जस्टिस सूर्यकांत को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 53वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ दिलाई. उनका कार्यकाल 9 फरवरी, 2027 तक रहेगा. सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस कांत कई अहम संवैधानिक फैसलों से जुड़े रहे हैं, जिनमें अनुच्छेद 370 को हटाना, चुनावी बॉन्ड योजना, राजद्रोह क़ानून, पेगासस स्पायवेयर केस शामिल हैं.

नई दिल्ली: जस्टिस सूर्यकांत को सोमवार (24 नवंबर) सुबह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 53वें चीफ जस्टिस (सीजेआई) के तौर पर शपथ दिलाई.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट के कई मंत्री शामिल हुए.
चीफ जस्टिस कांत का सीजेआई के तौर पर कार्यकाल एक साल से थोड़ा ज़्यादा है. वह 9 फरवरी, 2027 को रिटायर होंगे. उन्हें 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस कांत कई अहम संवैधानिक फैसलों से जुड़े रहे हैं, जिनमें अनुच्छेद 370 को हटाना, बिहार के वोटर लिस्ट में बदलाव और पेगासस स्पाइवेयर केस शामिल हैं.
10 फरवरी 1962 को हिसार के नरनौंद क्षेत्र के पेटवार गांव में जन्मे जस्टिस कांत ने पहले गांव के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की और बाद में 1984 में महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून की डिग्री हासिल की. उन्होंने उसी साल हिसार डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अपनी कानून की प्रैक्टिस शुरू की और बाद में चंडीगढ़ चले गए, जहां उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कॉन्स्टिट्यूशनल, सर्विस और सिविल लॉ में स्पेशलाइज़ेशन के साथ एक अच्छी प्रैक्टिस शुरू की. तीन दशक बाद जज के तौर पर काम करते हुए उन्होंने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से फर्स्ट-क्लास के साथ लॉ में मास्टर डिग्री हासिल की.
कानून के क्षेत्र में उनकी तरक्की तेज़ी से हुई. 38 साल की उम्र में वह 2000 में हरियाणा के सबसे कम उम्र के एडवोकेट जनरल बने, अगले साल उन्हें सीनियर एडवोकेट बनाया गया और 2004 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज के तौर पर प्रमोट किया गया. उन्होंने अक्टूबर 2018 से मई 2019 तक सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रमोशन से पहले हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का पद संभाला.
पिछले छह सालों में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत ने 300 से ज़्यादा फैसले दिए हैं, जिनमें कई हाई-प्रोफाइल संवैधानिक मामले भी शामिल हैं.
वह उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 को हटाने का फ़ैसला किया था, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो गया था. जस्टिस कांत उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने चुनावी बॉन्ड योजना को गैर-कानूनी ठहराया था. वह उन बेंच के सदस्य थे जिन्होंने पेगासस स्पाइवेयर केस और राजद्रोह कानून को निलंबित करने की सुनवाई की थी. हाल ही में वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा राज्य के बिलों को मंज़ूरी देने के लिए समयसीमा तय करने पर प्रेसिडेंशियल रेफरेंस में अपना फ़ैसला सुनाया था.
नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी (नालसा) के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर उन्होंने सैनिकों, रिटायर्ड सैनिकों और उनके परिवारों को मुफ़्त कानूनी मदद देने के लिए वीर परिवार सहायता योजना 2025 शुरू की.