उत्तर प्रदेश के गोंडा, फतेहपुर और बरेली में एसआईआर के काम में लगे तीन बीएलओ की कथित तौर पर काम के अत्यधिक दबाव को लेकर मौत की ख़बर सामने आई हैं. स्थानीय प्रशासन ने इन मामलों में किसी भी तरह के दबाव से इनकार किया है, वहीं चुनाव आयोग अब तक इस पर चुप्पी साधे हुए है.

वाराणसी: ‘एसडीएम, बीडीओ और लेखपाल मुझ पर दबाव डाल रहे थे.’ विपिन यादव का आखिरी समय में मौत से पहले दिया ये बयान, कैमरे में कैद हो गया और सोशल मीडिया पर शेयर किया गया.
उत्तर प्रदेश के गोंडा में तैनात एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक विपिन यादव ने 25 नवंबर को ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या से पहले दिया गया उनका बयान कैमरे में कैद हो गया. यादव निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में पर्यवेक्षक थे.
यादव के रिश्तेदार प्रतीक ने दावा किया कि वरिष्ठ अधिकारी एसआईआर प्रक्रिया के दौरान यादव पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं के नाम सूची से हटाने का दबाव बना रहे थे.
प्रतीक ने कहा, ‘एसडीएम, लेखपाल और बीडीओ (खंड विकास अधिकारी) उन पर ओबीसी वोट हटाने और अन्य नाम जोड़ने का दबाव बना रहे थे. वे उन्हें निलंबन और पुलिस कार्रवाई की धमकी भी दे रहे थे.’
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में एक ‘लेखपाल’ राज्य सरकार का एक राजस्व अधिकारी होता है जिसका काम भूमि अभिलेखों का रखरखाव करना होता है.
इस संबंध में गोंडा की डीएम प्रियंका निरंजन ने एक बयान जारी कर कहा, ‘इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि किसी भी बीएलओ को किसी भी समुदाय या जाति समूह के मतदाताओं के नाम शामिल न करने का निर्देश दिया गया है.’
डीएम निरंजन ने बताया कि यादव की मौत की जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की गई है.
कई राज्यों से बीएलओ की मौत और आत्महत्या की खबरें सामने आई हैं
ध्यान रहे कि विपिन उन कई बीएलओ में से एक हैं, जिन्होंने कई राज्यों में 4 नवंबर से शुरू हुए एसआईआर के दौरान जान गंवाई या आत्महत्या की.
इसी तरह, एक अन्य मामले में गोंडा से लगभग 220 किलोमीटर दूर प्रदेश के फतेहपुर जिले में उसी दिन 25 नवंबर को एक बीएलओ ने अपनी शादी से ठीक एक दिन पहले आत्महत्या कर ली.
अपनी शादी की तैयारियों में व्यस्त सुधीर कुमार कथित तौर पर 22 नवंबर को तहसील परिसर में आयोजित एसआईआर की बैठक में शामिल नहीं हुए थे, जिसके कारण उन्हें निलंबित कर दिया गया और एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें फटकार भी लगाई थी.
कुमार की बहन रोशनी ने दावा किया कि इस संबंध में एक अधिकारी का उनके घर आना बेहद अपमानजनक था.
रोशनी ने गोंडा में स्थानीय पत्रकारों को बताया, ‘शादी से एक दिन पहले एक अधिकारी हमारे घर आए और काम पर न आने को लेकर उन्होंने सुधीर को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी. इसके बाद में सुधीर अंदर गए और उन्होंने कमरे को बंद कर लिया.’
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और केरल सहित कई राज्यों से बीएलओ द्वारा काम के दबाव, निलंबन और पुलिस कार्रवाई की धमकी का हवाला देने के कई मामले सामने आए हैं.
ख़बरों में उत्तर प्रदेश में एसआईआर कार्यकर्ताओं की चार, मध्य प्रदेश में आठ और राजस्थान में चार मौतें दर्ज की गई हैं. हालांकि, चुनाव आयोग ने इन मौतों को एसआईआर का परिणाम नहीं माना है.
वहीं, बरेली ज़िले में प्राथमिक विद्यालय के 47 वर्षीय शिक्षक योगेश गंगवार, जो एसआईआर ड्यूटी पर बीएलओ के पद पर तैनात थे, 26 नवंबर को बेहोश होकर गिर पड़े, बाद में उनकी मृत्यु हो गई.
