तक है. इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत 53वें सीजेआई होंगे और 24 नवंबर से 9 फरवरी 2027 तक पद पर रहेंगे.

नई दिल्ली: केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने करीब सप्ताह भर पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई से अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने का अनुरोध किया था. इसके जवाब में सोमवार (27 अक्टूबर) को सीजेआई ने सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश सूर्यकांत को अगला मुख्य न्यायधीश नियुक्त करने की अनुशंसा की है.
नियमानुसार, निवर्तमान सीजेआई को पद छोड़ने से लगभग एक महीने पहले सरकार को लिखित रूप में अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करनी होती है.
सीजेआई गवई का कार्यकाल अगले महीने की 23 तारीख तक है. जस्टिस सूर्यकांत 53वें सीजेआई होंगे और 24 नवंबर से 9 फरवरी, 2027 तक पद पर रहेंगे.
कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत
हरियाणा के हिसार जिले के एक गांव में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत को 2002 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और अक्टूबर 2018 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति तक वे इस पद पर रहे.
हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से पहले वे हरियाणा की ओम प्रकाश चौटाला सरकार के महाधिवक्ता थे.
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत के जज के तौर पर वे कई महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों का हिस्सा रहे हैं. वे ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून पर रोक लगाने वाली पीठ में शामिल थे. इसी पीठ ने निर्देश दिया था कि कानून की समीक्षा तक इसके तहत कोई नई एफआईआर दर्ज न की जाए.
हाल ही में जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग पर बिहार के उन 65 लाख मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक करने के लिए दबाव डाला था, जिन्हें विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया था. यह मामला उनकी पीठ के समक्ष तब आया जब कई याचिकाओं में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाए जाने, पारदर्शिता की कमी और आयोग की वेबसाइट पर इस तरह के आंकड़ों का खुलासा न करने का आरोप लगाया गया था.
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने ही यह निर्देश दिया था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में कम से कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं.
वे उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से लेकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसे अपराधों के लिए फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज कई एफआईआर के बाद उन्हें ज़मानत देने के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा था कि ‘याचिकाकर्ता को अपनी राय व्यक्त करने, जैसा बतौर नागरिक उन्हें अधिकार है, न देने का निर्देश देना ज़मानत पर शर्तें लगाने के उद्देश्य से असंगत होगा.’
पीठ ने कहा था कि इस तरह की शर्त लगाना किसी गैग ऑर्डर के समान होगा और ‘गैग ऑर्डर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.’
भाजपा नेता नूपुर शर्मा, जिनकी पैगंबर मुहम्मद के बारे में टिप्पणी को लेकर व्यापक विवाद हुआ था, से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि सार्वजनिक हस्तियों को सांप्रदायिक विवादों से बचने के लिए अपने बयानों में ‘सावधानी और संयम’ बरतना चाहिए.
इस साल मई महीने की शुरुआत में जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को कड़े नियमों के तहत अंतरिम ज़मानत दी थी और उनके कथित युद्ध-विरोधी सोशल मीडिया पोस्ट की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन भी किया था. एक असाधारण कदम लेते हुए पीठ ने यह भी कहा था कि कथित तौर पर अशोका के छात्र और प्रोफेसर अगर ‘कुछ भी करने की हिम्मत करते हैं, तो हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, अगर वे हाथ मिलाने आदि की कोशिश करते हैं, तो हम जानते हैं कि इन लोगों से कैसे निपटना है, यह हमारे अधिकारक्षेत्र में हैं.’
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) द्वारा भारत में अप्रवासियों को शरणार्थी कार्ड जारी करने की निंदा करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था कि एजेंसी ने यहां शोरूम खोल दिया है और सर्टिफिकेट (यूएनएचसीआर कार्ड) जारी कर रही है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉय बागची की पीठ उस रोज़ ऐसे एक शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो सूडान का रहने वाले हैं और 2013 से भारत में रह रहे हैं. याचिकाकर्ता के अनुसार, उनके दो बच्चे हैं, जिनमें एक 40 दिन का शिशु है, और उनकी पत्नी व बच्चे को रिफ्यूजी कार्ड जारी किया गया है. वह ऑस्ट्रेलिया में शरण लेने का प्रयास कर रहे हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अस्थायी सुरक्षा की मांग की थी.
हालांकि, पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि भारत ने शरणार्थियों के अधिकारों से संबंधित मामलों को अंतरराष्ट्रीय संधि/सम्मेलन (रिफ्यूजी कन्वेंशन) को अनुमोदित नहीं किया है.