सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियों के ऑफिस में हिरासत में यातना रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने के न्यायिक निर्देश पर केंद्र के कोई जवाब न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को ‘बहुत हल्के में’ ले रही है. 2020 में शीर्ष अदालत ने हिरासत में यातना को रोकने के लिए थानों और पूछताछ करने वाली केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के ऑफिस में सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य कर दिया था.

: सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियों के ऑफिस में हिरासत में यातना रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने के न्यायिक निर्देश पर केंद्र के कोई जवाब न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (25 नवंबर) को पूछा कि क्या केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को ‘बहुत हल्के में’ ले रही है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पांच साल हो गए हैं, जिसमें उसने पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों के लिए पुलिस थानों और ‘पूछताछ’ की शक्तियों वाली केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के ऑफिस में सीसीटीवी कैमरे लगाना और उनका रखरखाव अनिवार्य कर दिया था.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट यह जानकर हैरान रह गया कि हिरासत में यातना अभी भी कम नहीं हुई है और राजस्थान में आठ महीनों में हिरासत में 11 मौतें हुई हैं.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 2020 के फैसले पर राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र द्वारा दिखाए गए अनुपालन के स्तर की फिर से जांच करने का फैसला किया.
लेकिन, मंगलवार को पीठ ने पाया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से उसकी चिंता पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली, उनमें से सिर्फ़ 11 ने ही अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने की बात कही. केंद्र ने एक भी दाखिल नहीं की है.
जस्टिस नाथ ने पूछा, ‘भारत सरकार कोर्ट को बहुत हल्के में ले रही है. क्यों?’
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ज़ोर देकर इनकार करते हुए कहा, ‘बिल्कुल नहीं… केंद्र सरकार कोर्ट को हल्के में नहीं ले रही है, ‘बहुत’ या किसी और तरह से नहीं. हम एक हलफनामा दाखिल करेंगे.’
जस्टिस मेहता ने उसे सही करते हुए कहा, ‘हलफनामा नहीं, बल्कि अनुपालन रिपोर्ट.’ जस्टिस मेहता ने राजस्थान से हिरासत में मौत के आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए कहा, ‘अब कोई इसे बर्दाश्त नहीं करेगा.’
अदालत ने भीड़ कम करने और जेल चलाने का वित्तीय बोझ कम करने के लिए ज़्यादा खुले सुधार केंद्र या जेल बनाने की बात कही. सॉलिसिटर जनरल को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया गया है.
अदालत ने आदेश दिया कि अगर 19 दिसंबर को अगली सुनवाई से पहले अनुपालन रिपोर्ट दाखिल नहीं किया जाता है, तो तीनों केंद्रीय जांच एजेंसियों के डायरेक्टर और बाकी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के गृह सचिव को खुद जवाब देना होगा.
ज्ञात हो कि 2020 में जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन (अब रिटायर्ड) की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह मामले में केंद्र को पुलिस थानों में हिरासत में टॉर्चर रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण ज़रूरी तौर पर लगाने का निर्देश दिया था.
अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), राजस्व खुफिया विभाग (डीआरआई), सीरियस