बिहार का पहला चरण: दो प्रमुख गठबंधनों की टक्कर, प्रशांत किशोर बेअसर, वोट बिखराव की उम्मीद कम

पहले चरण के चुनाव में कई ज़िलों में वोटों का बिखराव कम होने की उम्मीद है. पिछले चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने अच्छा मत प्राप्त किया था. इस बार लोजपा एनडीए का हिस्सा है. जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी कुछ सीटों पर छोड़कर कहीं तीसरा कोण बनाते नहीं दिख रहे हैं. चुनावी संघर्ष दोनों गठबंधनों में सिमटता गया है.

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण में आज छह नवम्बर को 121 सीटों के लिए मतदान होने जा रहे हैं. इनमें से चार जिलों- भोजपुर, सारण, सिवान और गोपालगंज – की 31 वह सीटें भी हैं जहां पिछले चुनाव में महागठबंधन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 20 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार वह अपने वादों और कल्याणकारी योजनाओं के सहारे बढ़त कायम रखने की कोशिश में है, जबकि एनडीए विकास कार्यों और स्थिर शासन के नाम पर मैदान में उतरकर उन्हें चुनौती देने में जुटा है.

पिछले चुनाव के मुकाबले और बड़ा गठबंधन बनाने, अति पिछड़ी जातियों पर फोकस करने के साथ हर घर में पक्की नौकरी, माई-बहिन योजना में हर महिला को हर महीने 2500 रूपए देने, 500 रुपए में गैस सिलेंडर, संविदा कर्मियों को नियमित करने, जीविका सीएम को 30 हजार देने, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में फंड बढाने जैसी बड़ी घोषणाओं के बूते महागठबंधन अपनी सफलता को दोहराने और मजबूत करने की कोशिश में जुटी है.

दूसरी तरफ, एनडीए चुनाव पूर्व पेंशन बढाने, जीविका दीदियों को दस-दस हजार रूपये देने, 125 यूनिट बिजली फ्री करने के काम सहित विकास योजनाओं को गिनाकर और ‘जंगलराज’ की वापसी नहीं आने देने की बात कर रहा है.

पहले चरण में भोजपुर जिले की सात, सारण की दस, गोपालगंज की छह और सिवान जिले की आठ सीटों पर मतदान होना है.

पिछले चुनाव में महागठबंधन ने सिवान जिले की आठ सीटों में से छह- सिवान, रघुनाथपुर, बड़हरिया, महराजगंज, जीरादेई और दरौली की सीट जीती थी. जीरादेई और दरौली में भाकपा माले प्रत्याशियों की जीत हुई थी. महराजगंज में कांग्रेस तो सिवान, रघुनाथपुर और बडहरिया में राजद प्रत्याशी की जीत हुई थी.

दुरौधा से भाजपा के कर्मवीर सिंह उर्फ व्यास सिंह तो गोरेयाकोठी से देवेश कांत सिंह जीते थे.

सारण की 10 सीटों में से एकमा, बनियापुर, मढ़ौरा, गरखा, परसा, सोनेपुर राजद ने और मांझी माकपा ने जीती थी. तरैया, छपरा और अमनौर सीट से भाजपा जीती थी.

भोजपुर की सात सीटों में से भाकपा माले ने तरारी और अगियांव जीती तो राजद ने संदेश, जगदीशपुर और शाहपुर में विजय प्राप्त की थी. भाजपा ने आरा और बड़हरा में जीत हासिल की थी.

पिछले चुनाव में गोपालगंज की छह सीटों पर महागठबंधन कमजोर रहा. उसे केवल दो सीटें- बैंकुठपुर और हथुआ में कामयाबी मिली. कुचायकोट और भोरे में जदयू तो बरौली और गोपालगंज सीट पर भाजपा जीती थी.

चार जिलों की 31 सीटों में से सिवान जिले की सिवान, बड़हरिया और महराजगंज, गोपालगंज की भोरे, सारण जिले की अमनौर और भोजपुर की आरा और बड़हरा में कम अंतर से हार-जीत हुई थी. सीवान सीट पर राजद के अवध बिहारी चौधरी 1973, बड़हरिया से राजद के बच्चा पांडेय 3559 और महाराजगंज से कांग्रेस के विजय शंकर दुबे 1976 वोट से जीते थे. अमनौर से बीजेपी के कृष्ण कुमार 1976 वोट से जीत पाए थे. भोजपुर जिले में बड़हरा से भाजपा के राघवेन्द्र प्रताप सिंह 4973 तो आरा से अमरेन्द्र प्रताप सिंह 3002 वोटों से जीते थे.

