बिहार चुनाव: ‘ए राज में गरीब, खेती करे वाला और मजदूर लोग मरत बांटे, उनके केहू पूछत नइखे’

आरा, छपरा, गोपालगंज और सिवान के ज़िले के विधानसभा क्षेत्र में बेरोज़गारी, महंगाई और पलायन के साथ-साथ भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा बना है. कल पहले चरण में इन जगहों पर मतदान होना है. क्या नीतीश बढ़त ले पाएंगे?

छपरा: बिहार विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी, महंगाई और पलायन के साथ-साथ भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा बना है. मतदाता इस पर खुलकर बातचीत कर रहे हैं. आरा, छपरा, गोपालगंज और सिवान के जिले के विधानसभा क्षेत्र में घूमते हुए इन मुद्दों पर लोगों की मुखर आवाज सुनने को मिली.

गोपालगंज के हथुआ विधानसभा क्षेत्र के मीरगंज वाईपास पर बेरोजगारी के मुद्दे पर जदयू और राजद समर्थकों में बहस हो गई. जदयू समर्थक ने ज्यों ही कहा कि नीतीश कुमार फिर आएगा एक युवा ने तुरंत यह कहते हुए जवाब दिया कि’ ए बारी पलटू चाचा जात बाने.’

दुकान पर पड़किया (खोवे से बनने वाली मिठाई) खा रहे व्यक्ति की टिप्पणी थी, ‘ईवीएम सेट है. वोट चोरी हो जा रहा है नहीं तो यह सरकार कब की चली गई होती.’

बाईपास पर स्थित नरेश साह पड़किया दुकान पर जिगिना और मटिहानी गांव के लोग जुटे थे. राजद समर्थक युवा का कहना था कि रोजगार के नाम पर लोग तेजस्वी को वोट दे रहे हैं. सरकार के बदलत रहें के चाही. जइसन केरल और राजस्थान वाले करेलें. हर पांच वर्ष पर सरकार पलट देलें.

एक और व्यक्ति की तीखी टिप्पणी थी कि ‘नीतीश ए बेरी उलटी करें चाहे पलटी करे, सरकार में नाहीं अइहन.’ (नीतीश इस बार चाहें इधर जाएं या उधर जाएं, सरकार में नहीं आएंगे.)

यहीं पर मिले बुर्जुग रामअचल चौधरी का कहना था कि हम लोग पार्टी के उम्मीदवार के बजाय तेजस्वी को देख रहे हैं.

हथुआ विधानसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में राजद के राजेश सिंह कुशवाहा विजयी हुए थे. उनका मुकाबला जदयू के रामसेवक सिंह कुशवाहा से है. पिछले चुनाव में इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला हुआ था जिसमें राजेश सिंह कुशवाहा 30,527 वोटों से विजयी हुए थे.

जिगिना गांव के रामअचल चौधरी दो दशक पहले बंद हो गई मीरगंज चीनी मिल में काम करते थे. जब चीनी मिल बंद हुई तो उनकी तनख्वाह 31 हजार रुपये महीना थी. पीएफ और बोनस का करीब एक लाख रुपये नहीं मिला.

वह उन दिनों की याद करते हुए कहते हैं, ‘ट्रेन से यहां पर गन्ना आता था. तीन हजार लोग चीनी मिल में काम करते थे. पूरे इलाके में खूब रौनक हुआ करती थी. जवानी में मिल बंद हो गई. आज मिल चलती तो जिंदगी कुछ और होती. चीनी मिल बंद हो जाने से इस इलाके में गन्ने की खेती भी खत्म हो गई. धनिक आदमी भी गरीब हो गइलन.’

युवा दुकानदार बोला, ‘चीनी मिल चल रही थी, तो दो-तीन किलोमीटर तक बैलगाड़ी के रेला रहत रहे.’
चुनावी माहौल पर रामअचल चौधरी की टिप्पणी थी, ‘तीर और लालटेन में ही टक्कर बा. राजेश पिछली बार जीतल रहलें लेकिन जनता से सम्पर्क कम रहल. पांच साल बाद फिर दिखत बाटे लेकिन हम सब तेजस्वी के देखत हईं. तेजस्वी में ताकत बा.’

उनके अनुसार, ‘कुशवाहा (कोइरी) वोट जिधर ज्यादा जइहें उहे जीती. बाकी सब वोट अपनी जगहीं बा.’

कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र के मलही में चाय की दुकान पर चार-पांच लोग बैठे चुनावी चर्चा में मशगूल मिले. यह गांव अल्पसंख्यक बहुल है और यहां के लोग खाड़ी देशों के अलावा देश के दूसरे हिस्से में काम करने गए हैं.

दुबई, आबू धाबी, इराक में काम कर चुके बुजुर्ग बोले, ‘इहां जउन उच्जर घर देखत हईं उ सब खाड़ी के कमाई हैं. इहां की कमाई से त टाटी अउर मड़इहे बा. झारखंड राज्य बनले के बाद सब कल कारखाना, कोयला, अभ्रक उहां चल गइल. बिहार में खाली आलू और बालू रह गइल. पहले सिवान जिला में तीन मिल रहे. तीनों बंद हो गईल. गोपालगंज में मीरगंज और सासामुसा चीनी मिल भी बंद हो गईल. खाली हरखुआ चीनी मिल चलत बा.’