योगेश की पत्नी का इसी साल सितंबर में निधन हो गया था. गंगवार के भाई सर्वेश ने बताया, ‘वह देर रात तक काम करते थे और फिर सुबह जल्दी शुरू कर देते थे. उन्हें ठीक से नींद नहीं आ रही थी. उनकी पत्नी का हाल ही में निधन हो गया था और वे बच्चों की देखभाल के लिए अकेले रह गए थे. उन्हें वरिष्ठ अधिकारी लगातार फटकार लगा रहे थे.’
काम के दबाव के दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए बरेली सदर के एसडीएम प्रमोद कुमार ने कहा, ‘उनका काम सुचारू रूप से चल रहा था और उनकी मदद के लिए अतिरिक्त शिक्षक तैनात किए गए थे. कोई भी उन पर दबाव नहीं बना रहा था.’
पीड़ितों के परिवार के अनुसार, आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने वाले बीएलओ संबंधी लगभग सभी मामलों में ‘काम का दबाव’, ‘निलंबन और पुलिस कार्रवाई की धमकी’ जैसी बातें आम थीं.
यह दबाव क्यों?
पंचायत सचिव, तहसीलदार, सहायक शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जैसे सबसे कम वेतन पाने वाले सरकारी अधिकारी, चुनावी मौसम में बीएलओ के रूप में तैनात किए जाने वालों में से हैं. लेकिन इस मौजूदा एसआईआर प्रक्रिया में ही कई लोगों ने अत्यधिक दबाव की शिकायत की है.
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में वर्तमान में बीएलओ के रूप में कार्यरत एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर द वायर से बात की.
बीएलओ ने बताया, ‘इस पूरी प्रक्रिया में तकनीकी विशेषज्ञता की ज़रूरत होती है और बीएलओ को इस बारे में कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया. कुछ शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अभी भी कीपैड वाले मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं और अब उन्हें सैकड़ों मतदाताओं का डेटा मोबाइल ऐप पर अपलोड करने का काम सौंपा गया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हर बीएलओ को फ़ॉर्म बांटने, उसे भरवाने, इकट्ठा करने और ऐप पर डेटा को डिजिटल बनाने का काम सौंपा गया है. इन सभी समस्याओं के साथ, हमारे पर्यवेक्षक अव्यावहारिक समयसीमा को पूरा करने के लिए हम पर दबाव बना रहे हैं.’
एक ओर चुनाव आयोग ने जहां बिहार में एसआईआर को एक बड़ी सफलता बताया है. वहीं दूसरी ओर देश में इसके अगले चरण की शुरुआत काफ़ी उतार-चढ़ाव भरी रही है और कुछ आलोचक इसे एक आपदा बता रहे हैं.
बुलंदशहर के शिक्षक ने आगे कहा, ‘किसी भी बीएलओ को मेडिकल इमरजेंसी या परिवार में किसी की मृत्यु होने पर भी छुट्टी मिलने की कोई गुंजाइश नहीं है. यह स्थिति कोविड-19 के दौरान हुए ग्राम पंचायत चुनाव जैसी है, जिसमें कई सरकारी अधिकारियों की असामयिक मृत्यु हो गई थी. मौजूदा प्रक्रिया में बीएलओ पर अभूतपूर्व दबाव डाला जा रहा है.’
गौरतलब है कि बीएलओ की मौत पर चुनाव आयोग ने चुप्पी साध रखी है. उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा से इस राज्य में चार बीएलओ की मौत पर उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए की गई कॉल का कोई जवाब नहीं मिला. उनका बयान मिलने पर इस खबर को अपडेट किया जाएगा.
इस बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मृतक बीएलओ के परिवार के लिए एक करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है.
यादव ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘यह चुनाव आयोग से सीधी अपील है कि वे उत्तर प्रदेश में एसआईआर के दौरान जान गंवाने वालों को एक करोड़ रुपये का मुआवजा प्रदान करें. हम भी प्रत्येक मृतक के आश्रितों को आर्थिक सहायता देने का संकल्प लेते हैं.’
(अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं– दोस्त या परिजन– जो मानसिक रूप से परेशान हैं और आत्महत्या का जोखिम है, तो कृपया उनसे संपर्क करें. सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन के पास उन फोन नंबरों की एक सूची है जिन पर कॉल करके वे गोपनीयता से बात कर सकते हैं. टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा संचालित परामर्श सेवा, आईकॉल ने देश भर के चिकित्सकों/थेरेपिस्ट की एक क्राउडसोर्स्ड सूची तैयार की है. आप उन्हें नज़दीकी अस्पताल भी ले जा सकते हैं.)