भोजपुर जिले के अगियांव और तरारी में उपचुनाव भी हुए. अगियांव सीट भाकपा माले ने फिर से जीत ली लेकिन तरारी सीट से उपचुनाव में उनका प्रत्याशी भाजपा के विशाल प्रशांत से हार गया. तरारी सीट पर उपचुनाव यहां से विधायक रहे सुदामा प्रसाद के आरा से सांसद बन जाने से हुआ था जबकि अगियांव सीट पर माले विधायक मनोज मंजिल को एक केस में सजा होने के बाद उपचुनाव हुआ था.
भोरे विधानसभा में जदयू प्रत्याशी सुनील कुमार भाकपा माले प्रत्याशी जितेन्द्र पासवान से सिर्फ 462 मत से जीत पाए थे.

सिवान, रघुनाथपुर, भोरे, कुचायकोट, छपरा, आरा चर्चित सीटों में शुमार है. सिवान से विधान सभा स्पीकर रहे अवध बिहारी चौधरी का मुकाबला स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से है तो भोरे में शिक्षा मंत्री एवं जदयू प्रत्याशी सुनील कुमार को जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष धनंजय कुमार चुनौती दे रहे हैं. कुचायकोट में 20 वर्ष से लगातार जीत रहे बाहुबली नेता अमरेन्द्र कुमार पांडेय का मुकाबला इस बार कांगे्रस प्रत्याशी हरिनारायण सिंह कुशवाहा से है. इसी सीट पर पूर्व आईएस अधिकारी विजय कुमार चौबे जनसुराज पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं.

रघुनाथपुर में राजद से यहां से कई बार सांसद रहे शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब चुनाव लड़ रहे हैं. उनके लिए राजद के सिटींग विधायक हरिशंकर यादव ने स्वेच्छा से सीट छोड़ दी है. जदयू ने यहां से नया प्रत्याशी विकास कुमार सिंह को चुनाव लड़ाया है.

जीरादेई और दरौली सीट पर एनडीए से प्रत्याशी बदले गए हैं. जीरादेई से जदयू के टिकट पर भीष्म कुशवाहा मैदान में हैं तो दरौली में लोक जन शक्ति पार्टी से विष्णु देव पासवान चुनाव लड़ रहे हैं. जीरादेई में बसपा से प्रमोद कुमार मल्ल चुनाव लड़ रहे हैं जो गोरखपुर में रहते हुए हिन्दू युवा वाहिनी से जुड़े थे और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी थे.

इन दोनों सीटों पर भाकपा माले की जबर्दस्त पकड़़ है. दोनों सीटों पर अति पिछडी जातियों में माले की गहरी पैठ है. जीरादेई से पिछला चुनाव अमरजीत कुशवाहा जेल में रहते हुए जीत गए थे. मैरवा में मिले बड़का मांझा गांव के इनरमा चैहान और रमागुमानी ने कहा कि हमारे क्षेत्र में माले को हर तरफ बढ़त है.

यहां पर सिवान की सांसद विजय लक्ष्मी के पति और पूर्व विधायक रमेश कुशवाहा जद यू प्रत्याशी के लिए एड़ी चोटी लगाए हुए हैं.

छपरा से भोजपुरी अभिनेता-गायक खेसारी यादव राजद के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. उनके प्रचार में कई भोजपुरी कलाकारों ने प्रचार किया है. भोजपुरी अभिनेता सांसद रवि किशन और भाजपा का प्रचार कर रहे भोजपुरी अभिनेता-गायक पवन सिंह, पूर्व सांसद दिनेश यादव निरहुआ ने राजद से चुनाव लड़ने पर खेसारी यादव पर जमकर निशाना साधा जिसका भरपूर जवाब खेसारी यादव ने दिया. भोजपुरी इंडस्ट्री के अभिनेताओं-गायकों के बीच चुनावी वाकयुद्ध के वीडियो व रील खूब देखे जा रहे हैं.