(यहां जहां ऊंचे घर देख रहे हैं वो सब खाड़ी की कमाई से बने हैं. यहां की कमाई से तो कच्चे मकान ही बन सकते हैं. झारखंड राज्य बनने के बाद से सब कल-कारखाने, कोयला-अभ्रक तो वहां चले गए. बिहार में केवल और और बालू बचे हैं. पहले सीवान में तीन मिल चलती थीं, अब तीनों बंद हो गईं. गोपालगंज में मीरगंज और सासामुसा मिल भी बंद हो चुकी हैं. केवल हरखुआ चीनी मिल चल रही है.)

मीरगंज चीनी मिल को याद करते हुए वे बोले कि चीनी के साथ-साथ डिस्टलरी भी थी. जब वह आबूधाबी में काम कर रहे थे तो मीरगंज डिस्टलरी से बनी शराब वहां भी जाती थी. एक बार एक जहाज शराब आई थी, तब छह सौ आदमी पेटी उतराने में लगे थे.
चाय पी रहे व्यक्ति ने महंगाई की चर्चा छेड़ते हुए कहा, ‘2014 के पहले 56 रूपया में डीजल और 500 रूपया में गैस सिलेंडर मिलत रहे. तब भाजपा वाले सिर पर सिलिंडर रख के चिल्लात रहने कि बड़ा महंगाई बा. अब जब सिलिंडर एक हजार हो गईल बा और आटा 40 रूपया बिकत बा त बोलती बंद बा.’

एक अन्य व्यक्ति ने उनकी बात को और आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘पइसवा सस्ता हो गइल बा.’ इसी बीच खैनी मलते हुए आए एक व्यक्ति ने कहा, ‘अरे महंगाई और भ्रष्टाचार कहां नइखे. इ कम बात बा कि युद्ध के समय में भी डीजल-पेट्रोल पेटोल आवत हवे.’ (अरे महंगाई और भ्रष्टाचार कहां नहीं हैं, यह कम बात है क्या कि युद्ध के समय में भी डीज़ल-पेट्रोल आ रहा था.)

उनके यह कहते ही बुर्जुग तिलमिला गए. बोले, ‘बीजेपी वाला लुटेरा पार्टी है. ओकरे साथे जे बा उहो लूटत बा. ये राज में उद्योगपति और बिजनेस मैन के बहार बा. अडानी-अम्बानी में त मोदी के शेयर बा.’ (भाजपा लुटेरी पार्टी है. उनके साथ जो है वो भी लूट रहा है. इस सरकार में उद्योगपति और कारोबारियों का फायदा है. अडानी-अंबानी के कारोबार में मोदी का हिस्सा है.)
गुमसुम बैठे एक व्यक्ति ने बहुत धीमी आवाज में कहा, ‘ए राज में गरीब, खेती करे वाला और मजदूर लोग मरत बांटे. उनके केहू पूछत नइखे.’ (इस सरकार में गरीब, खेतिहर और श्रमिक मर रहे हैं. उनको कोई पूछ भी नहीं रहा है.)

अब तक बात बेरोजगारी की तरफ मुड़ गई. चाय सुड़क रहे व्यक्ति ने कहा, ‘सब ओर नौकरी बंद हो गईल बा. एहीं देखीं. हमरे बाजार के बिजली विभाग में 17-18 मिस्त्री काम करत रहें. सब रिटायर हो गइलन लेकिन उनके जगह पर एगो आदमी काम पर नाहीं रखल गईल. प्राइवेट मिस्त्री से काम चलावल जात बा.’ (सब जगह नौकरी मिलना बंद हो गई है. यहीं देखिए, बाजार वाले बिजली विभाग में 17-18 मिस्त्री काम करते थे, सब रिटायर हो गए लेकिन उनकी जगह किसी को भी नौकरी पर नहीं रखा गया. प्राइवेट मिस्त्री से काम चलाया जा रहा है.)

तभी एक और आवाज आई, ‘सरकार सात-आठ हजार पर नौकरी करे के कहत बा. इहो नौकरी खातिर 40 हजार घूस देवे के पड़ी. सब कांट्रेक्ट पर नौकरी चल गईल. जे रिटायर होत बा उनके आधे तनख्वाह पर लगा दियल जात ह. लड़िकन के नौकरी देहले के बजाय इ सब सिस्टम बना देले बांटे सब.’ (सरकार कहती है कि सात-आठ हजार की नौकरी करो. इसी नौकरी के लिए चालीस हज़ार रिश्वत देनी पड़ती है. अनुबंध./कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी का चलन बढ़ गया है. रिटायर होने वाले लोगों की आधी सैलरी पर लोग रख दिए जाते हैं. युवाओं को मौकरी देने की बजाय सबने अब यही व्यवस्था बना ली है.)