कुचायकोट में 2005 से हर चुनाव जीत रहे अमरेंद्र पांडेय की एक छवि बाहुबली की है. उनके द्वारा दिए गए एफिडेविट में 14 क्रिमिनल केस दर्शाये गए हैं. पिछला चुनाव यहां त्रिकोणीय था. कांग्रेस से काली प्रसाद पांडेय चुनाव लड़े तो उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी राष्टीय लोक समता पार्टी की उम्मीदवार सुनीता देवी से हुई थी. सुनीता देवी 33533 वोट पा गयी थीं. क्षेत्र के जानकार लोगों का मानना है कि यदि वोट बंटा नहीं होता तो अमरेन्द्र पांडेय मुश्किल में पड़ गए होते. इस बार कांग्रेस से सुनीता देवी के भसुर (पति के बड़े भाई ) हरिनारायण सिंह कुशवाहा लड़ रहे हैं. सुनीता देवी भी जोरशोर से उनका प्रचार कर रही हैं. सुनीता देवी के पति रामाश्रय सिंह कुशवाहा की हत्या हुई थी. वे कोइरी बिरादरी के लोकप्रिय नेता थे.
भोरे और कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र में कोइरी बिरादरी की अच्छी-खासी संख्या है. दोनों क्षेत्रों में इस बिरादरी के लोग महागठबंधन के पक्ष में दिख रहे हैं लेकिन अमरेन्द्र कुमार पांडेय की क्षेत्र में अच्छी पैठ है. व्यक्तिगत स्तर पर मदद करने से उनके पक्ष में लोग खूब बोलते हैं. कुचायकोट के चाय दुकानदार ने कहा कि ‘बाबा का ही बोलबाला है.’

गोपालगंज सीट पर कांग्रेस ने इस बार अपना प्रत्याशी ओम प्रकाश गर्ग को बनाया है. पूर्व सांसद अनिरूद्ध प्रसाद यादव उर्फ साधु यादव ने इस बार अपनी पत्नी इन्दिरा यादव को बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया है. पिछली बार अनिरूद्ध यादव ने बसपा से लड़कर 41039 वोट लेकर दूसरा स्थान प्राप्त किया था और कांग्रेस प्रत्याशी आसिफ गफूर को तीसरे स्थान पर भेज दिया था.

भोजपुर जिले के संदेश और बड़हरा में राजद अपने बागियों से जूझ रही है. बड़हरा में पिछले बार दूसरे स्थान पर रहे दूसरे स्थान पर रहे सरोज यादव टिकट न मिलने पर बागी बन गए हैं. यहां पर राजद ने बालू व्यवसायी अशोक कुमार सिंह को टिकट दिया है. निर्दल चुनाव लड़ रहे सूर्यभान सिंह भाजपा मतो को प्रभावित कर रहे हैं. संदेश में जदयू राधा चरण साह को प्रत्याशी बनाया है तो राजद ने पूर्व विधायक अरूण यादव ने अपने बेटे दीपू सिंह को राजद से टिकट दिलवाने में कामयाब रहे. पिछली बार अरूण यादव की पत्नी किरन देवी चुनाव जीती थीं.

पिछली बार के मुकाबले इस बार कुछ सीटों को छोड़ हर सीट पर प्रत्याशियों की संख्या में कमी आई है. पिछले बार गोपालगंज की छह विधानसभा क्षेत्र में 92 प्रत्याशी थे जबकि इस बार 46 ही हैं. सिवान की आठ सीटों पर इस बार 76 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं जबकि पिछले बार 11 चुनावी रण में थे. सारण जिले की 10 सीटों पर पिछली बार 144 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे जबकि इस बार 108 ही हैं. भोजपुर के सात सीटों पर 73 प्रत्याशी मैदान में थे जबकि इस बार 98 ही चुनाव लड़ रहे हैं.

इस तरह अधिकतर सीटों पर वोटों का बिखराव कम होने की उम्मीद है. पिछले चुनाव में कई सीटों पर लोक जनशक्ति पार्टी प्रत्याशियों ने अच्छा मत प्राप्त किया था. इस बार लोजपा एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. इस चुनाव में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी का मजबूती से चुनाव प्रचार में लगे हैं लेकिन कुछ सीटों पर छोड़ वे कहीं तीसरा कोण बनाने नहीं दिख रहे हैं. इस बार का चुनावी संघर्ष दोनों गठबंधनों में और अधिक सिमटता गया है. मतदाता भी प्रत्याशी के ऊपर दल को तवज्जो दे रहे हैं. बबुरा में विजय ने कहा कि अब सब ऊपर (पार्टी ) की तरफ देख रहे हैं. प्रत्याशी में कोई कमी है तो उसको नजरअंदाज किया जा रहा है.

स्पष्ट है कि जिस पार्टी की जितनी गहरी पकड़ होगी, जीत उसकी होगी.