इस बैठकी में सबसे मुखर बुजुर्ग ने महंगाई को लेकर अपना विश्लेषण पेश करते हुए महंगाई को शराबबंदी से जोड़ा.

उनका कहना था, ‘नीतीश शराब बंद कइके सब लगान गृहस्थन पर डाल देहलन. शराब के होम डिलवरी होत बा. जब शराबबंदी नाहीं रहे त ओसे मिले वाला पइसा से मास्टरन के तनख्वाह दे दिहल जात रहे. अब उ खर्चा पूरा करे के खातिर हर चीज पर लगान बढा देहले बांटे.’ (शराबबंदी से होने वाले राजस्व की क्षति को पूरा करने के लिए सब पर टैक्स बढ़ा दिया. इसलिए हर सामान महंगा हो गया और उसका बोझ जनता पर आ गया है. कहने को शराबबंदी है लेकिन घर-घर शराब पहुंच रहा है.)

गोपालगंज के भोरे विधानसभा क्षेत्र के दिघवा दलित बस्ती की रिंकू देवी ने ठीक यही बात कही कि शराबबंदी पूरी तरह से फेल है लेकिन उसके वजह से सरकार ने हर चीज पर टैक्स लगाकर महंगाई बढ़ा दी है.

मलही निवासी बुज़ुर्ग का कहना था कि इस बार बदलाव की उम्मीद है. तेजस्वी ने ढाई लाख युवाओं को नौकरी दी. उनको मुख्यमंत्री बनना चाहिए.

कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र के बारे में यहां बैठे लोगों का आकलन था कि यहां लड़ाई तीर (जदयू) , हाथ का पंजा (कांग्रेस) हाथी (बसपा) और स्कूल का बस्ता (जन सुराज पार्टी) के बीच है लेकिन आखिर में तीर और पंजा में मुकाबला होगा.

भोजपुर जिले के संदेश विधानसभा क्षेत्र में सकड्डी के पान विक्रेता ने शराबबंदी के बाद युवाओ में चरस, गांजा और दूसरे मादक पदार्थों के सेवन की बढ़ती लत का जिक्र करते हुए कहा कि शराबबंदी ने बिहार का लड़कों को बर्बाद कर दिया है. शराबंदी से कोई फायदा नहीं है. सरकार बदल जाएगी तो तो इसे खत्म कर देना चाहिए.

उनका यह भी कहना था कि तेजस्वी ने उपमुख्यमंत्री रहते नौकरी देकर युवाओं का विश्वास जीता है.
भोजपुर जिले के बड़हरा विधानसभा क्षेत्र के बबुरा में चाय दुकानदार विजय ने भी युवाओं में गोगो (चरस-गांजा) के बढ़ते सेवन का जिक्र करते हुए इसे शराबबंदी और बेरोजगारी का परिणाम बताया. उनका कहना था कि चाय-पान की दुकानों पर चरस-गांजा खुलेआम मिल रहा है जिसे पेपर में लपेटकर युवा पी रहे हैं.

लोग भ्रष्टाचार का सवाल भी उठा रहे हैं. लोग निचले स्तर पर ब्लाक स्तर के कार्यालयों में भ्रष्टाचार का जिक्र करते हैं.

भोरे विधानसभा क्षेत्र के खरपकवा गांव के मृत्यंजय मौर्य का कहना था कि प्रखंड ब्लाक के किसी भी ऑफिस में बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता है. आम लोग इससे सीधे प्रभावित हैं. इसलिए उनमें सरकार के खिलाफ आक्रोश है.

महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, पलायन के सवाल को लेकर लोग बदलाव की बात कर रहे हैं. बनहजिया टोला के युवा अजय ने सवाल किया कि यदि बिहार में रोजगार मिलता तक हमारे घर के लोगों को बाहर मजदूरी करने क्यों जाना पड़ता? अजय पहली बार वोट देने जा रहे हैं. उन्होंने साफ कहा कि वे महागठबंधन को वोट देंगे.

छपरा विधानसभा क्षेत्र के मुसहरी छपरा में लोग महंगाई, बेरोजगारी पर चर्चा करते मिले.

दिघवा गांव की रिंकू देवी ने पलायन के दर्द को बयान करते हुए कहा, बिहार में रोजगार नइखे. सब लोग आपन देश छोड़ विदेश जात बा.’

इसी गांव की बुजुर्ग चनवा देवी हालात बयान करते हुए कहती हैं, ‘400 रूपया मजदूरी में हमन के कइसे परिवार चली. गरीबन के त एकदम चूस लिहल गईल बा. मोदी-नीतीश कवनो सुनवाई नाहीं करत बानी. एहीला हम कहत हईं कि मोदी के छांट दी, नीतीश के अलग कई दीं. अब दूसरे के बुलावल जा.’

(400 रुपये मजदूरी में हमारा परिवार कैसे चलेगा. गरीब लोगों को एकदम निचोड़ लिया गया है. मोदी-नीतीश कोई नहीं सुनता है इसलिए हम कह रहे हैं कि मोदी को हटा दिया जाए और नीतीश को अलग कर दिया जाए. अब किसी दूसरी की सरकार लाई जाए.)

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)